भारतीय अर्थव्यवस्था दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुकी है। वर्ष 2030 तक सौ फीसद साक्षरता प्राप्त कर, 6.69 खरब डालर के साथ दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी तथा वर्ष 2047 तक 30 खरब डालर की अर्थव्यवस्था के साथ देश विकसित भारत का सपना देख रहा है। यह जनांकिकी लाभांश प्राप्त करने के लिए अपने कार्यबल का उपयोग कर आर्थिक विकास की मजबूत बुनियाद रखने को तत्पर है। पर यह भी तथ्य है कि भारत में प्रतिव्यक्ति आय जी-20 देशों में सबसे कम है। भारत के सामने बढ़ती बेरोजगारी, गहराती आय असमानता, गरीबी, अकुशल श्रमबल, मुद्रास्फीति जैसी अनेक आर्थिक चुनौतियां हैं, पर इसमें सर्वाधिक चिंताजनक है बढ़ती बेरोजगारी। समझना होगा कि निरंतर उच्च आर्थिक विकास दर के दौरान श्रमबल का समुचित उपयोग न हो सकने के कारण बढ़ती बेरोजगारी, अर्थव्यवस्था के समक्ष एक गंभीर समस्या है।

भारत में रोजगार के मापदंड ढीले-ढाले हैं। अगर कोई व्यक्ति सर्वेक्षण से पूर्व एक वर्ष में ‘अपेक्षाकृत लंबे हिस्से’ तक कार्यरत था, नियोजित तथा न्यूनतम तीस दिनों के लिए कार्यरत था, तो उसे ‘सबसिडियरी स्टेटस’ में नियोजित माना जाता है। इस मापदंड के अनुसार 2022-23 में 3.2 फीसद भारतीय बेरोजगार थे। इन दोनों स्थितियों को वार्षिक श्रम भागीदारी दर (एलपीआर) रपट में शामिल किया जाता है। ‘युजुअल स्टेटस’ में ‘प्रिंसिपल स्टेटस’ और ‘सबसिडियरी स्टेटस’ शामिल होते हैं। अगर कोई व्यक्ति सर्वेक्षण से पहले के सात दिनों के दौरान न्यूनतम एक घंटे के लिए भी कार्यरत है, तो उसे ‘युजुअल स्टेटस’ में नियोजित माना जाता है। इस मापदंड से जनवरी-मार्च 2024 में 6.7 फीसद भारतीय बेरोजगार थे।

आर्थिक सुधारों के दौर में रोजगार विहीन वृद्धि दर, अर्थव्यवस्था में बेरोजगारों की फौज बढ़ाने के साथ-साथ देश में बढ़ती सामाजिक और आर्थिक असमानता का कारण बन रही है। विगत डेढ़ दशक में बेरोजगारी दर 2008 में लगभग 5.5 फीसद से बढ़कर वर्ष 2020 में 8 फीसद, वर्ष 2022 में 7.33 फीसद, वर्ष 2023 में 8 फीसद तथा जून 2024 में बढ़कर 9.2 फीसद हो गई। ‘सेंटर फार मानिटरिंग इंडियन इकोनामी’ (सीएमआइई) के अनुसार, भारत में बेरोजगारी दर जून 2024 में 9.2 फीसद थी, जो मई 2024 में 7 फीसद से अधिक थी। सीएमआइई के अनुसार जून 2024 में महिला बेरोजगारी राष्ट्रीय औसत से अधिक, 18.5 फीसद तक पहुंच गई। यह बेरोजगारी दर पिछले वर्ष इसी अवधि के 15.1 फीसद से अधिक थी। भारत के एलपीआर जून 2023 में 39.9 फीसद से बढ़कर मई 2024 में 40.8 फीसद और जून 2024 में 41.4 फीसद हो गई। इसी अवधि में ग्रामीण बेरोजगारी दर मई के 6.3 फीसद से बढ़कर जून में 9.3 फीसद हो गई।

मानव विकास और अंतरराष्ट्रीय श्रम रिपोर्ट

मानव विकास संस्थान और अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन द्वारा संयुक्त रूप से तैयार भारत रोजगार रपट 2024 के अनुसार, भारत की कार्यशील आबादी वर्ष 2011 में 61 फीसद से बढ़कर वर्ष 2021 में 64 फीसद हो गई और वर्ष 2036 में इसके 65 फीसद होने का अनुमान है। वर्ष 2022 में आर्थिक गतिविधियों में युवाओं का हिस्सा घटकर 37 फीसद रह गया। वर्ष 2022-23 के एलपीआर के अनुसार भारत में कार्य करने योग्य आयु समूह की आबादी 107.3 करोड़ है, जिसमें 55.1 करोड़ पुरुष तथा 52.2 करोड़ महिलाएं हैं। इसमें 57.9 फीसद यानी 62.9 करोड़ आबादी श्रमबल मे सम्मिलित थी, जबकि 44.4 करोड़ श्रमबल में सम्मिलित नहीं थी। एलपीआर 78.5 फीसद के साथ 43.3 करोड़ कार्यशील पुरुष हैं, जबकि 1.4 करोड़ यानी 3.3 फीसद बेरोजगार हैं। वहीं एलपीआर 37 फीसद के साथ 19.3 करोड़ कार्यशील महिलाएं हैं तथा 60 लाख यानी 2.9 फीसद बेरोजगार हैं।

