सर्वोच्च न्यायालय ने गुरुवार को एक फैसले में कहा कि केवल शिक्षा लोगों को सही और गलत में भेद करने की शक्ति देती है और बेहतर प्रशासन सुनिश्चित करने के लिए हरियाणा में पंचायत चुनावों में उम्मीदवारी के लिए शैक्षणिक योग्यता तय करना अनुचित नहीं है। न्यायमूर्ति जे चेलामेश्वर और न्यायमूर्ति एएम सप्रे के पीठ ने हरियाणा पंचायती राज (संशोधन) कानून 2015 में हालिया संशोधनों की वैधता को बरकरार रखते हुए यह टिप्पणी की। यह कानून पंचायत चुनाव लड़ने के लिए उम्मीदवारों के लिए न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता सहित विभिन्न मानदंड तय करता है। पीठ ने कानून में तय उस एक मानदंड को भी कायम रखा जिसमें कहा गया कि पंचायत चुनावों में उम्मीदवार के लिए उसके घर में शौचालय होना अनिवार्य है। शीर्ष अदालत ने कहा, किसी भी निकाय संस्था का एक मुख्य कर्तव्य अपने क्षेत्र में साफ सफाई रखना है।

पीठ ने कहा कि जो निकाय संस्थाओं में निर्वाचित होना चाहते हैं और उन्हें चलाना चाहते हैं उन्हें दूसरों के लिए उदाहरण तय करना चाहिए। फैसले में कानून की वैधता बरकरार रखी गई जिसमें पंचायत चुनाव लड़ने के लिए सामान्य श्रेणी के उम्मीदवारों के लिए मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण करना जरूरी योग्यता बनाया गया है जबकि महिला (सामान्य वर्ग) और अनुसूचित जाति वर्ग के उम्मीदवारों के लिए आठवीं पास होना जरूरी है।

अनुसूचित जाति वर्ग की महिला उम्मीदवारों के लिए सरपंच का चुनाव लड़ने के लिए न्यूनतम योग्यता पांचवीं कक्षा है। न्यायमूर्ति सप्रे ने कहा, इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि पुरुष और महिला दोनों के लिए शिक्षा जरूरी है क्योंकि दोनों मिलकर स्वस्थ्य और शिक्षित समाज बनाते हैं।