दुनिया ऊर्जा संकट का सामना कर रही है। सभी इस बात को समझ चुके हैं कि इस क्षेत्र पर गंभीरता से ध्यान नहीं दिया गया, तो आने वाला समय चुनौतीपूर्ण होगा। अधिकांश ऊर्जा संकट स्थानीय कमी, युद्ध और बाजार में हेरफेर के कारण पैदा हुए हैं। भारत में ऊर्जा संकट से निपटने की राह में कई चुनौतियां हैं। भारत के पास कोयला, तेल और गैस जैसे सीमित ऊर्जा संसाधन ही मौजूद हैं और यह अपनी बढ़ती ऊर्जा मांगों की पूर्ति के लिए आयात पर निर्भर है। इसलिए भारत ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों की तलाश कर रहा है, जैसे सौर, पवन और जल विद्युत। वहीं, देश के ऊर्जा क्षेत्र में अभी अपर्याप्त निवेश है। इसके बुनियादी ढांचे में सुधार और अपनी ऊर्जा क्षमता का विस्तार करने के लिए बड़े निवेश की आवश्यकता है। भारत विश्व के सबसे बड़े ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जकों में से एक है और इसका ऊर्जा क्षेत्र इसका एक प्रमुख कारक है।

हालांकि सरकार अल्पकालिक और दीर्घकालिक नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता वृद्धि के लिहाज से 2030 तक 500 गीगावाट का लक्ष्य प्राप्त करने की दिशा में प्रयासरत है। इधर, दुनिया में भारत ‘एनर्जी ट्रांजिशन’ में वैश्विक अगुआ के रूप में उभर रहा है। यह उस विकास से स्पष्ट है, जो हमने अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में हासिल किया है। अक्षय ऊर्जा क्षेत्र रोजगार उत्पादन की दृष्टि से भी उम्मीदें बंधाता नजर आ रहा है। पूरी दुनिया जहां जलवायु परिवर्तन के खतरों को रोकने के लिए इस क्षेत्र को विकसित करने में जुटी है, वहीं भारत ने इस स्रोत के विकास में अच्छी सफलता हासिल की है। पिछले दस वर्षों में देश ने अक्षय ऊर्जा उत्पादन की अपनी क्षमता में पांच गुना बढ़ोतरी की और इस क्षेत्र में नए लक्ष्यों को तय किया है।

वहीं ‘रिन्यूएबल एनर्जी’ यानी अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में रोजगार पैदा करने के लिहाज से चीन, ब्राजील और अमेरिका के बाद भारत दुनिया में चौथे स्थान पर है। पूरे विश्व में ‘रिन्यूएबल एनर्जी’ क्षेत्र में नियुक्त लोगों का 5.7 फीसद भारत में है। ‘इंटरनेशनल रिन्यूएबल एनर्जी एजंसी’ की रपट के अनुसार, दस वर्ष पहले तक इस क्षेत्र में भारत में चार लाख नौकरियां सृजित हुई थीं। असल में, भारत में ऊर्जा क्षेत्र में आगे काफी बढ़ोतरी की संभावनाएं हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि भारत को पांच लाख करोड़ डालर की अर्थव्यवस्था बनाने के लिए ऊर्जा क्षेत्र को सशक्त करना जरूरी होगा।

एलईडी बल्ब से बिजली खर्च में आई कमी

देश में एलईडी बल्ब के इस्तेमाल से रोशनी के लिए बिजली खर्च में करीब 75 फीसद की कमी आई है। अध्ययन बताते हैं कि ऊर्जा दक्ष उपकरणों के इस्तेमाल से करीब 30 फीसद बिजली खपत कम की जा सकती है, यानी भवनों में 1.20 लाख गीगावाट बिजली बचाए जाने की संभावना है। अगर भवनों में ऊर्जा दक्षता के मानक लागू हो जाएं, तो अतिरिक्त 30 फीसद बिजली बच सकती है। यह बिजली बिहार और झारखंड जैसे राज्यों के एक वर्ष की जरूरत के बराबर है। सांख्यिकी मंत्रालय की रपट के अनुसार, देश में उद्योग जगत सबसे ज्यादा 42 फीसद बिजली खर्च करता है। घरेलू क्षेत्र में 24 फीसद बिजली खर्च होती है। व्यावसायिक भवनों में बिजली की खपत आठ फीसद है। मगर भवनों में ऊर्जा दक्षता के मानकों का क्रियान्वयन सबसे कम हुआ है।

