‘बनारस-विस्फोट’ के सिलसिले में पूरे देश की खाक छानने में जुटे पुलिस व एनआइए अफसर हरियाणा के पानीपत स्थित एक होटल में छापेमारी के बाद चौंक पड़े। दरअसल टीम के हाथ कुछ कागज लगे जो ‘बनारस-विस्फोट’ से तो नहीं लेकिन केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) से जुड़े थे। उन्हें 12वीं के बिजनेस स्टडीज के प्रश्नपत्र लीक के सबूत मिले थे। इस मामले ने तूल नहीं पकड़ा क्योंकि यह एक पत्र और एक खास क्षेत्र से जुड़ा था। पुलिस की टीम अपनी मूल जांच में केंद्रित हो गई और सीबीएसई अपने काम में व्यस्त हो गई। कुछ समय बाद 2011 में 12वीं के कुछ विषयों के पर्चे लीक करने के सिलसिले में पुलिस ने अंडमान के एक इंजीनियर व एक स्कूल के प्राचार्य समेत तीन लोगों को दबोचा। 12वीं के विज्ञान व गणित के परचे आउट करने के मामले में कृष्ण राजू, रशीद और वन अधिकारी (अवकाश प्राप्त) विजयन को गिरफ्तार किया। इस मामले में भी सीबीएसई ने खास क्षेत्र में स्कूल की गड़बड़ी बता कर अपना पल्ला झाड़ लिया।
लेकिन देश का ध्यान तब सीबीएसई पर गया जब ‘एआइईईई’ का पेपर लीक करने के सिलसिले में सीबीएसई के एक वरिष्ठ अधिकारी प्रीतम सिंह दबोचे गए। इसके बाद एक-एक कर कई ऐसे मामले आए जब सीबीएसई की ओर से ली जाने वाली कई महत्त्वपूर्ण प्रवेश परीक्षाएं कठघरे में खड़ी हो गईं। इंजीनियरिंग के बाद मेडिकल के लिए ली जाने वाली राष्ट्रीय योग्यता प्रवेश परीक्षा ‘एनईईटी’ परीक्षा (जो पहले एआइपीएमटी के नाम से जानी जाती थी) का 2015 में परचा लीक को लेकर न केवल सुर्खियों में आई बल्कि मामला हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा। इसमें भी बोर्ड की दलील रक्षात्मक रही। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने पूरी परीक्षा रद्द की और चार हफ्ते के भीतर सीबीएसई को दोबारा यह परीक्षा आयोजित करनी पड़ी। इसके अलावा 2016 की नीट की परीक्षा भी विवादों में आई जब परीक्षा से ठीक पहले उतराखंड के एक रिसोर्ट से पुलिस ने पर्चा लीक करने के आरोप में पांच लोगों का गिरफ्तार किया।
बोर्ड ने यह कहकर सफाई दी कि बरामद प्रश्न पत्र ली जाने वाली परीक्षा से पूरा मिलता-जुलता नहीं था। उनका पर्चा लीक नहीं हुआ है। लेकिन छापेमारी और कागजात की बरामदगी ने छात्रों के मन में निष्पक्षता के सवाल खड़े कर दिए। इतना ही नहीं हाल में सीबीएसई (एनईईटी) का केरल प्रकरण विवादों में रहा जिसमें अभ्यर्थियों को परीक्षा केंद्र पर अंत:वस्त्र हटाने को कहा गया। सीबीएसई की प्रवक्ता रमा शर्मा ने हालाकि कन्नूर में हुई इस घटना को दुर्भाग्यपूर्ण और प्रक्रिया में शामिल कुछ लोगों के जरूरत से ज्यादा उत्साह का नतीजा करार दिया। साथ ही अनजाने में हुई इस गलती के लिए छात्रों से बोर्ड ने खेद जताया, लेकिन लगे हाथों बोर्ड ने परिधान संबंधी कड़े नियम का भी बचाव किया।
क्या सीबीएसई सफाई देने की संस्था है?
शिक्षा औरस्वास्थ्य के लिए जनहित याचिका दायर कर तमाम मुद्दों पर सरकार, अदालत और जनता का ध्यान खींचने वाले सामाजिक कार्यकर्ता व वरिष्ठ वकील अशोक अग्रवाल का कहना है कि गड़बड़ी के लिए संस्था से ज्यादा तंत्र जिम्मेदार होता है। चुनौतियां तेजी से बदली हैं। इससे लड़ने और जीतने के लिए सीबीएसई को नौकरशाही और लालफीताशाही से मुक्त करना होगा। संसद की ओर से कानून बनाकर सीबीएसई को संवैधानिक दर्जा दिया जाना चाहिए तभी जाकर वह अपनी अपेक्षित भूमिका का निर्वहन कर सकेगा। उनका मानना है कि सीबीएसई जैसी संस्थाओं में गैरवाजिब ‘हस्तक्षेप’ बढ़ा है। अशोक अग्रवाल ने कहा- परचा लीक के मामले बढ़े हैं। यह छात्रों के संवेदना और करिअर से ही नहीं जीवन से जुड़ा मुद्दा है।
जिस दौर में अंकों में दशमलव की घटत-बढत से पास-फेल तय होता हो वहां ‘परचा लीक’ को घटना नहीं त्रासदी है। परचा लीक मामले में सुप्रीम कोर्ट में वादियों का पक्ष रखने वाले एक अन्य वकील ने कहा-सीबीएसई की यह दलील अदालत में नहीं टिक सकी कि पर्चा लीक का आरोप छोटे क्षेत्र का है और इसका दायरा छोटा है। स्थानीय स्कूल व वहां का प्रशासक छोटी-मोटी गड़बड़ियों के लिए जिम्मेदार हैं न कि बोर्ड! ऐसी चूक के लिए केवल बोर्ड सीधे तौर पर जिम्मेदार नहीं है, पूरी परीक्षा रद्द करना ठीक नहीं है। उन्होंने कहा कि संस्थागत सुधार की जरूरत है क्योंकि परचा लीक की ऐसी खबरें नई और ईमानदार पीढ़ी को विचलित कर देती है। लाखों छात्र प्रभावित होते हैं। यह साजिश का पूरा तंत्र है। कसूरवारों के लिए कड़ी सजा का प्रावधान जरूरी है।
