रूस पर लगाए गए तमाम आर्थिक प्रतिबंधों के पूरी दुनिया पर दूरगामी प्रभाव पड़ सकते हैं। इसकी मुख्य वजह है- विमानन, समुद्री और कार उद्योगों में इस्तेमाल किया जाने वाला रूसी कच्चा माल। इसके अलावा दुुनिया भर में गेहूं की आपूर्ति प्रभावित होगी। बैंकिंग प्रणाली पर असर दिखने भी लगा है। दुनिया के विभिन्न बैंकों के रूस में 120 अरब डालर फंसे हुए हैं। यूक्रेन पर रूसी हमले ने वैश्विक अर्थव्यवस्था में अनिश्चितता को बढ़ा दिया है।
अमेरिका का विमानन उद्योग
आर्थिक प्रतिबंधों से कई अमेरिकी कंपनियों का आयात, खासकर टाइटेनियम आयात प्रभावित होगा, जो विमान बनाने के लिए महत्त्वपूर्ण अवयव है। यूक्रेन पर हमला करने के बाद अमेरिका और यूरोप ने रूसी बैंकों, रूसी रईसों और अन्य संस्थाओं पर वित्तीय प्रतिबंध लगाए हैं। हालांकि, रूसी कमोडिटी निर्यातक वीएसएमपीओ-एवीआइएसएमए पर अभी तक कोई प्रतिबंध नहीं लगा है, जो विमान निर्माता कंपनी बोइंग और एअरबस को टाइटेनियम की आपूर्ति करता है। एयरबस ने कहा है कि वह अपनी आधी टाइटेनियम मांग के लिए रूस पर निर्भर है। कुछ रूसी बैंकों को वैश्विक वित्तीय प्रणाली स्विफ्ट से भी अलग कर दिया है। यह कदम टाइटेनियम सहित कई रूसी निर्यातों की आपूर्ति को भी प्रभावित कर सकता है।
टाइटेनियम पर निर्भरता
टाइटेनियम स्पंज कीमती धातु टाइटेनियम खनिज कणों से बनता है और इसका इस्तेमाल कई उद्योगों में किया जाता है। चीन इस समय दुनिया में टाइटेनियम स्पंज का सबसे बड़ा उत्पादक है। यूएस जियोलाजिकल सर्वे के मुताबिक पिछले साल वैश्विक टाइटेनियम उत्पादन 2,10,000 टन था, जिसमें चीन का 57 फीसद हिस्सा था। जापान 17 फीसद के साथ दूसरे और रूस 13 फीसद के साथ तीसरे स्थान पर था।
पिछले साल कजाखस्तान ने 16,000 टन और यूक्रेन ने 3,700 टन का उत्पादन किया था। जाहिर है, रूस का टाइटेनियम भंडार बहुत बड़ा नहीं है, लेकिन वह इस क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। यूएसजीएस का कहना है, वर्ष 2021 में यूक्रेन टाइटेनियम खनिज का प्रमुख स्रोत था, जिसे रूस में आयात किया गया था। यूएसजीएस का अनुमान है कि यूक्रेन ने पिछले साल 5,25,000 टन टाइटेनियम खनिज सांद्र का उत्पादन किया था।
आयात करने वाले प्रमुख देश
आयात और निर्यात कंसल्टेंसी सीआरयू का कहना है कि चीन टाइटेनियम का दुनिया का सबसे बड़ा खरीदार है, जिसने पिछले साल 16,000 टन से अधिक टाइटेनियम स्पंज खरीदा। अमेरिका ने 2020 में 19,000 टन ऐसे स्पंज का आयात किया, लेकिन एक साल बाद यह आयात घटकर 16,000 टन हो गया। जापान, चीन और अमेरिका को सबसे अधिक टाइटेनियम स्पंज निर्यात करता है। सीआरयू के मुताबिक कोरोना महामारी के बाद निर्माण और विमानन उद्योगों में हालिया सुधार ने टाइटेनियम स्पंज की कीमत बढ़ा दी है। इस धातु का इस्तेमाल मुख्य रूप से विमानन उद्योग में किया जाता है।
बैंकों के फंसे 120 अरब डालर