ऊर्जा क्षेत्र में वर्ष 2000 से 2019 के बीच 14.32 अरब डालर का विदेशी निवेश आया। सरकार इस क्षेत्र पर खासा ध्यान दे रही है, जिससे आने वाले समय में इस क्षेत्र में निवेश और बढ़ेगा। इससे नई नौकरियां सृजित होंगी। 2022 तक भारत में नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता बढ़कर 175 गीगावाट हो चुकी है। इसमें 100 गीगावाट सौर ऊर्जा और 60 गीगावाट पवन ऊर्जा शामिल है। वहीं भारत की कोयला आधारित क्षमता 2040 तक 191 गीगावाट से बढ़कर 400 गीगावाट होने की संभावना है। हालांकि भारत लंबे समय से ऊर्जा उत्पादन के लिए सबसे ज्यादा भरोसा कोयले पर करता आया है, पर पिछले दशक के मध्य से इसमें हरित ऊर्जा की भागीदारी महत्त्वपूर्ण रही है। 2017 के बाद से हरित ऊर्जा बिजली उत्पादन के नए तरीकों में सबसे आगे रही है, जिसमें सौर ऊर्जा का बड़ा हिस्सा है।

2070 तक कार्बन उत्सर्जन को शून्य करने का लक्ष्य

देश को ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के लिए कई पहलें हुई हैं। इस क्रम में नवीकरणीय ऊर्जा की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। सौर ऊर्जा के क्षेत्र में काफी काम हो रहा है। भारत ने 2070 तक कार्बन उत्सर्जन को शून्य करने का लक्ष्य रखा है, जिसके लिए लगभग 50 फीसद ऊर्जा नवीकरणीय स्रोतों से उत्पादित करना बड़ा लक्ष्य है। वर्ष 2040 तक भारत की ओर से 15,820 टेरावाट आवर बिजली का उत्पादन नवीकरणीय स्रोत से करने का भी लक्ष्य रखा गया है। ऐसे में सौर ऊर्जा इस लक्ष्य को प्राप्त करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए विभिन्न कंपनियां सौर ऊर्जा की तरफ तेजी से कदम बढ़ा रही हैं। इस वजह से इस क्षेत्र की कंपनियों में अच्छी बढ़ोतरी देखने को मिल रही है और आने वाले समय में यह और तेज होगी। इस तरह भारत ऊर्जा क्षेत्र के सभी लक्ष्यों को सफलतापूर्वक हासिल कर सकेगा।

ऊर्जा क्षेत्र में त्वरित सुधारों की दरकार है। सबसे पहले तो आयात पर निर्भरता कम करने के लिए घरेलू कोयले की गुणवत्ता में सुधार पर ध्यान देना होगा। इसे कोयले के कैलोरी मान को बढ़ाने और राख की मात्रा को कम करने के लिए प्रौद्योगिकी में निवेश कर प्राप्त किया जा सकता है। वहीं, नवीकरणीय ऊर्जा को प्रोत्साहित करना होगा। देश में सौर, पवन और जल विद्युत जैसे ऊर्जा स्रोतों की अपार क्षमता मौजूद है। सरकार को प्रोत्साहन राशि और सबसिडी के माध्यम से नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं के विकास को प्रेरित करना चाहिए। कार्बन मूल्य निर्धारण नवीकरणीय ऊर्जा के उपयोग को प्रोत्साहित करने में मदद कर सकता है। वहीं, ऊर्जा का कुशल संचरण और वितरण सुनिश्चित करने के लिए ऊर्जा अवसंरचना के विकास में निवेश करना होगा। यह मौजूदा अवसंरचना के उन्नयन और नए बिजली संयंत्रों, ट्रांसमिशन लाइनों के निर्माण के माध्यम से हासिल हो सकता है।

बिना रेटिंग वाले उपकरणों की बिक्री पर रोक होनी चाहिए

सबसे अच्छा विकल्प यह है कि गैर-नवीकरणीय संसाधनों पर दुनिया की निर्भरता को खत्म किया जाए और समग्र संरक्षण प्रयासों में सुधार किया जाए। एलईडी बल्ब को बढ़ावा दिया जाए। अगर दुनिया में लाखों लोग आवासीय और व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए एलईडी का उपयोग करते हैं, तो ऊर्जा की मांग कम होगी और संकट से बचा जा सकेगा। इसके अलावा, सौर पैनलों के लिए वित्तीय सहायता प्रदान की जानी चाहिए, ताकि जनता को अक्षय ऊर्जा विकल्पों की जांच करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके। ज्यादा स्टार वाले उपकरणों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। वहीं बिना रेटिंग वाले उपकरणों की बिक्री पर रोक होनी चाहिए। पिछले कुछ सालों में लोगों में ऊर्जा दक्षता को लेकर चेतना बढ़ी है, लेकिन अभी भी जागरूक होने की दरकार है।

देश को ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के लिए कई पहलें हुई हैं। इस क्रम में नवीकरणीय ऊर्जा की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। सौर ऊर्जा के क्षेत्र में काफी काम हो रहा है। भारत ने 2070 तक कार्बन उत्सर्जन को शून्य करने का लक्ष्य रखा है, जिसके लिए लगभग 50 फीसद ऊर्जा नवीकरणीय स्रोतों से उत्पादित करना बड़ा लक्ष्य है। वर्ष 2040 तक भारत की ओर से 15,820 टेरावाट आवर बिजली का उत्पादन नवीकरणीय स्रोत से करने का भी लक्ष्य रखा गया है। ऐसे में सौर ऊर्जा इस लक्ष्य को प्राप्त करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।