आरोपियों को जमानत देने से जुड़े मामले में सुप्रीम कोर्ट खुद भी मकड़जाल में उलझ कर रह गया है। दरअसल 16 साल पहले एक डबल बेंच ने जो फैसला दिया था, हाल ही में एक दूसरी डबल बेंच ने उसके उलट फैसला दे दिया। सरकार को परेशानी हुई तो सॉलीसिटर जनरल तुषार मेहता ने सारा किस्सा सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ को बताया। सीजेआई ने गलती को मानकर कहा कि वो तीन जजों की बेंच में खुद सारे मसले को देखेंगे। फिलहाल आखिर में दिए गए डबल बेंच के फैसले को सीजेआई ने रोक दिया है। अदालतों से कहा गया है कि डिफाल्ट बेल की रिटों पर विचार न करे।

26 अप्रैल के फैसले में डबल बेंच ने आरोपी को दिया था डिफाल्ट बेल का अधिकार

ऋतु छाबड़िया बनाम केंद्र के केस में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस कृष्ण मुरारी और जस्टिस सीटी रविकुमार की बेंच ने 26 अप्रैल को जो फैसला दिया उसके मुताबिक जांच एजेंसी अगर किसी मामले में अधूरी चार्जशीट दाखिल करती है तो आरोपी को डिफाल्ट बेल का अधिकार अपने आप मिल जाएगा। डबल बेंच ने अपने फैसले में कहा कि डिफाल्ट बेल आरोपी का अधिकार है। अगर एजेंसी जांच पूरी किए बगैर चार्जशीट दाखिल करती है तो आरोपी को ये अधिकार अपने आप मिल जाएगा। बेंच का मानना था कि आरोपी की जमानत रद कराने के लिए एजेंसी जल्दबाजी में चार्जशीट पेश कर देती है।

16 साल पहले डबल बेंच ने दिया था इसके उलट फैसला

खास बात है कि सुप्रीम कोर्ट की डबल बेंच ने 16 साल पहले जो फैसला दिया था उससे 26 अप्रैल का फैसला बिलकुल उलट है। दिनेश डालमिया के केस में सुप्रीम कोर्ट की डबल बेंच ने कहा था कि जो ट्रायल कोर्ट मामले का संज्ञान लेती है वो आरोपी को पुलिस रिमांड पर विवेचना के दौरान भेज सकती है। सुप्रीम कोर्ट की डबल बेंच के 16 साल पहले दिए गए फैसले के मुताबिक ही ट्रायल कोर्ट फिलहाल निर्णय ले रही थी्ं। लेकिन अब जो फैसला आया है उसके बाद से विवाद खड़ा हो गया कि कौन से फैसले को सही माना जाए, क्योंकि दोनों ही अलग-अलग मत बराबर की बेंचों ने दिए।

सॉलीसिटर जनरल तुषार मेहता ने सीजेआई को सारा मामला बताया और उनके कहा कि 26 अप्रैल को दिए फैसले से परेशानी बढ़ रही हैं। लिहाजा इस आदेश को वापस लिया जाए। सीजेआई ने उनकी बात को सुनकर तीन जजों की बेंच बनाई और कहा कि वो खुद देखेंगे कि ऐसा कैसे हुआ। जस्टिस कृष्ण मुरारी और जस्टिस सीटी रविकुमार की बेंच के फैसले को पहले 4 मई तक रोका गया। फिर मियाद बढ़ाकर 12 मई कर दी गई।