स्वर्गीय धीरूभाई किसी पहचान के मोहताज नहीं है। 6 जुलाई को उनकी पुण्यतिथि है। धीरू भाई इस बात का उदाहरण हैं कि अगर एक आम आदमी भी चाहे तो दुनिया को मुट्ठी में कर सकता है। ये सपना दुनिया को धीरूभाई ने ही दिखाया। धीरूभाई अंबानी एक बिजनेसमैन थे, जिन्होंने भारत को बिजनेस का एक अलग ही अंदाज दिखाया। जिस तरह से उन्होंने गांव की जमीं से उठकर आसमान को छुआ वो हर किसी के बस की बात नहीं। हालांकि इस बात की भविष्यवाणी जैकी श्रॉफ के पिता ने पहले ही कर दी थी।

जैकी श्रॉफ के पिता ने की थी भविष्यवाणी: खुद जैकी ने इस बात का खुलासा एक टीवी इंटरव्यू में किया था कि शुरुआत में उनके घर की आर्थिक हालत ठीक नहीं थे। उनके पास कॉलेज जाने तक के पैसे नहीं होते थे। उनके पिता काकुलाल हीरालाल श्रॉफ थे जिनकी ज्योतिष से ही घर चलता था। उस दौर में धीरूभाई अंबानी, कोकिलाबेन और उनके भाई नाटूलाल जैकी श्रॉफ के पिता के पास आते थे। तब ही काकुलाल हीरालाल श्रॉफ ने कहा था कि धीरूभाई पूरी दुनिया में अपना नाम रोशन करेंगे। हालांकि तब धीरूभाई ये बात सुनकर हंस दिए थे।

आसान नहीं था देश के सबसे रईस व्यक्ति बनने का सफरधीरूभाई अंबानी का देश के सबसे रईस व्यक्ति बनने का सफर आसान नहीं था। गुजरात के छोटे से गांव चोरवाड़ के एक स्कूल में शिक्षक हीराचंद गोरधनभाई अंबानी के बेटे थे धीरूभाई अंबानी। परिवार की गरीबी के चलते धीरूभाई सिर्फ दसवीं तक ही पढ़ाई कर पाए। इसके बाद उन्होंने छोटे मोटे काम कर परिवार के लिए पैसे जुटाना शुरू किया। वहीं ऐसा भी कहा जाता है कि इसके लिए उन्होंने पकौड़े भी बेचे।

जीवन का सबसे बड़ा मोड़: धीरूभाई के जीवन का सबसे बड़ा मोड़ तब आया जब 1949 में वो यमन के अदन शहर पहुंचे थे। उनके बड़े भाई रमणिकलाल पहले ही वहां काम करते थे। वहीं अंबानी ने ए. बेस्सी एंड कंपनी के साथ 200 रूपए के मासिक वेतन पर पेट्रोल पंप पर काम किया। करीब दो सालों पर धीरूभाई को अदन बंदरगाह कंपनी पर फिलिंद स्टेशन में मैनेजर बनाया गया। हालांकि 1954 में धीरूभाई वापस भारत आ गए।

कैसे आया रिलायंस का नाम: ऐसा कहते हैं कि धीरूभाई ने रिलायंस नाम अपने एक दोस्त प्रवीणभाई ठक्कर से उधार लिया था। एक इंटरव्यू में प्रवीण ने कहा था कि रिलायंस नाम धीरूभाई ने मुझसे उधार लिया था। 1953 में मैंने रोलेक्स और कैनन की एजेंसी ली और रिलायंस स्टोर नाम रखा। कुछ वक्त बाद स्टोर चल निकला और जिसके कुछ सालों बाद मेरे पास मर्सडीज थी। ये देखकर धीरूभाई मेरे पास आए और बोले मुझे रिलायंस नाम पसंद है। ये नाम कस्टमर के भरोसे को दर्शाता है और इसी नाम के स्टोर के चलते मेरे सामने देखते ही देखते तुमने मर्सडीज जैसी महंगी कार ले ली। वाकई में रिलायंस लकी नाम है। मुझे ये नाम दे दो।’

बड़ा आदमी बनने की चाह:  यमन में रहते हुए धीरूभाई के अंदर बड़ा आदमी बनने का सपना पलने लगा। जिसकी वजह से वो मुंबई आ गए। मुंबई पहुंचते वक्त उनकी जेब में सिर्फ 500 रुपए थे। उस वक्त भारत में पॉलिस्टर की काफी मांग थी और विदेश में भारत के मसालों की। उस दौर में धीरूभाई ने 350 वर्ग फुट के एक कमरे में रिलायंस कॉमर्स कॉरपोरेशन की नींव रखी। उनकी कंपनी भारत से मसाला भेजती थी और विदेश से पॉलिस्टर के धागे मंगाती थी।

विमल के साथ टेक्सटाइल में रखा कदम: धीरूभाई का बिजनेस काफी अच्छा चलने लगा था जिसके बाद उन्होंने विमल के साथ कपड़े के कारोबार में कदम रखा। इस बार भी धीरूभाई का बिजनेस चल निकला। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक विमल के कपड़ों को वर्ल्ड क्वालिटी का करार दिया गया। हालांकि उस वक्त विमल की सबसे बड़े टक्कर बॉम्बे डाइन से थी।

6 जुलाई 2002 में हुआ निधन: 1992 में ग्‍लोबल मार्केट से फंड जुटाने वाली रिलायंस देश की पहली कंपनी बनी। वहीं वर्ष 2000 के आसपास रिलाइंस पेट्रो कैमिकल और टेलिकॉम के सेक्‍टर में आई। गौरतलब है कि साल 2000 के दौरान ही अंबानी देश के सबसे रईस व्‍यक्ति बनकर भी उभरे। 2002 में 6 जुलाई को धीरूभाई अंबानी की मौत हो गई।

 

बेटों ने संभाली विरासत: धीरूभाई अंबानी की मौत के बाद उनके दोनों बेटों ने कारोबार आपस में बांट लिया। बता दें कि रिलायंस की कुल संपत्ति फिलहाल 7 लाख करोड़ से अधिक हो चुकी है।