पर्यावरण कार्यकर्ता और आध्यात्मिक गुरु स्वामी शिवानंद सरस्वती गंगा नदी के संरक्षण को लेकर पिछले करीब एक महीने से अनशन पर हैं। उनकी मांग है कि गंगा पर चल रहे हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट्स और उसके तल से पत्थरों का उत्खनन रोका जाए। बताया गया है कि स्वामी शिवानंद अब सिर्फ पानी ही ले रहे हैं। स्वामी शिवानंद केंद्र और उत्तराखंड सरकार के रवैये से खासे नाराज भी बताए जा रहे हैं, जो गंगा संरक्षण के मुद्दे को सिर्फ राजनीतिक एंगल से ही देख रही हैं।
गौरतलब है कि पहले उन्होंने मार्च में अनशन शुरू किया था परंतु कोरोना संकट के कारण उन्होंने अपना अनशन स्थगित कर दिया था। उन्होंने अगस्त तक मांग पूरी ना होने पर फिर से अनशन करने की चेतावनी दी थी। इस बारे में उन्होंने प्रधानमंत्री,केंद्रीय पर्यावरण मंत्री व उत्तराखंड के मुख्यमंत्री को पत्र भी लिखा था। हालांकि, इसमें कोई प्रतिक्रिया नहीं आई। स्वामीजी का आरोप है कि कोई भी मंत्री उनसे मातृ सदन आश्रम में उनसे मिलने नहीं आया है। इसके बाद वे 3 अगस्त से फिर अनशन पर बैठ गए। इस बार स्वामीजी ने मांग की है कि जब तक सरकार उन्हें लिखित में कदम उठाने का आश्वासन नहीं दे देती, तब तक वे अनशन से नहीं उठेंगे।
क्या हैं स्वामी शिवानंद की मांग?
एजंडे की मुख्य मांगों गंगा और गंगा की सहायक नदियों पर प्रस्तावित सभी बांध निरस्त किए जाने और निर्माणाधीन बांध बंद किए जाएं। इसके साथ ही गंगा और उसकी सहायक नदियों के किनारे 5 किलोमीटर के दायरे में बने सभी स्टोन क्रेशर बंद करने की भी मांग है। उन्होंने यह भी मांग की है कि गंगा के कुंभ क्षेत्र हरिद्वार में पूर्ण रूप से गंगा नदी में खनन का काम बंद किया जाए और प्रोफेसर जीडी अग्रवाल द्वारा प्रस्तावित गंगा कानून को जल्द ही लागू किया जाए। प्रधानमंत्री द्वारा नमामि गंगे की टीम हरिद्वार में समस्त स्टोन क्रेशर और खनन के कार्य जांच करने के लिए भेजी गई थी उस टीम द्वारा जांच में गड़बड़ी की गई थी। जांच करने वाले अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जाए।
दूसरी तरफ राष्ट्रीय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने प्रकृति के संरक्षण पर जोर देते हुए रविवार को कहा कि इसकी देखभाल होनी चाहिए और केवल उपभोग नहीं होना चाहिए जैसा कि आज के समय हो रहा है । हिंदू आध्यात्मिक एवं सेवा फाउंडेशन द्वारा प्रकृति दिवस मनाने के अवसर पर डिजिटल तरीके से एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए भागवत ने प्रकृति को अपने जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा मानने वाले हमारे पूर्वजों द्वारा अपनायी गयी जीवन-शैली पर जोर दिया ।
भागवत ने कहा कि लोग मानते हैं कि प्रकृति उनके उपभोग के लिए है तथा उसके प्रति उनकी कोई जिम्मेदारी नहीं है । उन्होंने कहा कि हम पिछले 200 से 250 साल से इस तरह रह रहे हैं और इसके बुरे प्रभाव और नतीजे अब हमारे सामने आ रहे हैं । अगर यह सब चलता रहा तो ना तो हम ना ही यह दुनिया बचेगी। उन्होंने नाग पंचमी, गोवर्धन पूजा, तुलसी विवाह का जिक्र करते हुए कहा कि इन सभी संस्कारों को निभाना चाहिए और नई पीढी भी जानेगी कि हम प्रकृति का हिस्सा हैं और हमें प्रकृति की देखभाल करनी चाहिए न कि केवल उसका उपभोग ।