सिद्धायनी जैन

दुर्भाग्य से दुनिया में जिम्मेदार कही जाने वाली शक्तियों ने ही इस दिशा में असरकारी कदम समय पर नहीं उठाए। परिणाम यह हुआ कि सारी मानवता एक ऐसी आशंका का सामना कर रही है, जिसमें हिमखंड पिघल रहे हैं, धरती का बंजरपन बढ़ रहा है, जंगल सुलग रहे हैं और हवाएं अग्निधर्मा हो रही हैं। यूरोप में बढ़ते तापमान के कारण अस्त-व्यस्त हुआ जीवन बताता है कि हम अगर अब भी सचेत नहीं हुए तो आने वाले दिन कितने कष्टकारी हो सकते हैं।

इस साल जुलाई में जब भारत में बारिश ने कई बड़े शहरों में बाढ़ के हालात पैदा किए, तब यूरोप के कई शहर भीषण गर्मी से जूझते दिखे। अनेक शहरों में लोग गर्मी के कारण चलते-चलते बेहोश होकर गिर पड़े। स्थिति को देखते हुए सरकार और प्रशासन को बाजार के बीच ऐसी विशेष व्यवस्था करनी पड़ी, जिनमें जाकर लोग तेज गर्मी से कुछ राहत पा सकें।

पिछले दो सालों में यूरोपीय और अमेरिकी देशों में एअरकंडीशनर की खरीद के प्रति रुचि बढ़ रही है। कारण स्पष्ट है कि यूरोपीय देश आमतौर पर ठंडी जलवायु वाले देश माने जाते हैं। उनमें अपने शरीर के अनुकूल रखने के लिए एअरकंडीशनर चलाने की अपेक्षा आग जलाकर कमरा बंद रखने की प्रथा रही है।

वैज्ञानिकों ने अध्ययन में पाया है कि अधिकांश यूरोपीय देशों में इस साल जुलाई के दिनों में तापमान अन्य वर्षों की तुलना में अधिक था। इटली में तापमान 40 से 45 डिग्री सेल्सियस के बीच रहा। लोगों को आशंका है कि इस बार वहां का तापमान दो वर्ष पुराने उस आंकड़े को भी तोड़ सकता है, जब सिसली में पारा 48.8 डिग्री सेल्सियस पर पहुंच गया था।

फ्रांस, ग्रीस, पोलैंड, यूनान, स्पेन सहित अमेरिका और पूर्वी यूरोपीय देशों में भी गर्मी लगातार कहर बरपा रही है। अमेरिका में तो पिछले दिनों गर्मी के कहर से बचने के लिए पूरे दक्षिण-पश्चिम अमेरिका में नागरिकों को एहतियात बरतने के लिए चेतावनी जारी की गई। अनुमान है कि इस बार अमेरिका में पारा 43 डिग्री सेल्सियस का आंकड़ा भी पार कर सकता है। यह स्थिति अकेले दक्षिण-पश्चिमी एशिया में ग्यारह करोड़ लोगों के जीवन को अस्त-व्यस्त कर देगी। शेष क्षेत्रों की स्थिति का अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है।

ऐसा नहीं कि यूरोप और अमेरिका के देशों में गर्मी ने कहर इसी साल बरपा किया है। पिछले साल भी वहां बढ़ता तापमान आमजन के लिए मुसीबत बन गया था। हालत यह थी कि राहगीरों को गर्मी से बचाने के लिए विशेष उपाय करने पड़े थे। लंदन ब्रिज जैसी संरचना को पिघलने से बचाने के लिए तापरोधी कवर से ढकना पड़ा था।

कई रेलवे लाइन गर्मी से पिघल गई आवागमन अस्त-व्यस्त हो गया था। तापमान इतना बढ़ा कि जंगल सुलग उठे। यूरोपीय देश अब तक ठंडे क्षेत्र रहे हैं और इसलिए वहां बुनियादी ढांचे को गर्मी से बचाने के उपायों पर विशेष ध्यान नहीं दिया जाता था। यूरोपीय स्वास्थ्य संस्थान की एक रपट में बताया गया है कि पश्चिमी देशों में मई से सितंबर 2022 के बीच गर्मी के कारण करीब बासठ हजार लोगों की मौत हो गई। इनमें भी इटली में सबसे ज्यादा यानी अठारह हजार से अधिक लोग गर्मी के बढ़ते प्रकोप के कारण मारे गए।

ब्रिटेन की स्वास्थ्य सुरक्षा एजंसी ने राष्ट्रीय आपातकाल लगाने की तैयारी कर ली थी। फ्रांस में गर्म हवाओं से लगने वाली आग पर काबू पाने के लिए ‘वाटर बंबिंग प्लेन’ यानी पानी बरसाने वाले हवाई जहाजों का सहारा लिया गया। स्पेन में भी आबादी वाले हिस्सों को ठंडा रखने के लिए पानी बरसाने वाले हवाई जहाज यानी ‘वाटर प्लेन’ उड़ाए गए।

यूरोप के कई शहरों में सड़कों के किनारे फव्वारे लगाए गए, जिनमें भीग कर वे कुछ देर के लिए गर्मी के कहर से मुक्ति पा सकें। परंपरागत रूप से हाउस आफ कामन्स में सदस्यों को टाई और सूट पहन कर जाना होता है, लेकिन पिछले साल सदन के स्पीकर लिंडसे होयल ने सदस्यों को यह छूट दे दी कि वे गर्मी के प्रकोप को देखते हुए चाहें तो सुविधानुसार कपड़े पहनकर आ जाएं।

