दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को सेंट्रल विस्टा एवेन्यू में चल रहे निर्माण पर रोक लगाने की मांग वाली एक याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान तीखी बहस हुई। यहां तक कि ‘ऑशविट्ज़’ का हवाला दिया गया और परियोजना को “मौत का किला” कहा गया। बता दें कि ऑशविट्ज़ का अभिप्राय उस जगह से है जहां नाजियों द्वारा यहूदियों पर जुल्म किए जाते थे।

कोर्ट में केंद्र ने दलील दी कि जनहित याचिका “कुछ व्यक्तियों के घमंड को संतुष्ट करने” के लिए है। जवाब में याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि सरकार संदेशवाहक को ही गोली मारने का काम कर रही है और सार्वजनिक स्वास्थ्य के बारे में दिए जा रहे संदेश की परवाह नहीं कर रही है। अन्या मल्होत्रा और सोहेल हाशमी ने यह याचिका दायर की है। याचिका में कहा गया है कि परियोजना स्थल पर निरंतर निर्माण “सुपर स्प्रेडर” साबित हो सकता है। जो कि मजदूरों के लिए खतरनाक है। केंद्र ने एक लिखित जवाब में कहा कि याचिका खारिज करने योग्य है।

मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और न्यायमूर्ति ज्योति सिंह की खंडपीठ ने सोमवार को मामले में दलीलें सुनीं और फैसला सुरक्षित रख लिया। याचिकाकर्ताओं की ओर से वकील सिद्धार्थ लूथरा पेश हुए जबकि केंद्र का प्रतिनिधित्व सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने किया। जबकि शापूरजी पल्लोनजी एंड कंपनी प्राइवेट लिमिटेड की ओर से मनिंदर सिंह ने दलील रखी।

लूथरा ने कोर्ट से कहा कि जब याचिकाकर्ताओं ने अदालत का दरवाजा खटखटाया तब जाकर अधिकारियों ने रातों-रात मजदूरों के लिए एक ऑन-साइट “बुनियादी ढांचा” बनाया। केंद्र ने अभी तक नहीं बताया है कि कैसे सेंट्रल विस्टा एवेन्यू बनाया जाना एक”आवश्यक सेवा” है?

लूथरा ने तर्क दिया, “जब हम आपके पास आए, तो हमें डर था कि कहीं केंद्र दिल्ली के बीचों बीच एक ऑशविट्ज़ न बना दे।” एसजी मेहता ने तर्क किया कि परियोजना के “आलोचकों का अपना तबका” है, जिसका अंतिम उद्देश्य “हमें परियोजना पसंद नहीं है, हम इसे चुनौती देंगे और हम इसे रोक देंगे” है।

मेहता ने सेंट्रल विस्टा एवेन्यू के निर्माण के संदर्भ में लूथरा के ऑशविट्ज़ के उल्लेख पर भी आपत्ति जताई। मेहता ने तर्क दिया कि कुछ लोग किसी न किसी बहाने से परियोजना को रोकना चाहते हैं। जनहित याचिका महज एक बहाना है।