चुनावी बांड के जरिए चंदा जुटाने की इजाजत देने वाला कानून फिर सवालों के दायरे में है। हालांकि पहले इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप करने को लिए इन्कार कर दिया था। लेकिन मंगलवार को सीजेआई की बेंच इस पर सुनवाई के लिए सहमत हो गई। शीर्ष अदालत सुनवाई के लिए तब तैयार हुई जब वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि आज सुबह खबर आई है कि सरकारी एजेंसियों की रेड से बचने के लिए कलकत्ता की एक कंपनी ने चुनावी बांड के जरिए 40 करोड़ रुपये का भुगतान किया है। उनका कहना था कि ये लोकतंत्र पर धब्बा है।
प्रशांत भूषण की बात पर सीजेआई एनवी रमन्ना की बेंच ने संज्ञान लेते हुए याचिका को सुनवाई के लिए जल्दी सूचीबद्ध करने का भी आश्वासन दिया। भूषण ने एनजीओ एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्सव कॉमन कॉज की ओर से पैरवी करते हुए कहा कि यह गंभीर मामला है। इस पर तत्काल सुनवाई होनी चाहिए। भूषण ने मंगलवार को सीजेआई के समक्ष इस मामले का जिक्र करते हुए कहा कि कोर्ट में इस मामले को एक साल से अधिक समय होने के बावजूद सूचीबद्ध नहीं किया गया है। लेकिन उस समय कोविड का प्रकोप था।
मंगलवार को सुनवाई के दौरान सीजेआई ने कहा कि रिजर्व बैंक के साथ चुनाव आयोग ने स्कीम पर आपत्ति जताई थी। लेकिन ये नहीं कहा जा सकता कि उन्होंने इसका विरोध किया था। कुछ बातों को लेकर रिजर्व बैंक व आयोग ने पत्राचार किया था। इनमें कुछ बातों को लेकर दोनों ने शंका जाहिर की थी।
क्या है सरकार की चुनावी बॉन्ड स्कीम
केंद्र ने जनवरी 2018 को इलेक्टोरल बॉन्ड योजना की अधिसूचना जारी की थी। योजना के तहत कोई भी व्यक्ति एसबीआई से चुनावी बॉन्ड खरीद कर किसी भी राजनीतिक दल को फंडिग कर सकता है। बॉन्ड खरीदने के लिए ड्राफ्ट या चैक से भुगतान करना होता है। हालांकि, चुनाव आयोग ने भी चंदा देने वालों के नाम सार्वजनिक नहीं करने पर चिंता जाहिर की थी। आयोग ने घाटे में चल रही कंपनियों को बॉन्ड खरीदने की अनुमति देने पर आपत्ति जताई थी। लेकिन समग्र तौर पर स्कीम के विरोध के लिए कोई काम नहीं हुआ।
सरकार का तर्क था कि पहले चुनावी चंदा नकद दिया जाता था। इससे काले धन की संभावना काफी बढ़ जाती थी। सरकार का कहना था कि इस योजना के तहत चुनावी बॉन्ड केवल चेक या ई-भुगतान के जरिये ही खरीदा जा सकता है तो ऐसे में काले धन की आवाजाही की संभावना न के बराबर हो जाती है।