रोजगार प्राप्त श्रमबल में सर्वाधिक 57.3 फीसद हिस्सा स्वरोजगार का है, जबकि 21.8 फीसद लोग गैरनियमित रोजगार में हैं। सबसे कम 20.9 फीसद लोग नियमित वेतन वाली नौकरियों में हैं। भारत में लोगों की सर्वाधिक पसंदीदा सरकारी नौकरी में मात्र 2.4 फीसद यानी डेढ़ करोड़ व्यक्ति नियोजित हैं। इसके रोजगार परिदृश्य का सर्वाधिक दुखद पक्ष यह है कि पढ़े-लिखे लोगों में अपेक्षाकृत अधिक बेरोजगारी है, जो निरंतर बढ़ रही है। निरक्षर व्यक्तियों में बेरोजगारी दर 0.2 फीसद, माध्यमिक तक शिक्षा प्राप्त लोगों में 2.2 फीसद, माध्यमिक तथा उससे अधिक शिक्षित व्यक्तियों में बेरोजगारी दर 7.3 फीसद है।

केरल में युवा बेरोजगारी दर सबसे ज्यादा

भारत के अपेक्षाकृत विकसित राज्यों में बेरोजगारी की स्थिति अधिक चिंताजनक है। केरल में बेरोजगारी सात फीसद, गोवा में 9.7 फीसद, तमिलनाडु में 5.6 फीसद है, जबकि मध्यप्रदेश में 1.6 फीसद, झारखंड में 1.7 फीसद, गुजरात में 1.7 फीसद, उत्तर प्रदेश में 2.4 फीसद तथा पश्चिम बंगाल में 2.2 फीसद है। अपेक्षाकृत विकसित राज्यों में युवा बेरोजगारी और चिंताजनक है। केरल में युवा बेरोजगारी 28.7 फीसद, गोवा में 27.4 फीसद के साथ कुल बेरोजगारी से चार गुना अधिक है। तमिलनाडु में 17.5 फीसद सहित गोवा, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र में युवा बेरोजगारी बहुत अधिक है, जबकि मध्यप्रदेश में 4.4 फीसद, झारखंड में 4.7 फीसद, गुजरात में 5.1 फीसद, उत्तर प्रदेश में सात फीसद तथा पश्चिम बंगाल में 7.1 फीसद है। दिसंबर 2022 में रिजर्व बैंक आफ इंडिया की रपट के अनुसार हरियाणा में भारत में सबसे अधिक बेरोजगारी दर 37.4 फीसद थी, जबकि ओड़ीशा में सबसे कम 0.9 फीसद थी।

श्रम बाजार की दो मुख्य दिक्कतें

आर्थिक सर्वेक्षण 2022-23 के अनुसार, देश की 65 फीसद आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है, जिसमें 47 फीसद की आजीविका कृषि पर निर्भर है। पर्याप्त आय का अभाव, अकुशल श्रमबल, निरक्षरता, अदृश्य बेरोजगारी, मौसमी बेरोजगारी, गैर-कृषि रोजगार की कमी जैसी अनेक समस्याएं ग्रामीण श्रमिकों के सामने हैं। नब्बे फीसद से अधिक कार्यबल अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में है। असंगठित श्रमिकों के सामने अल्प आय, कार्य में अनिरंतरता, सामाजिक सुरक्षा तथा श्रम कल्याण के उपायों का अभाव जैसी अनेक समस्याएं हैं। भारतीय श्रम बाजार की दो मुख्य दिक्कतें हैं। पहली, देश के युवाओं (15-29 वर्ष) में समग्र कार्यबल की तुलना में उच्च बेरोजगारी दर बरकरार है। दूसरी, लैंगिक असमानता का उच्च स्तर है। महिलाओं के लिए उपलब्ध रोजगार के अवसरों में सुधार का कोई संकेत नहीं है। 2024 की पहली तिमाही के दौरान युवा बेरोजगारी दर 17 फीसद थी, जो कामकाजी उम्र की आबादी में बेरोजगारी से ढाई गुना अधिक थी। युवा महिला श्रमिकों में बेरोजगारी दर और अधिक, 22.7 फीसद थी।

भारत में बेरोजगारी दर आंतरिक तथा वैश्विक घटनाओं से प्रभावित होती रही है। वर्ष 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था में मंदी के कारण विभिन्न क्षेत्रों में रोजगार के अवसर कम हुए। नोटबंदी के कारण खासकर अनौपचारिक क्षेत्र में व्यवधान के परिणामस्वरूप बेरोजगारी बढ़ी। जीएसटी के अल्पकालिक व्यवधानों ने छोटे तथा मझोले उद्यमों सहित अन्य कारोबार और रोजगार को प्रभावित किया। वैश्विक महामारी तथा बाद की अंतरराष्ट्रीय अशांति के कारण उत्पन्न वैश्विक बेरोजगारी तथा मुद्रास्फीति के दबावों ने भारतीय अर्थव्यवस्था में बेरोजगारी को बढ़ावा दिया। बढ़ती बेरोजगारी उपभोग व्यय, आर्थिक विकास और रोजगार के अवसरों को दुष्प्रभावित कर भारतीय अर्थव्यवस्था के सम्मुख मुश्किलें खड़ी करती रही है।