उत्तर पूर्वी दिल्ली में हुई हिंसा के बाद पुलिस अधिकारियों से अलग इलाके में रह रहे दोनों समुदाय के लोगों ने खुद ही शांति बनाने की जिम्मेदारी अपने कंधों पर उठा ली है। सीलमपुर फल मार्केट में दूध, ब्रेड और अन्य सामान की दुकान चलाने वाले इमरान भी लोगों के बीच चर्चा में हैं। इमरान मुनाफा लिए बिना लोगों के घरों तक सामान की आपूर्ति कर लोगों के बीच एक रहनुमा की तरह हो गए हैं। करावल नगर में रहने वाले शैफुद्दीन और पास के डीएलएफ में रहने वाले रामगोपाल बताते हैं कि ऐसे दंगों पर रोक लगाने के लिए स्थानीय लोग आगे आए हैं। पुलिस सुरक्षा के बाबत काम करती है जबकि स्थानीय लोग भाईचारा बनाने और भरोसे को कायम करने में अहम भूमिका निभा रहे हैं।
गुरु तेगबहादुर अस्पताल में शवों के पोस्टमार्टम कक्ष से लेकर आपात वार्ड और फिर करावल नगर, शिव विहार, शहीद भगत सिंह कालोनी, जौहरीपुर, भगीरथ विहार, खजूरी खास चौक से लेकर डीएलएफ तक हर जुबान पर बस एक ही बात है कि आखिर दंगे से लोगों को क्या फायदा हुआ। किसी का घर जले, परिवार का सदस्य चला गया और कुछ का तो पूरा परिवार ही उजड़ गया। गनीमत रही कि बच्चे और महिलाएं ज्यादा पीड़ितों में शामिल नहीं हैं।
शहीद भगत सिंह कॉलोनी चौक पर परचून की दुकान चलाने वाले रहमतुल्ला कहते हैं कि इस दंगे ने पूरे भरोसे का कत्ल किया है। हमने कभी भी ऐसे दंगे की कल्पना नहीं की थी। चूंकि यह बॉर्डर इलाका है लिहाजा बदमाश की लूटपाट और झपटमारी तो देखी है लेकिन सालों से साथ रह रहे लोगों का जानमाल का नुकसान उन्होंने अपनी जिंदगी में पहली बार देखा। रहमतुल्ला की दुकान बंद है और अभी एक सप्ताह और दुकान नहीं खोलेंगे। उनका कहना है कि दुकान महीनों बंद हो जाए, वे परिवार का लालन पालन दूसरे स्त्रोतों से कर लेंगे पर जिस प्रकार एक ही मोहल्ले में रहते हुए एक समुदाय का दूसरे समुदाय से भरोसा उठा है उसकी भरपाई जब तक नहीं हो जाती उनका मन दुकान खोलने की नहीं करता।
भगीरथ विहार में सुरक्षाकर्मी रामेश्वर ने बताया कि वे साइकिल से 15 किलोमीटर दूर जाकर एक निजी कंपनी में नौकरी कर परिवार चलाते हैं। पर इस दंगे से उसे इतना डर हो गया है कि वे बीते एक सप्ताह से छुट्टी पर हैं और अगले कुछ दिनों तक और छुट्टी के लिए कंपनी के प्रबंधक को बोल दिया है। जौहरीपुर में बिजली का रिक्शा चलाने वाले ज्ञानू ने बताया कि आज पांच दिनों के बाद उसने अपनी गाड़ी सड़क पर उतारी है।
आस-पड़ोस के लोगों के कहने पर और पुलिस की मौजूदगी में उसने अपनी गलियों में रिक्शा चलाकर रोजी-रोटी की शुरुआत की है। उन्होंने परिवार को भरोसा दिलाया है कि अब सबकुछ शांत हो गया है। इसी तरह दिल्ली हिंसा में चांदबाग में उपद्रवियों ने एक महिला के घर की एक मात्र सहारा बनी गाड़ी को जला दिया। चांदबाग इलाके में एक गाड़ी के शोरूम और पेट्रोल पंप के साथ एक अन्य गाड़ी को दंगाइयों ने आग के हवाले किया। यह रिचा की गाड़ी थी जिससे उसका पूरा परिवार चलता था। रिचा नामकी इस महिला के पति जागरण त्रिवेणी ने कर्ज पर लेकर एक कैब के लिए गाड़ी खरीदी थी और उससे परिवार का भरण पोषण होता था। पर दंगाइयों ने उनका यह सहारा छीन लिया।

