मुनीष भाटिया
जिस काम को करने के लिए मना किया जाता है, उसी को करने की जिद करना या यहां तक कि कई बार नियमों का उल्लंघन कर भी कार्यरूप देना ज्यादातर लोगों की एक विचित्र प्रवृत्ति रही है। हम अपने आसपास देखें तो आजकल इस प्रवृत्ति का विकृत रूप मिलता है। मसलन, ‘पार्किंग नहीं’ वाले स्थान पर अपने वाहनों को खड़ा करना जैसे आम बात हो गई है।
यह स्थिति न केवल सड़कों पर अनावश्यक रूप से बाधा उत्पन्न करता है, बल्कि सड़क दुर्घटनाओं का भी कारण बनती है। भारत में ‘वाहन खड़ी न करें’ वाले क्षेत्र में वाहनों को खड़ा कर दिया जाना एक आम समस्या है और इससे कई समस्याएं पैदा हो रही हैं। ऐसी जगहों पर अनधिकृत पार्किंग यातायात के प्रवाह को बाधित करती है, जिससे भीड़भाड़ होती है।
अवैध रूप से खड़े किए गए वाहन एक तरह से कब्जे की जगह के रूप में बदल जाते हैं और पैदल चलने वालों और अन्य वाहनों की दृश्यता में भी बाधा उत्पन्न करते हैं, जिससे दुर्घटनाओं का खतरा बढ़ जाता है। जब लोग घोषित रूप से ऐसे क्षेत्र में वाहन लगाते हैं तो कानूनी रूप से वाहन खड़ा करने के लिए निर्धारित स्थान कम हो सकते हैं, जिससे उन लोगों को असुविधा हो सकती है, जिन्हें पार्किंग स्थल खोजने की आवश्यकता होती है।
इसके अलावा, भारत में यातायात संकेतों का जानबूझ कर उल्लंघन, जैसे लालबत्ती पार कर जाना या यातायात नियमों की अवहेलना भी भारतीय जनमानस की आदत में शुमार हो चला है। कुछ चालक अधीरता या समय बचाने की इच्छा के कारण जानबूझ कर यातायात संकेतों को धता बताते रहते हैं। अति आत्मविश्वास वाले ऐसे चालक यह मानते हैं कि वे चौराहों पर संकेत बदलने की प्रतीक्षा किए बिना चौराहों पर सुरक्षित रूप से निकल सकते हैं।
कुछ व्यक्ति जोखिम भरे ड्राइविंग व्यवहार में संलग्न होते हैं और सचेतन यातायात संकेतों की अनदेखी करते हैं। वे यह विश्वास करते हैं कि वे पकड़े नहीं जाएंगे। इसलिए इस बात पर जोर देना अब महत्त्वपूर्ण है कि भारतीय जनमानस के मन में यह बात बिठाई जाए कि यातायात संकेतों का जानबूझ कर उल्लंघन अवैध है और चालक, यात्रियों, पैदल यात्रियों और अन्य सड़क उपयोगकर्ताओं के लिए सुरक्षा जोखिम पैदा करता है। शिक्षा और जागरूकता अभियान ही जानबूझ कर उल्लंघन को हतोत्साहित करने और जिम्मेदार वाहन चलाने के व्यवहार के ढीठपन को बदल पाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
इसी तरह, आम भारतीय जनमानस की एक अन्य आदत यह भी विकसित हो चली है, जिसमें अस्पताल, विद्यालय वगैरह संवेदनशील क्षेत्रों के आसपास जहां वाहन का ‘हार्न’ बजाना निषेध होता है, अक्सर उन्हीं क्षेत्रों में तेज आवाज में ‘हार्न’ का खुलकर प्रयोग किया जाता है। नतीजतन, विद्यार्थियों की पढ़ाई में तो विघ्न पड़ता ही है, जीवन और मौत से जूझ रहे मरीजों के लिए भी यह घातक सिद्ध होता है। इसी तरह लाउडस्पीकर का दुरुपयोग भी आम बात है। भले ही सार्वजनिक उत्सव हो या धार्मिक या चुनावी माहौल, लाउडस्पीकरों से ध्वनि प्रदूषण करना अपनी शान समझा जाता है।
हालांकि कई स्थानों पर शोर की गड़बड़ी को कम करने के लिए विशेष रूप से रात के समय और आवासीय क्षेत्रों में लाउडस्पीकर के उपयोग पर प्रतिबंध है। लेकिन धार्मिक त्योहारों, राजनीतिक रैलियों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के दौरान, लाउडस्पीकरों का अक्सर बड़े पैमाने पर उपयोग किया जाता है, जिससे कभी-कभी ध्वनि प्रदूषण संबंधी चिंताएं पैदा होती हैं और विवाद होते हैं।
आयोजनों के लिए लाउडस्पीकर का उपयोग करते समय स्थानीय नियमों से अवगत होना और आवश्यक अनुमति या परमिट प्राप्त करना आवश्यक है। भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने धार्मिक समारोहों में लाउडस्पीकर के उपयोग पर पूरी तरह से प्रतिबंध नहीं लगाया था, हालांकि न्यायालय ने ध्वनि प्रदूषण को कम करने और सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने के लिए धार्मिक त्योहारों और समारोहों के दौरान लाउडस्पीकर के उपयोग को विनियमित करने के लिए दिशानिर्देश और निर्देश जारी किए हैं। इन दिशानिर्देशों में अक्सर समुदाय में व्यवधान को कम करने के लिए विशेष रूप से रात के समय लाउडस्पीकरों के समय और मात्रा पर प्रतिबंध शामिल होता है।
अत्यधिक ध्वनि प्रयोग, जिसे प्रदूषण के रूप में भी जाना जाता है, बेहद विघटनकारी या अवांछित ध्वनि को संदर्भित करता है जो सामान्य गतिविधियों में हस्तक्षेप करती है और जिससे लोगों, जानवरों या पर्यावरण को नुकसान होता है या कई तरह की असुविधा होती है। यह परिवहन औद्योगिक प्रक्रियाओं, निर्माण और मनोरंजक गतिविधियों सहित विभिन्न स्रोतों के कारण हो सकता है। व्यक्तियों और पारिस्थितिकी तंत्र की भलाई को बनाए रखने के लिए ध्वनि प्रदूषण का प्रबंधन और उसे कम करना आवश्यक है।
आम जनमानस की यह लापरवाही से भरी आदत देश के लिए अच्छा नहीं है। इसलिए आवश्यक है कि लाउडस्पीकर के दुरुपयोग को रोकने के साथ-साथ अस्पतालों और विद्यालयों के समीप ‘हार्न’ के प्रयोग करने वालों से सख्ती से निपटा जाए, ताकि शांत वातावरण में जीने का मूल अधिकार किसी से नहीं छिन पाए।