कुछ महीने पहले यूरोपीय आयोग ने एक कानून का प्रस्ताव रखा, जिसके तहत उन वस्तुओं पर प्रतिबंध लग जाएगा, जिन्हें बनाने में जबरन श्रम (फोर्स्ड लेबर) का इस्तेमाल हुआ हो। इसे जटिल कदम माना जा रहा है। कुछ लोगों का कहना है कि यह पर्याप्त नहीं है जबकि कुछ लोग इसे नौकरशाही के एक और कठोर फैसले के रूप में देखते हैं, जिन्हें विदेशी कंपनियों को पर्यावरण और स्थायित्व संबंधी यूरोपियन यूनियन के तमाम नियमों के दायरे में मानना पड़ता है।

दुनिया भर में करीब 2 करोड़ 80 लाख लोग जबरन श्रम वाली स्थितियों में काम कर रहे हैं और इनमें आधे से ज्यादातर लोग एशिया-प्रशांत क्षेत्र में ही रहते हैं। संयुक्त राष्ट्र के अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की 2022 की रपट के मुताबिक साल 2016 की तुलना में जबरन श्रम में लगे लोगों की संख्या दस गुना ज्यादा बढ़ गई।

बीते साल यूरोपियन संघ के अधिकारियों ने पहली बार इस कानून का प्रस्ताव रखा, तो ऐसे आरोप लगे कि यूरोपियन संघ का लक्ष्य चीन के शिनजियांग क्षेत्र से होने वाले सामानों के आयात को प्रतिबंधित करना है। वहां चीन की कम्युनिस्ट पार्टी वर्षों से उइगर मुसलमानों पर अत्याचार कर रही है। इस क्षेत्र के कपास खेतों, खदानों और कपड़ा कारखानों में आधुनिक दासता से संबंधित भी कई खबरें आई हैं।

यूरोपियन संघ के इस कानून के प्रस्ताव से तीन महीने पहले शिनजियांग इलाके में मानवाधिकार उल्लंघनों के मामलों से निपटने के लिए ऐसे ही कानूनों की मांग की थी। अमेरिकी सरकार ने शिनजियांग क्षेत्र में चीनी अधिकारियों की कार्रवाइयों को नरसंहार माना है और डच संसद ने भी इन कार्रवाइयों के लिए इसी शब्द को सही ठहराया है। साल 2021 में अमेरिका ने एक कानून बनाया जो शिनजियांग क्षेत्र से आयात होने वाले ज्यादातर उत्पादों को प्रभावी रूप से प्रतिबंधित करता है। पिछले साल अगस्त में गुलामी या दासता के समसामयिक स्वरूपों पर संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत तोमोया ओबोकाटा ने एक रपट जारी की थी।

रपट में इस बात पर जोर दिया गया है कि शिनजियांग उइगर क्षेत्र में कृषि और निर्माण क्षेत्र में लगे उइगर, कजाक और अल्पसंख्यक जातियों से जबरन श्रम कराया जा रहा है। हालांकि ब्रसेल्स ने उन सामानों पर व्यापक प्रतिबंध लगाने का विकल्प चुना है जिन्हें बनाने में जबरन श्रम का इस्तेमाल हुआ हो क्योंकि चीन के खिलाफ विशेष कानून चीन को नाराज कर सकता है, और यूरोपियन संघ के कई सदस्य चीन से बेहतर संबंध बनाए रखना चाहते हैं। विश्लेषकों का कहना है कि चीन को लक्ष्य करके प्रतिबंध लगाना विश्व व्यापार संगठन के भेदभावरहित कानूनों का भी उल्लंघन कर सकता है।

हालांकि, इस प्रस्तावित कानून के समर्थकों ने इस बात पर जोर दिया है कि यह इरादतन सार्वभौमिक प्रकृति का है और यूरोपियन यूनियन अंतरराष्ट्रीय मानदंडों का पालन कर रहा है। संयुक्त राष्ट्र का एजंडा साल 2030 तक दुनिया भर से जबरन श्रम को खत्म कराने को प्रतिबद्ध है। इस कदम से दक्षिणपूर्व एशिया जैसे क्षेत्रों में काफी भय है जहां स्थानीय व्यवसायों को पहले से ही यूरोपियन संघ के कई नियमों का पालन करना पड़ रहा है।

वनों की कटाई और टिकाऊ उत्पादों पर यूरोपियन यूनियन के आने वाले कानून ने दुनिया में पाम तेल के दो सबसे बड़े उत्पादकों मलेशिया और इंडोनेशिया के साथ एक बड़ा विवाद खड़ा कर दिया है। यूरोपीय संघ इन दोनों देशों के उत्पादों को 2030 तक खत्म करना चाहता है।

बातचीत जारी

यूरोपीय अधिकारियों का कहना है कि इन सब पर बातचीत चल रही है। आसियान में यूरोपीय संघ के राजदूत इगोर ड्रीसमैन्स कहते हैं, इन प्रस्तावों पर हमने दक्षिणपूर्व एशियाई देशों के अपने सहयोगियों से कई दौर की वार्ताएं की हैं और आने वाले दिनों में ये बातचीत अभी जारी रहेगी। हम प्रमुख व्यापारिक भागीदार हैं और आजीविका को सुधारने में अपनी रुचि को साझा करते हैं, मानवाधिकार के संरक्षण और उनके उल्लंघनों को रोकने में जरूरी नियामक बनाकर एक-दूसरे का सहयोग करते हैं।