बैंक आॅफ इंटरनेशनल सेंटलमेंट के आंकड़ों के मुताबिक रूस में विदेशी बैंकों के 120 अरब डालर फंसे हैं। सबसे ज्यादा रकम 25 अरब डालर इटली और फ्रांस के बैंकों की है। दूसरे नंबर पर अमेरिकी बैंक हैं, जिनके 14.7 अरब डालर रूस में लगे हैं। अमेरिका के सिटी बैंक के रूस में उसके 10 अरब डालर लगे हैं। रूसी ऋण प्रतिभूतियों (डेट सिक्योरिटीज) में 79 अरब डालर का विदेशी निवेश है। इस बीच, ब्रिटेन की तेल और गैस कंपनी बीपी ने रूसी तेल कंपनी रोजनेफ्ट में अपनी हिस्सेदारी बेचने का एलान किया है। बीपी के तेल और गैस भंडार का करीब 50 फीसद रिजर्व रोजनेफ्ट के पास है।
खाद्य संकट
युद्ध के दौर में अब जल्द ही भोजन की कमी का संकट सामने आने वाला है। मध्य पूर्व के गृहयुद्ध से तबाह हुए देश यमन में तो इस संकट ने दस्तक दे दी है। गृहयुद्ध से बेहाल यमन में लोग अब आटा खरीदने के लिए बेताब हैं। विश्व खाद्य कार्यक्रम (डब्ल्यूएफपी) ने पिछले सप्ताह कहा था कि यूक्रेन संकट से ईंधन और खाद्य कीमतों में और वृद्धि हो सकती है। यमन के कई हिस्सों में, पिछले एक साल में खाद्य कीमतों में दोगुने से अधिक की वृद्धि हुई है। रूस और यूक्रेन दुनिया का लगभग 29 फीसद गेहूं पैदा करते हैं। अब दोनों देशों के बीच युद्ध छिड़ गया है, जिससे वैश्विक गेहूं निर्यात में बाधाएं बढ़ रही हैं और गेहूं की कीमत तेजी से बढ़ रही है। यमन में संघर्ष और महंगाई ने लाखों लोगों को अकाल की ओर धकेल दिया है।
रूसी कारोबार में लगा धन
बैंकों के अलावा युद्ध से उन कारोबारों को भी उल्लेखनीय नुकसान हो रहा है, जिनके रूस में हित हैं। जिस कंपनी का धन रूसी कारोबारी के पास है, उसे वापस पाने में संघर्ष करना पड़ेगा क्योंकि रूबल के दाम में 30 फीसद की गिरावट आई है और स्विफ्ट पाबंदी से भुगतान में परेशानी आएगी। अमेरिकी कंपनियों का 15 अरब डालर रूस में फंसा है। इनमें से अधिकतर राशि को बट्टा खाता में डालना पड़ सकता है जिससे इन्हें नुकसान होगा। एक खतरा यह है कि इससे इन कंपनियों के शेयरों की बिकवाली भय से होगी जिससे बाजार को झटका लगेगा, जैसा कि 2007-2008 में बैंकों के साथ हुआ था।
क्या कहते हैं जानकार
मनोवैज्ञानिक युद्ध भी रणनीति का ही हिस्सा होता है। यह बात सही है कि रूस की फौजें बहुत ताकतवर हैं, लेकिन रूस को अपने राजनीतिक मकसद यानी यूक्रेन के राष्ट्रपति को हटाने में बहुत दिक्कत आएगी। रूसी फौजों को शहरों में लंबी लड़ाई लड़नी होगी। जानमाल का नुकसान बहुत होगा। इसका आर्थिक असर तो होगा ही।
- जनरल वीपी मलिक, पूर्व थल सेनाध्यक्ष
पहले भी जब शीत युद्ध चल रहा था, तब अमेरिका और नाटो ने कभी भी रूस या वारसा संधि को यूरोप में सीधे-सीधे चुनौती नहीं दी। विकासशील देशों में, एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में उनके छद्म युद्ध चले, लेकिन यूरोप में कभी भी सीधे-सीधे सैन्य टकराव नहीं किया गया। इस बार आर्थिक प्रतिबंध लगाकर अमेरिका को अपने पीछे यूरोप को एकजुट करने में सफलता मिली है।
मीरा शंकर, अमेरिका में भारत की पूर्व राजदूत