तमिलनाडु से भाजपा का लोकसभा में एक भी सदस्य नहीं है। तो भी पार्टी ने यहां के अपने सूबेदार और दलित नेता डॉक्टर एल मुरुगन को केंद्र में मंत्री बनाकर साफ संदेश दिया है कि कर्नाटक व तेलंगाना की तरह वह तमिलनाडु को भी महत्व देती है। विधानसभा में अलबत्ता अन्ना द्रमुक के साथ गठबंधन कर उसने पिछले विधानसभा चुनाव में यहां अपने पांव जमाने की कोशिश जरूर की।

मुरुगन को अब किसी दूसरे राज्य से पार्टी राज्यसभा में भेजेगी। क्षेत्रीय संतुलन बिठाने की चिंता न होती तो ओड़ीशा के अश्विनी वैष्णव को पार्टी कैबिनेट मंत्री न बनाती। इसके अलावा किसी इसी सूबे से विश्वेश्वर टूडू को मंत्री बनाकर पार्टी ने संदेश दिया है कि नवीन पटनायक के बाद के दौर में उनकी विरासत भाजपा के खाते में ही आएगी, कांग्रेस के खाते में नहीं। ओड़ीशा की तरह ही पार्टी ने त्रिपुरा को भी मंत्रिमंडल में भागीदार बनाया है। इस सूबे में भाजपा की ही सरकार है। असम में पार्टी दूसरी बार सत्ता में आई है तो सवार्नंद सोनोवाल को कैबिनेट मंत्री का दर्जा देना ही पड़ता। एक तो वे पहले भी केंद्र में मंत्री रह चुके हैं। दूसरे अब मुख्यमंत्री के पद को चुनाव जीतने के बाद छोड़कर आए हैं।

उत्तर पूर्व में अरुणाचंल प्रदेश में भी सरकार भाजपा की है। सो किरण रिजीजू को तरक्की देकर कैबिनेट मंत्री बनाया गया है। साफ है कि अब भाजपा केवल उत्तर या पश्चिम की पार्टी नहीं बने रहना चाहती। कांगे्रस की तरह उसका स्वरूप राष्ट्रीय आकार ले चुका है। लिहाजा हर हिस्से को प्रतिनिधित्व देना लाजिमी होता है।

कर्नाटक में इस समय सरकार तो जरूर भाजपा की है पर वहां गुटबाजी से आलाकमान परेशान हैं। इस सूबे को भी तरजीह दी गई है। सदानंद गौड़ा से तो इस्तीफा लिया गया है पर उनकी जगह चार मंत्री बनाकर दक्षिण के अपने इस गढ़ को भाजपा ने सकारात्मक संदेश दिया है। तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में बेशक पार्टी का अभी ज्यादा प्रभाव नहीं है तो भी तेलंगाना के किशन रेड्डी को राज्यमंत्री के पद से कैबिनेट मंत्री के रूप में तरक्की दी गई है।

झारखंड में भाजपा पिछला विधानसभा चुनाव हारने के कारण सत्ता से बेदखल हो गई थी तो भी पार्टी ने अन्नपूर्णा देवी को मंत्री बनाकर सूबे के लोगों को सकारात्मक संदेश तो दिया ही है, इसकी उपेक्षा की शिकायत को भी दूर करने की कोशिश की है। महाराष्ट्र भाजपा के लिए पश्चिम बंगाल से भी ज्यादा अहमियत रखता है। आखिर अतीत में एक बार शिवसेना के साथ मिलकर और दूसरी बार अपने बूते सरकार चलाकर पार्टी ने यहां अपनी जडे़ं मजबूत की थी। पर पिछले विधानसभा चुनाव में वह बहुमत से काफी पिछड़ गई थी।

शिवसेना के अजित पवार के साथ मिलकर सरकार बनाने की उसकी उतावली ने भी उसकी किरकिरी कराई थी। भाजपा को यह अफसोस तो होगा ही कि शिवसेना जैसी उसकी सबसे भरोसेमंद सहयोगी आज एनसीपी और कांगे्रस के साथ मिलकर सरकार चला रही है। इसीलिए नारायण राणे को कैबिनेट मंत्री बनाया गया है। हालांकि इसी सूबे से पीयूष गोयल, नितिन गडकरी पहले से कैबिनेट मंत्री हैं। राणे के अलावा कपिल मोरेश्वर पाटील, भागवत कराड़ व भारती पवार को भी बेशक राज्य मंत्री ही सही पर शामिल करके महाराष्ट्र का महत्व तो साबित किया ही है। मंत्रिमंडल के इस विस्तार में प्रधानमंत्री अपने सहयोगियों के दबाव में कतई नहीं आए। तभी तो जनतादल (एकी) को उन्होंने 2019 की तरह अब भी एक मंत्री पद ही दिया। अलबत्ता इसी सूबे के अपने स्वतंत्र प्रभार वाले राज्य मंत्री आरके सिंह को तरक्की देकर कैबिनेट मंत्री बना दिया।

पश्चिम बंगाल के बाबुल सुप्रियो को हटाया तो उनकी जगह सुभाष सरकार, शांतनु ठाकुर, जान बारला और नीतीश प्रमाणिक यानी चार को मंत्री बना दिया।पश्चिम बंगाल में पिछले चुनाव में पार्टी को लोकसभा की 18 सीटों पर सफलता मिली थी। इस नाते ज्यादा मंत्री पद देकर पार्टी ने सूबे के लोगों को संदेश दिया है कि ममता बनर्जी को हराने में इस बार वह भले चूक गई पर कोशिश जारी रखेगी। सूबे का महत्व उसकी नजर में हार के कारण घटा नहीं बल्कि और बढ़ गया है।

दिल्ली की सातों लोकसभा सीटें भाजपा के कब्जे में है। यहां के इकलौते मंत्री हर्षवर्धन को हटाया तो उनकी जगह कैबिनेट का दर्जा भले न सही पर मीनाक्षी लेखी को राज्य मंत्री बनाकर पार्टी ने उपेक्षा के संभावित आरोप से खुद को बचा लिया। मंत्रिमंडल के इस विस्तार में पिछड़ों और दलितों को ज्यादा हिस्सेदारी देकर सामाजिक समरसता का संदेश देने की कोशिश तो की गई है पर जहां तक महिलाओं का सवाल है, उन्हें राज्य मंत्री के पद से ही संतोष करना पड़ा हैै। इस विस्तार के बाद मोदी मंत्रिमंडल का स्वरूप क्षेत्रीय संतुलन के हिसाब से ज्यादा राष्ट्रीय दिखेगा, इसमें संदेह नहीं।

क्षेत्रीय संतुलन बिठाने की चिंता न होती तो ओड़ीशा के अश्विनी वैष्णव को पार्टी कैबिनेट मंत्री न बनाती। इसके अलावा किसी इसी सूबे से विश्वेश्वर टूडू को मंत्री बनाकर पार्टी ने संदेश दिया है कि नवीन पटनायक के बाद के दौर में उनकी विरासत भाजपा के खाते में ही आएगी, कांग्रेस के खाते में नहीं। ओड़ीशा की तरह ही पार्टी ने त्रिपुरा को भी मंत्रिमंडल में भागीदार बनाया है। सूबे में भाजपा की ही सरकार है। असम में पार्टी दूसरी बार सत्ता में आई है तो सवार्नंद सोनोवाल को कैबिनेट मंत्री का दर्जा देना ही पड़ता। एक तो वे पहले भी केंद्र में मंत्री रह चुके हैं। दूसरे अब मुख्यमंत्री के पद को चुनाव जीतने के बाद छोड़कर आए हैं।