मानव गतिविधियों के कारण पिछले कुछ दशकों में पारिस्थितिकी संतुलन इस हद तक प्रभावित हुआ है कि अनेक प्रजातियों का अस्तित्व संकट में पड़ गया है। अनुमान है कि दस लाख से अधिक प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा है। दुनिया के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का आधे से ज्यादा हिस्सा प्रकृति पर निर्भर है, लेकिन जैव विविधता का नुकसान वित्तीय स्थिरता और आजीविका के लिए एक बढ़ता हुआ खतरा बन गया है। मौजूदा वित्तीय प्रवाह सरकारों के लिए राष्ट्रीय जैव विविधता लक्ष्यों को पूरा करने के लिए अपर्याप्त है, खासकर निम्न से मध्यम आय वाले देशों में। हालांकि जैव विविधता संरक्षण में वार्षिक 143 अरब डालर का निवेश किया जाता है, लेकिन यह प्रतिवर्ष आवश्यक अनुमानित 824 अरब डालर से कम है।
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुतारेस ने प्रकृति और विकास के लिए दीर्घकालिक वित्तपोषण को बढ़ावा देने के लिए कम से कम 500 अरब डालर के प्रोत्साहन का आह्वान किया है। विश्व वन्यजीव कोष (डब्लूडब्लूएफ) के अनुसार, वर्तमान खाद्य प्रणाली में खराब स्वास्थ्य और पर्यावरणीय गिरावट की छिपी लागत सालाना दस से पंद्रह लाख करोड़ अमेरिकी डालर है, जो 2020 में वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का 12 फीसद थी।
पारिस्थितिकी तंत्रों में देखी जा रही है भारी गिरावट
दुनिया भर के विभिन्न पारिस्थितिकी तंत्रों में भारी गिरावट देखी जा रही है, जिससे संपूर्ण जैव विविधता अस्थिर होती जा रही है। पृथ्वी पर विभिन्न प्रजातियों की निगरानी से पता चला है कि पिछले पचास वर्षों में जैव विविधता में तेजी से गिरावट आई है। डब्लूडब्लूएफ की 10 अक्तूबर 2024 को जारी ‘लिविंग प्लैनेट रपट 2024’ ने वैश्विक जैव विविधता संकट की एक गंभीर तस्वीर पेश की थी। डब्लूडब्लूएफ द्वारा विकसित ‘लिविंग प्लैनेट इंडेक्स’ (एलपीआइ) इस गिरावट को मापने का एक प्रभावी तरीका प्रदान करता है। रपट के अनुसार, 1970 के बाद से वैश्विक वन्यजीव आबादी में औसतन 73 फीसद गिरावट दर्ज की गई है। यह रपट जैव विविधता के संकट और तत्काल संरक्षण प्रयासों की आवश्यकता को रेखांकित करती है।
दुनिया भर में रह रहे 75 फीसदी शरणार्थी गरीब, 50 फीसद लोगों को ही मिल पाता है रोजगार
रपट के अनुसार, मीठे पानी की प्रजातियां सबसे ज्यादा प्रभावित हुई हैं, जिनकी संख्या में 85 फीसद तक गिरावट आई है। इसके अलावा, स्थलीय प्रजातियों में 69 फीसद और समुद्री प्रजातियों में 56 फीसद की गिरावट दर्ज की गई है। क्षेत्रीय स्तर पर देखा जाए तो लैटिन अमेरिका और कैरिबियाई क्षेत्र में जैव विविधता में 95 फीसद तक की कमी आई है, जबकि अफ्रीका में यह 76 फीसद दर्ज की गई। एशिया-प्रशांत क्षेत्र में जैव विविधता 60 फीसद तक घट गई है, जबकि यूरोप में तुलनात्मक रूप से कम, 35 फीसद गिरावट दर्ज हुई है। हालांकि, मध्य एशिया और उत्तरी अमेरिका में क्रमश: 35 फीसद और 39 फीसद की गिरावट देखी गई है। इस गिरावट के कारणों में मुख्य रूप से आवास खत्म होना, अत्यधिक दोहन, जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण और आक्रामक प्रजातियों का प्रसार शामिल हैं।
जानवरों के अवैध शिकार और वनों के अत्यधिक उपयोग से कई प्रजातियों के अस्तित्व पर अब मंडरा रहा है खतरा
