गुजरात हाई कोर्ट ने गिर-सोमनाथ के जिलाधिकारी से सवाल किया कि क्या आप अपने जिले में जिस तरह से गायों और गौवंश की सुरक्षा करते हैं उतनी ही सुरक्षा क्या महिलाओं और बच्चों को भी देते हैं? जज परेश उपाध्याय ने अधिकारी से इस सवाल का जवाब 13 अगस्त तक देने के लिए कहा है।
कोर्ट एक याचिकाकर्ता की याचिका पर सुनवाई कर रहा था। जिस दौरान कोर्ट ने ये टिप्पणी की। दरअसल याचिकाकर्ता के खिलाफ दो बार, पुशओं के प्रति क्रूरता रोधी कानून के तहत कार्रवाई की गई थी। इस पर जिलाधिकारी द्वारा व्यक्ति के खिलाफ असामाजिक गतिविधि कानून भी लगा दिया गया था और व्यक्ति को ‘क्रूर’ घोषित कर दिया था। इसके बाद मामले में याचिकाकर्ता द्वारा इस कानून को हाई कोर्ट में चुनौती दी गयी थी।
अदालत ने कहा, ‘जिस तरह जिला प्रशासन गौवंश की सुरक्षा करता है क्या वैसी ही सुरक्षा जिले की महिलाओं और बच्चों को भी दी जाती है। जानवरों के प्रति क्रूरता नहीं की जानी चाहिए लेकिन क्या हम इसी तरह की सुरक्षा महिलाओं और बच्चों को भी उपलब्ध करा रहे हैं?’
इससे पहले जून में याचिकाकर्ता के ऊपर से हाई कोर्ट ने असामाजिक गतिविधि कानून हटा दिया था और अधिकारियों को उसकी तुंरत रिहाई के आदेश भी दिये थे।
संजीव भट्ट की पुनर्विचार याचिका खारिज: वहीं, गुजरात उच्च न्यायालय ने भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के बर्खास्त अधिकारी संजीव भट्ट की एक पुनर्विचार याचिका को खारिज कर दी है। इसमे मादक पदार्थ पर नियंत्रण संबंधी ‘एनडीपीएस’ कानून के तहत 1996 के एक मामले में उनके खिलाफ लगाए गए आरोपों में संशोधन का अनुरोध किया गया था।
भट्ट की याचिका खारिज करने के साथ ही जज इलेश वोरा ने निचली अदालत को ‘‘तेजी से’’ मुकदमे की कार्यवाही शुरू करने का भी निर्देश देते हुए कहा प्रक्रिया अब तक शुरू नहीं हुई है क्योंकि पूर्व अधिकारी निचली अदालतों के साथ-साथ उच्च न्यायालय में भी अर्जियां दाखिल करते रहे हैं।
भट्ट 2018 में इस मामले में अपराध जांच विभाग (सीआईडी) द्वारा गिरफ्तारी के बाद से ही सलाखों के पीछे हैं। न्यायिक हिरासत के दौरान, भट्ट को 1990 के हिरासत में यातना के मामले में दोषी ठहराया गया था, जबकि 1996 के मादक पदार्थ बरामदगी मामले में पहले ही बनासकांठा की निचली अदालत द्वारा आरोप तय किए जा चुके हैं।