केन्द्र की मोदी सरकार ने 8 नवंबर, 2016 को नोटबंदी का फैसला किया था। अब उस बात को 4 साल बीत चुके हैं, लेकिन देश के करेंसी प्रिंटिंग सेक्टर में अभी तक नोटबंदी का असर बना हुआ है। सरकारी करेंसी प्रिंटिंग कंपनियां और आरबीआई अभी तक देश में करेंसी के मौजूदा स्टॉक और नई करेंसी प्रिंटिंग को लेकर संतुलन बनाने की कोशिशों में जुटे हैं। इस पूरी कवायद के चलते करेंसी के नए सिक्योरिटी फीचर्स अभी तक लागू नहीं किए जा सके हैं, जबकि इन्हें साल 2005 में ही प्रस्तावित कर दिया गया था।
बता दें कि वित्त मंत्रालय के ‘स्ट्रैटेजिक प्लानिंग ग्रुप ऑफ द करेंसी एंड कॉइंस डिविजन’ की बीते जून में एक बैठक हुई थी। इस बैठक से जुड़े सूत्रों के अनुसार, इस बैठक की अध्यक्षता वित्त सचिव ने की। इस बैठक में वित्तीय वर्ष 2019-20 के लिए नए बैंक नोटों की प्रिंटिंग योजना, लंबी अवधि के लिए सिक्कों के मांगपत्र और साथ ही करेंसी में नए सिक्योरिटी फीचर्स को लेकर चर्चा हुई। बैठक में इस बात पर भी चर्चा हुई कि नोटबंदी के बाद अभी तक नई करेंसी की प्रिंटिंग और बैंक नोट पेपर स्टॉक की स्थिति अभी तक सामान्य नहीं हो सकी है।
सूत्रों के अनुसार, नोटबंदी के चलते करेंसी में नए सिक्योरिटी फीचर्स लागू करने में भी देरी हुई है, जबकि साल 2015 में वित्त मंत्रालय ने इस पर तेजी से काम किया था। खबर के अनुसार, आरबीआई की एक उच्च स्तरीय बैठक में करेंसी के सिक्योरिटी फीचर्स में भी कुछ बदलाव किए गए हैं। सूत्रों के अनुसार, ‘नोटबंदी के बाद नोटों के साइज और डिजाइन में थोड़ा सा बदलाव किया गया है, लेकिन अन्य सिक्योरिटी फीचर्स पहले जैसे ही रहेंगे।’
करेंसी के सिक्योरिटी फीचर्स की बात करें तो इसमें सिक्योरिटी धागा और चलती-फिरती तस्वीर प्रमुख बदलाव होंगे। बताया जा रहा है कि सिक्योरिटी धागे के चलते बैंक नोट पेपर के प्रोडक्शन की लागत 30%-50% तक जाने की लागत है। सूत्रों के अनुसार, आरबीआई सिक्कों के रिवर्स फ्लो की समस्या से भी जूझ रहा है।