बिहार में वोटकटवा कहे जा रहे चिराग ने जनता दल (एकीकृत) का दामन झुलसा दिया। महागठबंधन की अगुआई कर रही राष्ट्रीय जनता दल की उम्मीदों पर भी पानी फेरा। भाजपा की राह जरूर रोशन हुई। बिहार में चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) ने ‘एकला चलो रे’ की नीति अपनाकर भाजपा को दोतरफा फायदा पहुंचाया। नतीजा यह रहा कि भाजपा चुनाव नतीजों में नंबर एक रही, जबकि जद (एकी) तीसरे नंबर पर चली गई। नीतीश कुमार से नाराज मतदाता लोजपा की ओर गए।

लोजपा के असर को चुनाव नतीजों के एक आंकड़े से समझा जा सकता है। मतगणना के एक दौर में भाजपा 73 और राजद 64 सीटों पर आगे थी। जबकि जद (एकी) को 49 सीटों पर बढ़त हासिल थी। तब लोजपा की दावेदारी केवल एक सीट पर दिख रही थी, लेकिन उसके खाते में 5.8 फीसद वोट आ गए थे। तब भाजपा के खाते में 19.8 फीसद और जद (एकी) को 15.4 फीसद वोट मिल चुके थे। राजद को 22.9 फीसद वोट मिले थे। अगर लोजपा ने जद (एकी) के खिलाफ उम्मीदवार नहीं दिए होते तो नीतीश कुमार की पार्टी बिहार में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभर सकती थी। जहां लोजपा ने वोट काटे हैं, वहां जद (एकी) ने 28 सीटों के नुकसान के साथ 43 का फायदा हासिल किया। जहां मैदान में लोजपा नहीं थी, वहां जद (एकी) को छह सीटों का लाभ मिला और वह 77 पर कामयाब रही।

दरअसल, चिराग पासवान ने इस तरह की अपनी सेंधमारी का संकेत चुनाव के पहले ही दे दिया था, जब उन्होंने खुद को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का हनुमान कह दिया था। तब यह तस्वीर स्पष्ट हो चली थी कि बिहार में मतदाताओं का बड़ा एक वर्ग नीतीश कुमार से नाराज है और यह वर्ग राजद नेता तेजस्वी यादव के रोजगार के नारे के साथ हो चला है। ऐसे में नीतीश से गुस्साए मतदाताओं में कुछ का रुख चिराग ने मोड़ लिया। उस गुस्से की तपिश से भाजपा बच गई। चिराग ने जद (एकी) कोटे की सीटों पर अपने अधिकांश उम्मीदवार दिए। दूसरी ओर, महागठबंधन की बढ़त पर भी उन्होंने लगाम लगाई। मतों के बंटवारे के विश्लेषण से स्पष्ट है कि अगर चिराग को मिले लगभग छह फीसद मतों में से आधा भी महागठबंधन को मिल जाता तो बाजी पलट सकती थी।

चुनाव प्रचार अभियान में शुरू से ही चिराग को लेकर बातें उठ रही थीं कि क्या नीतीश कुमार से नाराज लोगों के वोट बांटने के लिए यह तीर चला गया था, जो सीधे निशाने पर जा बैठा? लोजपा अध्यक्ष चिराग पासवान पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हमला नहीं किया और भाजपा के कई बागियों का लोजपा का दामन थामना भाजपा को फायदा पहुंचा गया। जिन सीटों पर लोजपा ने जद (एकी) के खिलाफ उम्मीदवार काटे, वहां तो राजग का वोट बैंक तितर-बितर हो गया और जेडीयू को इसका खामियाजा भुगतना पड़ा, लेकिन भाजपा की सीटों पर राजग का वोट एकमुश्त रहा।

महुआ, मटिहानी, महिषी, जहानाबाद, कुर्था, नोखा, सासाराम और दिनारा जैसी जद (एकी) की पुख्ता सीटों पर लोजपा ने खेल खराब किया। जद (एकी) के नेता मान रहे हैं कि अगर नीतीश कुमार की पार्टी के हर उम्मीदवार को चिराग पासवान की लोकजनशक्ति पार्टी के उम्मीदवार का सामना नहीं करना पड़ता तो इन चुनावों में वो सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभर सकती थी। नीतीश कुमार के करीबी नेता रहे और अब पार्टी से बाहर हो चुके पूर्व राज्यसभा सांसद पवन वर्मा के मुताबिक, ‘ऐसा लगता है कि भाजपा नीतीश कुमार को अपना कनिष्ठ सहयोगी बनाने में कामयाब हो गई है- जोकि चिराग पासवान की गतिविधियों के पीछे की मंशा थी।’

यह पहला मौका नहीं है जब लोजपा ने अकेले चुनाव लड़ा है। 2005 में रामविलास पासवान की अगुआई में एलजेपी अकेले चुनाव लड़ी थी और 29 सीटों पर जीत हासिल की थी। उस वक्त रामविलास पासवान ने नीतीश कुमार का नेतृत्व मानने से इनकार कर दिया था। यही हाल 2020 में भी हुआ और चिराग पासवान ने नीतीश कुमार का नेतृत्व मानने से इनकार करते हुए अकेले चुनाव लड़ा।

दरअसल, चिराग पासवान ने रणनीति पर काम करते हुए सधे अंदाज में नीतीश पर निशाने साधने शुरू किए। जैसे-जैसे चुनाव का दौर आगे बढ़ा, चिराग की रैलियों में भी हजारों की भीड़ उमड़ने लगी। वे हरेक रैली में नीतीश कुमार के शासन पर जोरदार प्रहार करते रहे। साथ ही लोगों से अपील करते कि नीतीश को सबक सिखाने के लिए वे उन्हें वोट दें। यह भी कहते कि यदि किसी सीट पर लोजपा के उम्मीदवार उपलब्ध न हो तो वहां भाजपा को मत दें।