Manmohan Singh Role in Indian Economy: पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह एक ऐसे राजनेता थे जिन्हें बहुत कम बोलने के लिए पहचाना जाता था। उनकी विनम्रता, शालीनता के सभी लोग कायल थे। मनमोहन सिंह ने कभी भी बहुत ज्यादा नहीं बोला। साल 2016 में जब उनसे यह पूछा गया कि देश में शीर्ष पदों पर रहने के बाद भी उन्होंने कोई संस्मरण क्यों नहीं लिखा तो उनका जवाब था- “सच्चाई दुख देती है और मैं किसी को दुख नहीं पहुंचाना चाहता।”
अगर मनमोहन सिंह से उनके जीवन के बारे में कोई कुछ बुलवा सका तो वह उनकी बेटी दमन सिंह थीं। दमन सिंह ने अपनी किताब ‘Strictly Personal: Manmohan and Gurshararn’ में अपने माता-पिता के बारे में लिखा था।
प्रधानमंत्री के रूप में 10 साल के कार्यकाल के बाद मनमोहन सिंह ने अपनी आखिरी प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था कि शायद इतिहास मीडिया की तुलना में उनके लिए ज्यादा दयालु होगा।

मनमोहन सिंह ने देश में हो रहे बदलावों को काफी नजदीकी से देखा था। लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था, लाइसेंसी राज का दौर, उद्योगों और उद्यमियों का प्रेशर और फिर ठहरी हुई इकनॉमी को सुधारने के लिए कदम बढ़ाए। सिंह ने सुखमय चक्रवर्ती समिति पर हस्ताक्षर किए और फिर वित्त मंत्रालय में रहते हुए कई सुधार किए।
उस दौर में अपने सहयोगियों के साथ तमाम मतभेदों के बावजूद भी जब बहुत सारे लोग उनके आर्थिक सुधार के तरीकों से सहमत नहीं थे लेकिन ऐसे लोग भी इस बात को मानते थे कि वह एक ईमानदार आदमी हैं।
मनमोहन सिंह और पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव 1990 के दशक में बदलते वैश्विक हालात को लेकर अलर्ट थे। मनमोहन सिंह जिनेवा में साउथ कमीशन से लौटे थे जबकि राव विदेश मंत्री के रूप में सोवियत संघ और पूर्वी यूरोप में हुई उथल-पुथल को समझते थे। पॉलिसी मेकर से पॉलिटिशयन यानी वित्त मंत्री बने मनमोहन सिंह जानते थे कि भारत के पास समय कम है।
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बजट के दौरान किया था “Victor Hugo” पल का जिक्र
1991 के बजट में मनमोहन सिंह ने “Victor Hugo” पल का जिक्र किया था। उन्होंने कहा था, “दुनिया की कोई भी ताकत उस विचार को नहीं रोक सकती जिसका वक्त आ गया हो। भारत का आर्थिक शक्ति के रूप में उभरना ऐसा ही एक विचार है।” जुलाई, 2016 में इंडियन एक्सप्रेस को दिए एक इंटरव्यू में मनमोहन सिंह ने कहा था, “मुसीबत के समय हम एक्ट करते हैं। उसके बाद हम पुरानी स्थिति पर लौट आते हैं।”
प्रणब मुखर्जी के वित्त मंत्री रहते हुए मनमोहन सिंह को आरबीआई गवर्नर बने रहने के लिए मनाना आसान नहीं था क्योंकि उस दौरान एक विदेशी बैंक- बीसीसीआई के लाइसेंस को लेकर विवाद चल रहा था। बाद में यह बैंक बंद हो गया था।
मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री रहते हुए अपने कार्यकाल के दौरान कई प्रभावशाली अर्थशास्त्रियों को अपने साथ लाने में कामयाब रहे। इनमें एक नाम रघुराम राजन का भी है। मनमोहन सिंह ने रघुराम राजन को अपना सलाहकार नियुक्त किया था। उन्होंने आर्थिक सुधारों की समीक्षा करने के लिए जगदीश भगवती और टीएन श्रीनिवासन को भी सरकार में शामिल किया। शायद इससे पहले किसी सरकार ने ऐसा नहीं किया था।
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2008 में जब वैश्विक वित्तीय संकट की आहट हुई थी, तब अमेरिका के साथ न्यूक्लियर डील और भारत के घरेलू संकटों के कारण मनमोहन सिंह को देश में आलोचना का सामना करना पड़ रहा था। उस वक्त भी दुनिया भर के कई नेता उनसे सलाह लेते थे। इनमें ज्यादातर नेता ऐसे थे जो अमीर देशों के क्लब G8 में शामिल थे।
मनमोहन सिंह एक कुशल अर्थशास्त्री, केंद्रीय बैंक के गवर्नर, वित्त मंत्री और इस सबसे के बाद प्रधानमंत्री, निश्चित रूप से इतनी भूमिकाओं को निभा पाना किसी के लिए भी आसान नहीं होगा।