विश्व बैंक के अनुसार भारत की 130 करोड़ से अधिक की कुल आबादी में से लगभग आठ करोड़ लोग दिव्यांगों की श्रेणी में आते हैं। कुल दिव्यांगों में से लगभग 70 फीसद देश के ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं। ऐसी कई चीजें हैं जिन्हें दिव्यांग करना चाहते हैं या करने का सपना देखते हैं। हालांकि उचित सुविधाओं और सही मार्गदर्शन की कमी के कारण वे अपने इन सपनों को पूरा नहीं कर पाते हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार देश में ज्यादातर दिव्यांग 10-19 वर्ष के आयु वर्ग में हंै। ये ऐसे लोग हैं, जो आत्मनिर्भर होना चाहते हैं, एक अच्छी नौकरी के साथ रहने के लिए एक बेहतर घर और एक ऐसा सामान्य जीवन जीना चाहते हैं, जहां वे भी जब चाहें, लोगों के साथ घूम-फिर सकते हैं।

अन्य बच्चों की तुलना में दिव्यांग बच्चों के स्कूल छोड़ने की आशंका पांच गुना अधिक होती है। भारत में दिव्यांगों की कुल आबादी में से केवल 36 फीसद लोग ही कार्यरत हंै, इनमें से 31 फीसद खेतिहर मजदूर हैं। इस वजह से दिव्यांग लोगों को अक्सर बेरोजगारी का सामना करना होता है और उन्हें दूसरों पर निर्भर जिंदगी जीने पर मजबूर होना पड़ता है।

दिव्यांग लोगों को इन मुश्किलों से बाहर निकालने में मदद करने के लिए उन्नत तकनीक और शिक्षा एक बड़ी भूमिका निभा सकती है। तकनीक असंभव को संभव में बदलने में मदद कर सकती है और ऐसे अनेक उदाहरण हमारे सामने हैं, जैसे स्टीफन हॉकिंग को ही याद कर लें। प्रौद्योगिकी के अलावा, कौशल से दिव्यांग लोगों को उचित प्रशिक्षण, शिक्षा और अच्छी नौकरी पाने में मदद मिल सकती है। कौशल आधारित पाठ्यक्रम लोगों को उपकरण और मशीनरी के साथ काम करने का प्रशिक्षण देते हैं और उन्हें हाथ का हुनर सिखाते हैं। कुछ ऐसे कौशल पाठ्यक्रम भी हैं, जो दिव्यांगों को करिअर बनाने में मदद कर सकते हैं…

सिलाई

दिव्यांगजन सिलाई का काम बड़ी आसानी से सीख सकते हैं। वे सिलाई मशीन और अलग-अलग तरह की सिलाई के साथ काम करना सीखते हैं, विभिन्न शैलियों में कपड़े काटते हैं। दिव्यांगों को सिखाया जाता है कि ग्राहकों के साथ कैसे व्यवहार किया जाए और पेशेवर सेटिंग में कैसे काम किया जाए। अनेक संस्थान और गैर सरकारी संगठन हैं जो प्रमाण पत्र के साथ निशुल्क पाठ्यक्रम प्रदान करते हैं।

होटल प्रबंधन (पाक कला)

भोजन और खाना पकाने में दिलचस्पी रखने वाले दिव्यांग इस पाठ्यक्रम को कर सकते हैं। ऐसे पाठ्यक्रमों में विभिन्न व्यंजनों और इन व्यंजनों में प्रयुक्त होने वाली सामग्री और भोजन प्रस्तुत करने के तरीके के बारे में सिखाया जाता है। ऐसे पाठ्यक्रमों में दिव्यांग लोगों को दुनिया भर में विभिन्न प्रकार के भोजन, व्यंजन बनाने के तरीके और भोजन तैयार करने की पूरी प्रक्रिया के बारे में जानने का अवसर मिलता है।

उद्यमिता

उद्यमिता का अध्ययन करने के लिए किसी भी क्षेत्र का चयन किया जा सकता है। यह पाठ्यक्रम उन्हें यह बताएगा कि उद्यमिता क्या है, एक अच्छा उद्यमी बनने के लिए क्या आवश्यक है और अपने चुने हुए क्षेत्र में कैसे सफल होना है। दिव्यांग यह भी सीख सकते हैं कि उन्होंने जिस क्षेत्र को चुना है वह कैसे काम करता है, उनके व्यवसाय के लिए किस तरह का स्थान उपयुक्त है, उन्हें किस तरह के लोगों को काम पर रखना चाहिए और कैसे क्लाइंट सर्विसिंग करनी चाहिए।

बढ़ईगीरी

दिव्यांग इस काम में आवश्यक बढ़ईगीरी उपकरण और बड़ी मशीनरी के साथ काम करना सीखेंगे। वे व्यावहारिक अनुभव प्राप्त कर सकते हैं और वे चाहें, तो असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले एक कम वेतन वाले बढ़ई के बजाय एक पेशेवर बढ़ई के रूप में किसी कंपनी में भी काम कर सकते हैं।

तकनीक से सुगम होगी राह

दृष्टिबाधित लोगों को अक्सर बाहर की दुनिया में अकेले चलना मुश्किल होता है क्योंकि उन्हें कहां मुड़ना या चलना चाहिए, या फिर उनके लिए अपने सटीक स्थान को तलाशना और वहां तक पहुंचना वाकई एक दुष्कर कार्य होता है। विशेष रूप से दृष्टिबाधित लोगों के लिए डिजाइन किया गया एक मार्गनिर्देशक जीपीएस के माध्यम से उनकी मंजिल की निगरानी करता है ताकि उन्हें पता चल सके कि वे वास्तव में कहां हैं। साथ में एक आवाज निर्देशिका उन्हें अपने गंतव्य तक अपना रास्ता नेविगेट करने में मदद करता है।

‘टेक व्हीलचेयर’
आजकल व्हीलचेयर में आपको तमाम तरह की तकनीक मिल जाएगी। अनुवादक से लेकर आंखों के इशारों के सहारे सीढ़ियां चढ़ने तक, व्हीलचेयर के माध्यम से इन दिनों ऐसे तमाम काम किए जा सकते हैं। इन व्हीलचेयर की मदद से उनका जीवन पूरी तरह से बदल सकता है।
-प्रशांत अग्रवाल
(अध्यक्ष, नारायण सेवा संस्थान)