Indian delegation: पहलगाम आतंकी हमले और उसके बाद की स्थिति पर भारत का रुख साफ करने के लिए जापान, दक्षिण कोरिया, इंडोनेशिया, मलेशिया और सिंगापुर का दौरा करने वाले सांसदों का पैनल मंगलवार देर रात भारत लौट आया। जेडीयू नेता संजय झा ने इस पैनल का नेतृत्व किया था। विदेशी प्रतिनिधियों के सामने पैनल की तरफ से उठाए गए मुद्दों पर संजय झा ने इंडियन एक्सप्रेस से विस्तार से बात की है।

आपके पांच देशों का एक्सपीरियंस कैसा रहा?

जेडीयू नेता संजय झा ने बताया कि यह एक बेहद ही शानदार एक्सपीरियंस था। यह एक मल्टी पार्टी डेलीगेशन था, इसलिए हम जिस भी जगह पर गए वहां पर हमारा जोरदार स्वागत हुआ। लोगों ने इस बात की तारीफ की कि देश के कोने-कोने से आए सांसद और पार्टी लाइन से ऊपर उठकर आतंकवाद पर देश का रुख सामने रख रहे थे। एक बैठक में जब हम इस बारे में बात कर रहे थे कि कैसे भारत की इकोनॉमी चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गई है, तो जापानी राजदूत ने मजाक में यहां तक ​​कहा कि हम उनके देश से आगे निकलने की बात कर रहे हैं।

बॉर्डर क्रॉस टेरेरिज्म पर पाकिस्तान पूरी तरह से बेनकाब हो चुका है। हमारी सभी मीटिगों में हम पहलगाम हमले से पहले कश्मीर पर पाकिस्तान के आर्मी चीफ आसिम मुनीर के बयान को बता रहे थे। हमने इस बात पर जोर दिया कि कैसे एक आर्मी चीफ इतने कट्टरपंथी तरीके से बोल रहा था। फिर हमने द रेजिस्टेंस फोर्स के बारे में बात की और उसने पहलगाम हमले की जिम्मेदारी ली। हमने पाकिस्तान के साथ इसके संबंधों के सबूत दिखाए। हमने 26/11 के हमलों में पाकिस्तान की संलिप्तता और अजमल कसाब की गिरफ्तारी से मिले सभी सबूतों के बारे में भी बात की।

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इन देशों की तरफ से क्या प्रतिक्रिया थी?

जेडीयू नेता संजय झा ने कहा कि हम जहां पर भी गए आतंकवाद की निंदा ही हुई। देश के प्रतिनिधियों ने इस तथ्य पर भारत के लिए सहानुभूति भी जाहिर की कि उसने इतने लंबे समय तक आतंकवाद को झेला है। दिलचस्प बात यह है कि पहलगाम आतंकी हमले पर हमारी सोची-समझी प्रतिक्रिया पर किसी ने सवाल नहीं उठाया। किसी ने यह नहीं पूछा कि हमने पाकिस्तान के अंदर क्यों हमला किया। इससे यह पता चलता है कि उनकी समझ यह है कि हमें अपनी रक्षा करने का अधिकार है। वे यह जानने में अधिक रुचि रखते थे कि हमने ऑपरेशन सिंदूर को इतनी सटीकता से कैसे अंजाम दिया।

मुस्लिम बहुल देशों ने क्या रिस्पांस दिया?

इंडोनेशिया और मलेशिया में हमने प्रतिनिधियों से कहा कि ओईसी की बैठकों में भारत के खिलाफ प्रस्ताव लाता रहता है। चूंकि हम OIC का हिस्सा नहीं हैं, इसलिए हमने उनसे कहा कि ऐसे प्रस्तावों पर विचार करने से पहले वह हमारे बारे में भी विचार करे। इंडोनेशिया सहमत हो गया। लेकिन मलेशिया ने कोई इच्छा नहीं जताई। हमने मलेशिया में भी पाकिस्तान के लिए झुकाव महसूस किया।

इन देशों में आपसे क्या सवाल पूछे गए?

जेडीयू नेता ने इस सवाल पर कहा कि वह सीजफायर और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की भूमिका के बारे में जानने के बड़े इच्छुक थे। हमने उन्हें बताया कि जब भी दुनिया में कहीं भी संघर्ष होता है, तो देश फोन कॉल करते हैं। इसका मतलब यह नहीं है कि वे शांति के लिए मध्यस्थता करते हैं। हमने उन्हें बताया कि रूस-यूक्रेन संघर्ष के दौरान भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दोनों देशों के नेताओं से बात की थी। इसका मतलब यह नहीं था कि वे उनके मामलों में मध्यस्थता कर रहे थे। बातचीत से हमें लगा कि लोगों ने ट्रंप के दावों को बहुत गंभीरता से नहीं लिया है। हमने उन्हें इस बात के सबूत दिए कि सीजफायर के लिए सबसे पहले पाकिस्तान ने कैसे आह्वान किया था।

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देश के प्रतिनिधियों के पास सिंधु जल संधि पर भी सवाल थे। हमने उन्हें बताया कि पानी और खून एक साथ नहीं बह सकते और संधि की प्रस्तावना में दोस्ती और सहयोग के बारे में बताया गया है, जो अब नहीं है। हमने यह भी कहा कि अगर पाकिस्तान आतंकवाद बंद कर दे, तो संधि को सकारात्मक तौर पर देखा जा सकता है।

पैनल ने अपना खाली समय कैसे बिताया?

जेडीयू नेता ने कहा कि हमारे पास कोई खाली समय नहीं था। हम सुबह 9 बजे से रात 9 बजे तक काम में व्यस्त रहते थे। कभी-कभी हम देर रात की फ्लाइट पकड़ते थे और दूसरे देश में सुबह की मीटिंग करते थे। हम मीडिया से बातचीत के अलावा संसद सदस्यों, थिंक टैंक के प्रतिनिधियों, अलग-अलग देशों के राजदूतों और प्रवासी भारतीयों से भी मिलते थे। प्रियंका चतुर्वेदी बोलीं – PAK सरकार आतंकवाद की पनाहगार