मंदी का असर इस कदर हावी है कि देश में बिजली की खपत घट गई है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण औद्योगिक और घरेलू उपभोग की डिमांड में कमी आना है। हालात ऐसे हैं कि 133 थर्मल पावर स्टेशन को बंद करना पड़ा है। 11 नवंबर को कोयले के 262, लिग्नाइट और न्यूक्लियर यूनिट्स को विभिन्न वजहों से बंद करना पड़ा। इनमें से डिमांड में कमी की वजह से तकरीबन 133 यूनिट्स बंद कर दिए गए।

ग्रिड प्रबंधकों के साथ मुहैया कराए गए आधिकारिक आंकड़ों और ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ द्वारा किए गए विश्लेषण के मुताबिक देश की कुल स्थापित उत्पादन क्षमता (Thermal Power Production) 3,63,370 मेगावाट की 7 नवंबर को सबसे ज्यादा डिमांड आधे से भी कम लगभग 1,88,072 मेगावाट रही। गौरतलब है कि भारत के उत्तरी और पश्चिम हिस्स में कुल 119 थर्मल पावर स्टेशंस हैं, जिन्हें “रिजर्व शटडाउन” का सामना करना पड़ा है। यानी की मांग में कमी के चलते यूनिट्स को बंद करना पड़ा है।

सेंट्रल इलेक्ट्रिसिटी अथॉरिटी (CEA) द्वारा 7 नवंबर को जारी ऑपरेशन से संबंधित परफॉर्मेंस रिपोर्ट में बताया गया है कि जिन सभी यूनिट्स को फोर्स्ड-शटडाउन (Forced Shutdown) का सामना करना पड़ा उनकी कुल क्षमता 65,133 मेगावाट से अधिक की थी। चिंता की बात ये है कि इनमें से अधिकांश यूनिट्स को कभी कुछ दिन या कभी चंद महीनों के लिए बंद रखा गया।

हालांकि, इसके अलावा आधिकारिक आंकड़ों पर गौर करें तो सामान्य तौर पर “वाटर वॉल ट्यूब में लीकेज” जैसी तकनीकी वजहों के चलते दर्जन भर से ज्यादा प्लांट बंद पड़े हुए हैं। सीईए के एक अधिकारी के आंकड़े के मुताबिक इस खराबी को ठीक करने में मात्र कुछ दिन का ही वक्त लगता है। लेकिन, सच्चाई ये है कि यह कई दिनों तक ऐसे ही रह जाते हैं और सामान्य तौर पर बाहर संदेश जाता है कि मांग घटने की वजह से बिजली की आपूर्ति कम हो चुकी है।

गौरतलब है कि राष्ट्रीय स्तर पर अक्टूबर और मध्य नंवबर के बाद डिमांड में रफ्तार आती है। लेकिन, इस साल मानसून के आगे खीसकने और सर्दियों के जल्द शुरू होने से इसके कंजप्शन के ट्रेंड पर आंशिक प्रभाव जरूर पड़ा है। इस साल अक्टूबर में बिजली की मांग में साल दर साल के हिसाब से 13 फीसदी की गिरावट आई है, जो एक दशक में सबसे अधिक है। सीईए के आंकड़ों के मुताबिक आद्योगिक राज्य गुजरात और महाराष्ट्र में बजिली की मांग काफी तेजी से कम हुई है। गुजरात में 19, जबकि महाराष्ट्र में 22 फीसदी उत्पादन कम उत्पादन हुआ है।