पानी पर पानी की तरह खर्च करने के बाद भी बुंदेलखंड प्यासा है। जल संरक्षण की तमाम योजनाओं पर ईमानदारी से खर्च होता तो शायद अल्प बारिश की स्थिति में बदतर हालात यहां के न होते। बुंदेलखंड पैकेज तो बुंदेलखंड को सूखे से निजात दिलाने के लिए आबंटित किया गया था। अरबों रुपए खर्च होने के बाद इन जल संवर्धन और संरक्षण योजनाओं में पानी की बूंद की तलाश जारी है। कहा जा रहा है कि बे-ईमान न होता तो आज बुंदेलखंड सूखा न होता।
बूंद-बूंद पानी की तड़फन और सूखे से पलायन के हालात तब बने हैं, जब पिछले कुछ सालों में बुंदेलखंड पैकेज सहित मनरेगा, जलअभिषेक अभियान जैसे जल संरक्षण कार्यों पर अरबों रुपए खर्च कर दिए गए। सरकारी कागज इन कार्यों पर खर्च को लेकर रंगे हुए हैं। जिससे नहीं लगता कि बुंदेलखंड में इस कदर पानी की समस्या हो सकती है।
बुदेलखंड पैकेज की राशि से मनरेगा के तहत प्रथम चरण में जल संवर्धन कार्यों पर 863.69 करोड़ रुपए व्यय किए गए।
आंकड़े चौंकाने वाले हैं कि इस राशि से मार्च 2016 तक बुंदेलखंड के छह जिलों- सागर, छतरपुर, दमोह, टीकमगढ़, पन्ना, दतिया में 45451 कुआं, 2646 खेत तालाब खोदे गए। वहीं 2559 जल संरचनाओं का जीर्णोद्धार, पुनर्जीवन, पुनर्भरण यानी लघु तालाबों व माईनर नहरों का रखरखाव, तालाबों का गहरीकरण व जीर्णोद्धार, गाद निकालने जैसे कार्य किए गए। जिन पर 75.57 करोड़ रुपए खर्च किए गए। खेतों में निर्मित कराए गए तालाबों पर 10.60 और कुओं पर खर्च की जाने वाली राशि 777.52 करोड़ रुपए है। मध्यप्रदेश योजना आयोग के अनुसार सूखे से निपटारे के लिए बुंदेलखंड के बरसाती नालों, सहायक नदियों और बड़ी नदियों पर स्टापडेम बनाए गए। जिससे पानी को रोक कर जलस्तर बढ़ाया जा सके। सुनकर आश्चर्य होगा कि बुंदेलखंड के छह जिलों में 774 स्टापडेम बनाए गए, जिन पर 20859.5 लाख खर्च किए गए।
पिछले चार सालों में जल संरक्षण के नाम पर बुंदेलखंड में अरबों रुपए बहा दिए गए।
खासकर बुंदेलखंड पैकेज की राशि से जिस तरह सरकार का दावे के अनुरूप कार्य हुए, उससे लगता है कि बुंदेलखंड का हर इलाका पानीदार होगा। दूसरी ओर पानी के लिए त्राहि-त्राहि मची हुई है। आरोप लगते रहे हैं कि पानी के नाम पर सरकारी कागज रंगे गए और अधिकारियों, नेताओं व ठेकेदार के नेक्सेस ने जमकर लुटाई की। सूखे के नाम पर जनता को एक बार फिर सूखा नसीब हुआ। लेकिन जिम्मेदारों ने अपनी तिजोरियों को लबालब कर लिया। काश! ईमान के साथ मानवीय और नैतिकता के आधार पर पानी के लिए पानी के नाम पानीदार होकर खर्च होता तो शायद बुंदेलखंड सूखा न होता। यहां की जनता प्यासी न होती।