जलवायु परिवर्तन का संबंध लैटिन अमेरिका और कैरिबियाई क्षेत्र में जनसंख्या में गिरावट से है, जबकि प्रदूषण का सबसे अधिक प्रभाव उत्तरी अमेरिका, एशिया और प्रशांत क्षेत्र में पड़ा है। लिविंग प्लैनेट रपट में ब्राजील के अटलांटिक वन (जो 2000 से अधिक वृक्ष प्रजातियों और 800 पशु प्रजातियों का निवास हैं) में किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि शिकार और अवैध व्यापार के कारण बड़े फल खाने वाले जानवरों की कमी के कारण बड़े बीज वाले वृक्षों के बीजों का फैलाव कम हो गया है। ये पेड़ अधिक कार्बन संग्रहित करते हैं और इनकी कमी के कारण छोटे मुलायम पेड़ों द्वारा इनका स्थान लेने से, वन की कार्बन संग्रहण क्षमता कम हो जाती है। इससे अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और एशिया के जंगलों में दो से बारह फीसद तक कार्बन भंडारण की हानि होने की संभावना है, जिससे जलवायु परिवर्तन के कारण उष्ण कटिबंधीय वनों की कार्बन भंडारण क्षमता कम हो जाएगी।
वनों की कटाई, शहरीकरण और उद्योगीकरण के कारण प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र तेजी से नष्ट हो रहा है। विशेष रूप से वर्षावन, घास के मैदान और आर्द्रभूमि तेजी से लुप्त हो रहे हैं। उदाहरण के लिए, अमेजन वर्षावन, जिसे ‘पृथ्वी का फेफड़ा’ कहा जाता है, तेजी से खत्म होने की ओर बढ़ रहा है। जंगलों की कटाई के कारण न केवल वन्यजीवों के प्राकृतिक आवास नष्ट हो रहे हैं, बल्कि इससे कार्बन डाइआक्साइड अवशोषण की क्षमता भी प्रभावित हो रही है। जानवरों के अवैध शिकार और वनों के अत्यधिक उपयोग से कई प्रजातियों के अस्तित्व पर अब खतरा मंडरा रहा है।
उदाहरण के लिए, गैबान और कैमरून में हाथी दांत के अवैध व्यापार से हाथियों की आबादी 78 से 81 फीसद तक घट गई है। इसी प्रकार, अफ्रीकी गैंडे और बाघ भी शिकारियों के निशाने पर हैं। चिनूक सैल्मन की संख्या 1950 और 2020 के बीच 88 फीसद कम हो गई, क्योंकि बांधों ने इस प्रजाति के प्रवासी मार्ग को प्रभावित किया। दूसरी ओर, समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र भी संकट में है। अत्यधिक मछली पकड़ने और समुद्री शिकार के कारण समुद्री जैव विविधता बुरी तरह प्रभावित हुई है।
वैश्विक ताप और जलवायु परिवर्तन भी जैव विविधता के लिए बड़ा खतरा
वैश्विक ताप और जलवायु परिवर्तन भी जैव विविधता के लिए बड़ा खतरा बन चुके हैं। तापमान में वृद्धि से प्रवाल भित्तियां नष्ट हो रही हैं, आर्कटिक और अंटार्कटिक क्षेत्रों में बर्फ तेजी से पिघल रही है और महासागरों में अम्लीकरण बढ़ रहा है। डब्लूडब्लूएफ की रपट के अनुसार, पृथ्वी की जीवन समर्थन प्रणाली अस्थिर हो रही है और यह प्रवृत्ति जारी रही, तो दुनिया बड़े पैमाने पर जैव विविधता संकट की ओर बढ़ सकती है। अमेजन वर्षावन और ग्रीनलैंड के बर्फ क्षेत्र भी खतरे की ओर बढ़ रहे हैं। इसके अलावा, बड़े पैमाने पर जंगल की आग, सूखा और अत्यधिक मौसम परिवर्तन तेजी से बढ़ रहे हैं। डब्लूडब्लूएफ की रपट के अनुसार, दुनिया की 40 फीसद रहने योग्य भूमि का उपयोग मानव खाद्य उत्पादन के लिए किया जा रहा है, फिर भी 73 करोड़ पचास लाख लोग हर रात भूखे सोते हैं। खेतों से 90 फीसद से अधिक पारंपरिक फसल किस्में लुप्त हो चुकी हैं और कई पालतू पशुओं की आधी नस्लें लुप्त हो चुकी हैं। समुद्री भोजन उत्पादन में अत्यधिक दोहन से 37.7 फीसद समुद्री मछली भंडार संकट में हैं।
दीर्घकालीन विकास के लिए खेतीबाड़ी के साथ बढ़ाने चाहिए बुनियादी उद्योग
जैव विविधता संरक्षण के लिए वैश्विक स्तर पर कई प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन वे पर्याप्त नहीं हैं। डब्लूडब्लूएफ के मुताबिक, जैव विविधता संरक्षण के लिए सरकारों, व्यवसायों और व्यक्तियों को मिल कर काम करने की आवश्यकता है। संरक्षण क्षेत्रों का विस्तार और जैव विविधता को सुरक्षित करना बेहद आवश्यक है। डब्लूडब्लूएफ रपट स्पष्ट रूप से दर्शाती है कि जैव विविधता पर संकट गहरा रहा है, लेकिन अब भी हमारे पास इसे रोकने का अवसर है। डब्लूडब्लूएफ इंटरनेशनल की महानिदेशक कर्स्टन का कहना है कि अगले पांच साल पृथ्वी पर जीवन के भविष्य के लिए अहम हैं और 2025 से 2030 के बीच लिए गए निर्णय ही यह तय करेंगे कि हम इस संकट से बच और प्रकृति के साथ सामंजस्य बना कर जीना सीख सकते हैं या नहीं।