हकलाने के कारण लड़की को मेडिकल पाठ्यक्रम में दाखिला देने से इनकार कर दिया गया था। न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने भारत सरकार, राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग और अन्य को नोटिस जारी कर तीन सप्ताह के भीतर जवाब देने को कहा।
सर्वोच्च अदालत छात्रा की याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसने स्रातक चिकित्सा शिक्षा, 1997 संबंधी भारतीय चिकित्सा परिषद के संशोधित नियमों को चुनौती दी है। याचिका में उसने चिकित्सा शिक्षा संबंधी विनियम, 1997 पर सवाल उठाया है। जिसकी वजह से वह परीक्षा में बैठ नहीं पाई। केंद्र सरकार को नोटिस जारी करते हुए शीर्ष न्यायालय की पीठ ने कहा कि नियमों के परिणामस्वरूप, याचिकाकर्ता को इस आधार पर पाठ्यकम में दाखिला नहीं दिया गया क्योंकि स्पष्ट बोलने में बाधा (हकलाना) 40 फीसद से अधिक है हालांकि याचिकाकर्ता दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार कानून 2016 के तहत मानक दिव्यांगता से पीड़ित है।
याचिका में स्रातक संशोधित चिकित्सा शिक्षा संबंधी विनियम को चुनौती दी गई है जिसकी वजह से याचिकाकर्ता को परीक्षा में शामिल होने की अनुमति नहीं दी गई। पीठ ने इसे गंभीरता से लेते केंद्र सरकार, राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग और अन्य को नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया।