Delhi Violence: लोकसभा में विपक्ष के कई सदस्यों ने दिल्ली दंगों का मुद्दा उठाया। इस मुद्दे पर बहस के दौरान दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व जज जस्टिस एस मुरलीधर के “अचानक” तबादले की भी चर्चा हुई। इस दौरान बहस में बीजेपी सांसदों ने जजों और अदालतों पर भी अंगुली उठाई। दिल्ली की सांसद मीनाक्षी लेखी ने ‘अहिंसक विरोध की अनुमति देने’ के स्वविवेक पर सवाल उठाया।
लेखी ने बहस में हिस्सा लेते हुए कहा, “कुछ जजों (मैं उनका नाम नहीं लूंगी) को लगता है कि पुलिस को तब तक कार्रवाई नहीं करनी चाहिए जब तक की विरोध हिंसक न हो जाए। ऐसी परिस्थितियों में यह अनुमान लगाना मुश्किल है कि शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन कब हिंसक हो जाएगा। कौन तय करेगा कि विरोध कब हिंसक होगा?” लेखी ने दंगों का आरोप दिसंबर से दिल्ली में चल रहे सीएए विरोध प्रदर्शनों पर लगाया। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि दंगों के दौरान बहुसंख्यक, अल्पसंख्यकों के कारण प्रभावित हुए।
बेतिया से बीजेपी सांसद और बीजेपी बिहार प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल ने भी दिल्ली दंगों के लिए अदालतों को जिम्मेदार ठहराया और कहा कि अदातल की वजह से ही लंबे समय तक तनाव बना रहा। दिल्ली दंगों के लिए विपक्षी दलों और अल्पसंख्यक समुदाय के कुछ तत्वों को दोषी ठहराते हुए जायसवाल ने कहा, “दिल्ली के दंगों का एक और अपराधी है। मैं आज देश की न्यायिक व्यवस्था को कटघरे में खड़ा करना चाहता हूं। हम सभी जन प्रतिनिधि हैं। जब हम सड़क पर आंदोलन करते हैं या रेल लाइन या सड़क को अवरुद्ध करते हैं, तो हम अदालतों द्वारा मुकदमे का सामना करते हैं।”
1955 से 2011 तक कई मामलों का हवाला देते हुए, जायसवाल ने कहा कि शीर्ष अदालत ने माना था कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मतलब यह नहीं कि लोग रेल और सड़कों को बाधित कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि शीर्ष अदालत ने यहां तक कहा था कि रेल और सड़कों को अवरुद्ध करने वाले मामलों की सुनवाई फास्ट-ट्रैक अदालतों में होनी चाहिए।
जायसवाल ने कहा, “फिर क्या कारण है कि जब दिल्ली में रोजाना 10 लाख लोग परेशानियों का सामना कर रहे हैं, तो अदालत प्रदर्शनकारियों से बात करने के लिए मध्यस्थों को भेज रही है? मध्यस्थों में वह व्यक्ति है जिस पर कथित तौर पर उन आतंकवादियों को सहायता करने का आरोप हैं, जिन्होंने हजरतबल दरगाह (कश्मीर में) पर कब्जा कर लिया था। वह शाहीन बाग में जाते हैं और कहतें हैं कि लोग सड़क नहीं रोक रहे हैं बल्कि पुलिस ऐसा कर रही है।”
उन्होंने शाहीन बाग में सड़क जाम करने वालों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की। जायसवाल ने कहा, “या तो सर्वोच्च न्यायालय को यह कहना चाहिए कि सड़क, रेल लाइन को अवरुद्ध करना या यहां तक की सुप्रीम कोर्ट को बंद करना कोई अपराध नहीं है और लोग शांतिपूर्ण तरीके से विरोध कर सकते हैं।”
बीजेपी के कई अन्य सांसदों ने जस्टिस मुरलीधर के तबादले पर सरकार की कार्रवाई का यह कहते हुए बचाव किया कि इसके लिए सुप्रीम कोर्ट की कॉलेजियम प्रणाली के तहत सिफारिश की गई थी और सरकार ने केवल सिफारिशों का पालन किया।
विपक्ष ने सरकार को जस्टिस मुरलीधर के तबादले सरकार को घेरने कोशिश की और कहा कि उनका तबादला इसलिए किया गया क्योंकि उन्होंने भाजपा नेताओं कपिल मिश्रा, प्रवेश वर्मा और अनुराग ठाकुर पर ‘हेट स्पीच’ को लेकर एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया था।