नोटबंदी के एलान के एक महीने बाद भी बैंकों और एटीएम में पर्याप्‍त पैसा नहीं पहुंच पा रहा है। इसके चलते अब स्थिति धीरे-धीरे हिंसक होती जा रही हैं। पिछले कुछ दिनों में बैंकों और एटीएम के बाहर मारपीट और झगड़े की घटनाओं में तेजी देखने को मिली है। उत्‍तर प्रदेश में मुजफ्फरनगर और मुरादाबाद जिलों में शुक्रवार को इस तरह के मामले सामने आए। मुजफ्फरनगर में पैसे ना मिलने से नाराज लोगों ने पंजाब नेशनल बैंक के मैनेजर की पिटाई कर दी। मैनेजर के बैंक में पैसे खत्‍म होने की जानकारी देने के बाद गुस्‍साए लोगों ने मैनेजर को पीट दिया। वहीं जिले के एक अन्‍य गांव में ग्रामीणों ने सड़क पर जाम लगा दिया।

उत्‍तर प्रदेश में ही शुक्रवार(9 दिसंबर) को मुरादाबाद में कैश ना मिलने से नाराज लोगों ने एसबीआई बैंक पर हमला बोल दिया। यहां पर उन्‍होंने बैंक की संपत्ति को नुकसान भी पहुंचाया। इससे पहले यहीं पर एक वकील से पुलिस के दुर्व्‍यवहार के बाद झड़प हो गई थी। यूपी में कई अन्‍य जिलों में भी बैंकों पर लोगों ने अपना गुस्‍सा उतारा। आजमगढ़ में यूनियन बैंक का सर्वर जाम होने पर लोगों ने पथराव कर दिया। गोरखपुर, बस्‍ती, देवरिया, सीतापुर, सिद्धार्थनगर, गाजीपुर और बलिया में भी लोगों ने रास्‍ते जाम कर दिए।

देश के अन्‍य हिस्‍सों दिल्‍ली, हैदराबाद, कोलकाता और मुंबई से भी बैंकों के बाहर झगड़े और मारपीट की खबरें सामने आ रही है। कर्नाटक के बागलकोट में लाइन में खड़े एक पूर्व सैनिक की पुलिसकर्मी ने पिटाई कर दी। पुलिसकर्मी ने पहले तो पूर्व सैनिक को बैंक में जाने से रोका और फिर कई बार उन्‍हें चांटें मार दिए। आठ नवंबर को नोटबंदी के एलान के बाद से नकदी लेने के लिए लाइनों लोगों की मौत भी हो चुकी है। हालांकि इसका कोई आधिकारिक आंकड़ा नहीं है। खबरों के अनुसार देशभर में 70 से अधिक लोग लाइनों में लगने के बाद हार्ट अटैक और ब्‍लड प्रेशर के चलते दम तोड़ चुके हैं।

इस सप्‍ताह लगातार तीन दिन तक बैंकों की छुट्टी है। इसे देखते हुए आशंका जताई जा रही है कि नकदी संकट गहरा सकता है। ग्रामीण क्षेत्रों में नोटबंदी का ज्‍यादा असर देखने को मिला है। सरकार ने पहले कुछ जगहों पर पुराने नोट चलाने की अनुमति दी थी। लेकिन अब वह अवधि भी समाप्‍त हो चुकी है। रिजर्व बैंक की नोट छापने की प्रिंटिंग प्रेसों मे तीन शिफ्टों में काम हो रहा है। लेकिन बावजूद इसके लिए पर्याप्‍त नकदी की पूर्ति नहीं हो पा रही। देश में रोजाना 50 करोड़ नोट ही छापे जा सकते हैं। इसके चलते जिन बैंकों को 50-60 लाख प्रतिदिन चाहिए होते हैं उन्‍हें केवल 5-6 लाख रुपये ही मिल रहे हें।