Justice RF Nariman on Supreme Court Ayodhya Verdict: सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज आरएफ नरीमन ने राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर निराशा जताई है। उन्होंने 2019 के इस फैसले की आलोचना करते हुए इसे न्याय का उपहास बताया। इतना ही नहीं उन्होंने यहां तक कह दिया कि फैसले ने सेक्युलरिज्म के सिद्धांत के साथ न्याय नहीं किया है।
रिटायर्ड जज नरीमन एएम अहमदी मेमोरियल लेक्चर में सेक्युलरिज्म और संविधान पर भाषण देने पहुंचे थे। यहां पर जस्टिस नरीमन ने बताया कि कैसे बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले के सभी आरोपियों को बरी करने वाले स्पेशल सीबीआई जज सुरेंद्र यादव को उत्तर प्रदेश में डिप्टी लोकायुक्त के तौर पर रिटायरमेंट के बाद नौकरी मिल गई। उन्होंने ‘धर्मनिरपेक्षता और भारतीय संविधान’ पर बोलते हुए कहा कि यह इस देश की स्थिति है।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद ही बना राम मंदिर
अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से ही वहां पर राम मंदिर बनने का रास्ता साफ हुआ था। बाबरी मस्जिद के लिए मुस्लिम पक्ष को अयोध्या में ही मस्जिद बनाने के लिए पांच एकड़ जमीन राज्य सरकार को देने का आदेश मिला था। लाइवलॉ डॉट इन के मुताबिक जस्टिस नरीमन ने कहा है, ‘मेरी राय में न्याय का सबसे भद्दा मजाक ये था कि इस फैसले से सेक्युलरिज्म को सही जगह नहीं दी गई।’
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प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट को लेकर क्या बोले नरीमन
2019 के फैसले का हवाला देते हुए जस्टिस नरीमन ने कहा कि इसमें एक सकारात्मक पहलू भी है क्योंकि इसने प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 को बरकरार रखा है। इसे आदेश के पांच पन्नों में निपटाया गया है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, नरीमन ने कहा कि अब हर जगह मुकदमे दायर किए जा रहे हैं, न केवल मस्जिदों के संबंध में, बल्कि दरगाहों के संबंध में भी। मेरे हिसाब से यह सब सांप्रदायिक तनाव और वैमनस्य को जन्म दे सकता है और संविधान और पूजा स्थल अधिनियम में जो कुछ भी कहा गया है उसके उलट है। उन्होंने कहा कि इन सब पर रोक लगाने और इन सभी समस्याओं को खत्म करने का एक तरीका इसी फैसले के इन पांच पन्नों को लागू करना है। राम लला की प्राण प्रतिष्ठा के एक साल पूरा होने पर खास आयोजन होगा। पढ़ें पूरी खबर…