One Nation One Election Bill: एक देश एक चुनाव को लेकर चार दिसंबर को संसद की संयुक्त समिति की अहम मीटिंग होनी है। उस मीटिंग में कई मुद्दों पर चर्चा होगी, पिछले साल संसद में पेश किए गए बिल को ज्वाइंट पार्लियामेंट्री कमेटी के पास भेज दिया गया था। अब उस मीटिंग से पहले 23वें विधि आयोग ने अपना स्टैंड स्पष्ट कर दिया है, जोर देकर बोला गया है कि एक देश एक चुनाव संविधान की मूल संरचना में कोई बदलाव नहीं करता है।

एक देश एक चुनाव पर लॉ पैनल का स्टैंड

कमेटी के मुताबिक एक देश एक चुनाव के लिए राज्यों की मंजूरी की जरूरत नहीं पड़ने वाली है। तर्क दिया गया है कि ये विधेयक अनुच्छेद 368(2) के क्लॉज (a) से (e) में सूचीबद्ध उन विषयों में कोई बदलाव प्रस्तावित नहीं करते, जिन पर संशोधन के लिए राज्यों की मंजूरी अनिवार्य होती है। इसके ऊपर कमेटी इस बात पर भी सहमत है कि एक देश एक चुनाव के लिए आदर्श आचरण संहिता को कानून का दर्जा देने की जरूरी नहीं है।

क्या संविधान पर कोई असर पड़ेगा?

जानकारी के लिए बता दें कि पिछले साल दिसंबर में कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने एक देश एक चुनाव के लिए बिल को संसद में पेश किया था। इस बिल को लेकर कमीशन का मानना है कि लोगों के वोटिंग अधिकार के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं की जा रही है, सिर्फ मतदान की अवधि में ही बदलाव होगा। इसी वजह से माना जा रहा है कि यह विधेयक संविधान की मूल संरचना में कोई बदलाव नहीं करता है।

राज्य सरकारों के कार्यकालों में कटौती सही?

कमिशन इस बात को भी मानता है कि निष्पक्ष चुनाव में यह विधेयक किसी भी तरह से बाधा उत्पन्न नहीं करता है और किसी भी राज्य सरकार के कार्यकाल में कटौती कर देना भी संविधान के मूल संरचना के खिलाफ नहीं माना जा सकता। कमेटी तो शुरुआत से मान रही है कि एक देश एक चुनाव की वजह से देश का पैसा बचेगा और समय की बर्बादी भी कम होगी। कमेटी का यह भी मत है कि एक देश एक चुनाव की वजह से सरकारों की जवाबदेही पर कोई असर नहीं पड़ने वाला है क्योंकि लोकतंत्र में सभी सरकारें आखिरी दिन तक जनता के प्रति जवाबदेह रहती हैं। कमेटी ने यह भी साफ कर दिया है कि एमसीसी को कानूनी दर्जा देना भी उपयुक्त नहीं रहने वाला है, तर्क है कि ऐसा करने से चुनावों के दौरान निर्णय लेने की प्रक्रिया धीमी पड़ सकती है।

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