कांग्रेस सांसद और लोकसभा में विपक्षी नेता राहुल गांधी से प्रवर्तन निदेशालय एक बार फिर पूछताछ कर सकता है। इस मामले में आधिकारिक तौर पर बयान सामने नहीं आया है। हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक ईडी नेशनल हेराल्ड मामल में उनसे पूछताछ करना चाहती है। इससे पहले ईडी ने इसी मामले में उनसे जून 2022 में भी पूछताछ की थी। तब ईडी ने करीब 4 दौर की पूछताछ की थी। ईडी ने राहुल गांधी से 40 से अधिक सवाल पूछे थे। ईडी इस मामले में सोनिया गांधी से भी पूछताछ कर चुकी है।
नेशनल हेराल्ड का क्या है मामला?
पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 1938 में द नेशनल हेराल्ड की स्थापना की थी। इसका प्रकाशन असोसिएटेड जर्नल लिमिटेड (AJL) करता था। कुछ समय बाद AJL को गैर व्यावसायिक कंपनी के रूप स्थापित किया गया। इसे कंपनी एक्ट धारा 25 के तहत कर मुक्त भी कर दिया गया। AJL अंग्रेजी के नेशनल हेराल्ड का तो प्रकाशन करता ही था, इसके साथ ही वह उर्दू में कौमी आवाज और हिंदी में नवजीवन भी प्रकाशित करता था। इसकी दिल्ली, मुंबई, लखनऊ, पटना और पंचकुला सहित विभिन्न शहरों में प्रमुख अचल संपत्तियां हैं।
2008 तक इसका प्रकाशन जारी रहा। इसके बाद कंपनी को घाटे में दिखाकर इसका प्रकाशन बंद कर दिया गया। कंपनी की एक संपत्ति दिल्ली में 5ए हेराल्ड हाउस, बहादुरशाह जफर मार्ग, नई दिल्ली में स्थित थी। मामला तब चर्चा में आया जबअखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (AICC) जो कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की सर्वोच्च संस्था है, उसने कंपनी को 2010 तक इंटरेस्ट फ्री लोन दिया।
नेशनल हेराल्ड केस कब चर्चा में आया?
AICC के लोन देने के बाद 2010 के अंत तक AJL का कर्ज बढ़कर 90.21 करोड़ रुपये हो गया था। 23 नवंबर 2010 को यंग इंडियन प्राइवेट लिमिटेड (YIL) नामक नया ऑर्गेनाइजेशन बना। कंपनी के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स थे गांधी परिवार के वफादार सैम पित्रोदा और सुमन दुबे। हालांकि कंपनी की संस्थापन के तुरंत बाद दोनों निदेशकों ने अपने शेयर्स कांग्रेस नेता ऑस्कर फर्नांडीस, सोनिया गांधी, राहुल गांधी और मोती लाल वोरा (अब मृतक) को हस्तांतरित कर दिया।
13 दिसंबर, 2010 को राहुल गांधी को यंग इंडियन के निदेशक के रूप में नियुक्त किया गया और 22 जनवरी, 2011 को सोनिया गांधी निदेशक के रूप में बोर्ड में शामिल हुईं। मार्च 2017 तक कंपनी में सोनिया गांधी और राहुल गांधी हिस्सेदारी 38-38 प्रतिशत हो गयी यानी कुल 76 प्रतिशत। वोरा और फर्नांडीस के पास हिस्सेदारी बची 24 प्रतिशत। यंग इंडिया ने तब तक खुद को एक चैरिटेबल ऑर्गनाइजेशन के तौर पर पंजीकृत कर लिया, जिससे वह 100% कर छूट के योग्य हो गया। दिलचस्प बात यह है कि साल 2010 में यंग इंडिया मात्र 5 लाख रुपये में बनी थी। ALJ का अधिग्रहण करते वक्त यंग इंडियन पास 50 लाख रुपये भी नहीं था। अधिग्रहण के लिए यंग इंडिया को मेसर्स डोटेक्स मर्चेंडाइज प्राइवेट लिमिटेड, कोलकत्ता से 1 करोड़ रुपये का लोन लेना पड़ा था।