ग्लेशियर टूटने से आई बाढ़ से हुई तबाही में कई लोग मौत और जिंदगी से जूझ रहे थे। लोगों को समझ नहीं आ रहा था कि यह जलजला कहां से आया और देखते देखते सैकड़ों जिंदगियों को लील गया। नंदा देवी पर्वतमाला से गिरे हिमनद के कहर में लोगों की चीख पुकार दब कर रह गई।

क्षेत्र में नदी किनारे मलबे में तब्दील हो गए मंदिर, शिवालय सभी इस आपदा की भेंट चढ़ गए। लोगों को मौत सामने दिखाई दे रही थी और उन्हें बचने का कोई रास्ता नहीं दिखाई दे रहा था। 520 मेगावाट वाली तपोवन पनबिजली परियोजना की सुरंग में दर्जनों मजदूर फंसे हुए थे। जब भारत तिब्बत सीमा पुलिस के जवानों ने अपनी जान जोखिम में डालकर इस सुरंग से दर्जन भर से ज्यादा लोगों को बाहर निकाला तो उन्हें भरोसा ही नहीं हो रहा था कि वे जीवित हैं।

आइटीबीपी के अस्पताल में भर्ती चमोली जिले के राकेश भट्ट बताते हैं कि वे सुबह 10:30 बजे के करीब तपोवन पनबिजली परियोजना की सुरंग में काम कर रहे थे। अचानक उन्होंने सुरंग में मलबा आते देखा तो वह मशीन के ऊपर चढ़ गए। सुरंग में मलबा भरने से बाहर आने का उन्हें कोई रास्ता नहीं दिखाई दे रहा था, तभी एक साथी के पास उन्होंने मोबाइल देखा।

उन्होंने उस मोबाइल से परियोजना के अधिकारियों से संपर्क साधा और उन्हें बताया कि वे लोग सुरक्षित हैं और उन्हें सुरंग से बाहर निकाला जाए। भट्ट बताते हैं कि साढ़े छह घंटे बाद आइटीबीपी के जवानों ने बड़ी मशक्कत के बाद उन्हें सुरंग से बाहर निकाला। वे कहते हैं कि यदि मोबाइल की सुविधा उनके पास ना होती तो उन लोगों की जान चली जाती। मोबाइल उनके लिए वरदान साबित हुआ।

चमोली जिले के इस तपोवन क्षेत्र में चारों ओर तबाही और मौत का मंजर दिखाई दे रहा है और आसपास के गांवों में विलाप करती हुई महिलाएं और उनके परिजनों की आवाजें सुनाई दे रही हैं। आइटीबीपी के जवानों द्वारा बचाए गए वीरेंद्र कुमार इन जवानों को फरिश्ता मानते हैं। वे बताते हैं कि सुरंग में 3 मीटर तक पानी और मलबा भर गया था। जैसे-जैसे वक्त बीत रहा था, वे अपनी जिंदगी के बचने की आस छोड़ चुके थे और उनका हौसला तेजी से टूट रहा था।

उन्होंने कहा, ‘हम साथियों ने सोचा कि अब मौत सामने खड़ी है तो हम लोग आपस में हंसी मजाक करके अवसाद और मौत के डर से बचने की आखिरी कोशिश कर रहे थे परंतु इतनी देर में हमने देखा कि सुुरंग के बाहरी हिस्से में कुछ हलचल हो रही है। छह सात घंटे की कड़ी मेहनत के बाद भारत तिब्बत सीमा पुलिस के जवानों ने जब हमें और हमारे साथियों को बाहर निकालना शुरू किया तो हमें घोर आाश्चर्य हुआ। हमने देखा कि मौत को पराजित कर दिया और जिंदगी जीत गई परंतु हमें अफसोस है कि हमारे कुछ साथी मौत के मुंह में समा गए।’

सुरंग से बाहर निकाले गए बसंत, शिवराज और उनके अन्य साथियों का इलाज भारत तिब्बत सीमा पुलिस के चिकित्सालय में चल रहा है। वे दोनों बताते हैं कि सुरंग के मुहाने से तकरीबन साढ़े तीन सौ मीटर तक मलबा और पानी ही पानी दिखाई दे रहा था और उन्हें केदारनाथ की साढ़े 6 साल पहले हुई तबाही का मंजर आंखों में दिखाई दे रहा था। इस हादसे में घायल हुए किरण कहते हैं कि उन्हें नया जीवन आइटीबीपी के देवदूत बनकर आए जवानों ने दिया। वे उनके जीवन भर शुक्रगुजार रहेंगे। उनका कहना है कि इस अनुभव को वे जिंदगी भर नहीं भूल सकते।

उधर लोगों में अब यह बहस चल पड़ी है कि क्या गंगा और अलकनंदा नदी की सहायक नदियों में पनबिजली परियोजनाएं बनाना विकास का प्रतीक है या विनाश का। धौलीगंगा और ऋषि गंगा में करोड़ों रुपए की पनबिजली परियोजनाएं पूरी तरह से चौपट हो गई हैं। लोगों का कहना है कि अब यह परियोजनाएं उत्तराखंड में घाटे का सौदा साबित हो रही हैं।

पर्यावरणविद और मदन संस्था के अध्यक्ष स्वामी शिवानंद कहते हैं कि प्रकृति से छेड़छाड़ का नतीजा 2013 में केदारनाथ में देखने को मिला और अब रविवार को जोशीमठ के इलाके में इस का भयावह मंजर दिखाई दिया। विकास के नाम पर प्रकृति से छेड़छाड़ करने वालों को सावधान हो जाना चाहिए।