इस साल भी यूरोपीय और अमेरिकी देशों में गर्मी का प्रकोप थमता प्रतीत नहीं होता। इस साल जून का महीना अब तक का सबसे गर्म महीना रहा है। इस साल जितनी समुद्री गर्मी पड़ी है, उतनी इसके पहले दर्ज नहीं की गई। छह जुलाई को अब तक का सबसे गर्म दिन दर्ज किया गया, जो औसत वैश्विक तापमान से 17.08 डिग्री सेल्सियस अधिक था।

यह स्थिति डराती है, लेकिन यह स्थिति एकाएक नहीं निर्मित हुई है। वैज्ञानिक और पर्यावरण प्रेमी लगातार सावधान करते रहे हैं कि यदि हमने ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन पर नियंत्रण नहीं किया तो दुनिया को गर्मी के कहर से बचाना मुश्किल होता जाएगा। इस विषय पर अनेकानेक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन और समझौते भी हुए हैं, लेकिन हर बार जिम्मेदार लोग तय लक्ष्यों को पाने के अपने आश्वासन को बिसरा देते हैं।

हमें साल 2030 तक ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन नगण्य करना था, लेकिन विकासशील देश यह कह कर अपनी नीतियों में संशोधन नहीं करना चाहते कि विकसित देशों द्वारा किए गए नुकसान की भरपाई वे क्यों करें और विकसित देशों का तर्क है कि सब कुछ करने का ठेका उन्हीं का तो नहीं। ग्रीन हाउस गैस, गैसों के उस समूह को कहते हैं, जिनके कारण जलवायु में परिवर्तन होता और समूचे भूमंडल में गर्मी बढ़ती है।

कार्बन डाई आक्साइड, मीथेन, नाइट्रस आक्साइड, ओजोन, क्लोरो फ्लोरो कार्बन, हाइड्रो फ्लोरो कार्बन जैसी गैसें इनमें प्रमुख हैं। एक अध्ययन के अनुसार अकेली कार्बन डाई आक्साइड का इस्तेमाल पिछले डेढ़ दशक में करीब चालीस फीसद बढ़ गया है। फ्रिज, कंप्यूटर, एसी जैसे संसाधनों के उपयोग वातावरण में जहरीली गैसों का अनुपात बढ़ा रहे हैं।

सड़कों पर लगातार बढ़ रहे वाहनों की संख्या और पेट्रोल-डीजल का निरंतर बढ़ता उपयोग तो इसका सबसे बड़ा कारक है ही। हालांकि वातावरण में उत्सर्जित होने वाली 40 फीसद कार्बन डाई आक्साइड को पेड़ सोख लेते हैं, लेकिन विसंगति यह है कि पृथ्वी की सतह पर पेड़ों की संख्या लगातार कम होती जा रही है और इससे कार्बन डाई आक्साइड का पर्याप्त अवशोषण नहीं हो पा रहा है। कार्बन डाई आक्साइड ही वातावरण का तापमान बढ़ाने में सबसे मुख्य भूमिका निभाती है।

कुछ लोगों के लिए यह तथ्य आश्चर्यजनक हो सकता है कि जिस शुक्र ग्रह को ज्योतिष में सौंदर्य का प्रतिमान माना जाता है, उस पर 97 फीसद से अधिक कार्बन डाई आक्साइड है और इसीलिए उसका तापमान करीब 470 डिग्री सेल्सियस है। आंकड़े बताते हैं कि वातावरण में मौजूद कार्बन डाई आक्साइड का स्तर 415 कण प्रति मिलियन पहुंच चुका है, जो कि पिछले साढ़े छह लाख वर्षों में सबसे ज्यादा है।

यह केवल एक उदाहरण है। पृथ्वी के परिवेश में अन्य ग्रीन हाउस गैसों का घनत्व भी लगभग इसी अनुपात में बढ़ रहा है। ग्रीन हाउस गैसें जरूरत से ज्यादा ऊष्मा को रोक रही हैं, जिससे धरती पर तापमान बढ़ रहा है। उधर ओजोन परत के क्षरण के कारण सूर्य आदि पिंडों से पृथ्वी की ओर आने वाला हानिकारिक विकिरण भी पृथ्वी पर पहुंच कर वायुमंडल के तापमान को बढ़ा रहा है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अनेक आयोजन हुए हैं और इस आवश्यकता पर बार-बार बल दिया गया है कि दुनिया, खासकर प्रगतिशील देश, कार्बन उत्सर्जन पर प्रभावशाली नियंत्रण करें।

दुर्भाग्य से दुनिया में जिम्मेदार कही जाने वाली शक्तियों ने ही इस दिशा में असरकारी कदम समय पर नहीं उठाए। परिणाम यह हुआ कि सारी मानवता एक ऐसी आशंका का सामना कर रही है, जिसमें हिमखंड पिघल रहे हैं, धरती का बंजरपन बढ़ रहा है, जंगल सुलग रहे हैं और हवाएं अग्निधर्मा हो रही हैं। यूरोप में बढ़ते तापमान के कारण अस्त-व्यस्त हुआ जीवन बताता है कि हम अगर अब भी सचेत नहीं हुए तो आने वाले दिन कितने कष्टकारी हो सकते हैं।