दिल्ली यूनिवर्सिटी (DU) का चुनाव इस बार दिलचस्प होने वाला है। दिल्ली विश्वविद्यालय (DU) के नॉर्थ कैंपस में उत्सव के ऑडिशन और परीक्षा कार्यक्रमों के नोटिसों के बीच एक अलग तरह का पोस्टर लगा है। इसमें छात्रों से ASAP से जुड़ने का आग्रह किया गया है, जिसका इशारा आम आदमी पार्टी (AAP) की छात्र शाखा एसोसिएशन ऑफ स्टूडेंट्स फॉर अल्टरनेटिव पॉलिटिक्स (ASAP) से है। आर्ट्स फैकल्टी के पास ASAP के बूथ खुल गए हैं, जहां छात्रों से उनके वैकल्पिक राजनीति आंदोलन में शामिल होने का आग्रह कर रहे हैं। पोस्टर और नामांकन पत्र धन, बाहुबल और जाति-आधारित उम्मीदवारी को अस्वीकार करने का दावा करता है।
ABVP और NSUI को छोड़ रहे छात्र नेता
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) और भारतीय राष्ट्रीय छात्र संघ (NSUI) के कई पूर्व सदस्य भी शामिल हुए हैं। DUSU चुनावों में ASAP का यह पहला औपचारिक चुनाव होगा। AAP द्वारा 2013 में अपने युवा संगठन छात्र युवा संघर्ष समिति (CYSS) की शुरुआत की गई थी। CYSS ने पहली बार 2015 में DUSU चुनाव लड़ा था। हहालांकि इसने DUSU और पंजाब विश्वविद्यालय (PU) के चुनावों में सीमित सफलता हासिल की थी, लेकिन दिल्ली के छात्र परिदृश्य से धीरे-धीरे गायब हो गया था। दिल्ली में AAP के सत्ता से बेदखल होने के बाद पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और पूर्व उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कॉन्स्टिट्यूशन क्लब ऑफ़ इंडिया में एक कार्यक्रम में युवा शाखा को ASAP के रूप में फिर से लॉन्च किया।
ASAP में क्यों शामिल हो रहे ABVP और NSUI के छात्र?
ASAP के नए लोगो में एक फाउंटेन-पेन की निब जिसमें रॉकेट की तरह लपटें निकल रही थीं। केजरीवाल ने दावा किया कि सत्ता के दुरुपयोग से चुनाव जीतना मुख्यधारा की राजनीति है, जबकि ASAP का मिशन दिल जीतना है। DU में एबीवीपी और एनएसयूआई के कई उम्मीदवार और पूर्व पदाधिकारी DUSU चुनावों में लंबे समय से हावी रहे धन और बाहुबल से ऊबकर ASAP में शामिल हो गए हैं।
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कांग्रेस की ओबीसी शाखा के पूर्व प्रदेश सचिव अमित डेढ़ा ने कहा कि वह इसी जकड़ को तोड़ना चाहते हैं। सात साल तक एनएसयूआई का दिल्ली चेहरा रहे अमित 20 दिन पहले ही ASAP में शामिल हुए हैं। उन्होंने कहा, “यह सिर्फ़ एबीवीपी की बात नहीं है। एनएसयूआई भी इसी रणनीति पर काम करती है। सिर्फ़ उन्हीं को मैदान में उतारती है जिनके पास पैसे होते हैं। लेकिन अब यूपी और बिहार से बहुत सारे छात्र डीयू आ रहे हैं। उनके पास कोई आवाज़ नहीं बची है क्योंकि उम्मीदवारों की सूची पहले से ही धन और जाति के आधार पर तय है। ASAP उन्हें एक नया रास्ता देता है।”
अपने नए चेहरे के बावजूद ASAP की जड़ें CYSS से जुड़ी हुई हैं, जो पिछले साल लगातार दूसरे साल डूसू चुनावों से आधिकारिक तौर पर बाहर रही थी। पीयू चुनावों में हार के बावजूद CYSS ने आबकारी नीति मामले में केजरीवाल की गिरफ़्तारी के बाद अप्रैल में ‘मशाल मार्च’ जैसे प्रतीकात्मक कार्यों के ज़रिए परिसर में अपनी उपस्थिति बनाए रखी। अब ASAP उसे वोटों में बदलना चाहता है। 20 वर्षीय युवराज सिंह जो कभी भाजपा के युवा प्रवक्ता और लंबे समय से एबीवीपी प्रचारक रहे हैं, इस धुरी का हिस्सा बन चुके हैं।
क्या है ASAP का लक्ष्य?
33 वर्षीय दीपक बंसल जो 2011 में DUSU के संयुक्त सचिव थे और छह साल तक एबीवीपी के साथ रहे, वह 2023 में सीवाईएसएस में शामिल हुए थे। अब वह पंजाब यूनिवर्सिटी और DU दोनों में पार्टी की रणनीति को आगे बढ़ाने में मदद कर रहे हैं। उन्होंने कहा, “DUSU चुनावों में हमेशा से ही पैसों की ज़रूरत रही है। किसी उम्मीदवार के नाम पर विचार करने के लिए उसे नकदी लेकर आना चाहिए, या कम से कम अमीर पृष्ठभूमि से होना चाहिए। यह हम जैसे छात्रों के लिए दरवाज़ा बंद कर देता है, जो मध्यमवर्गीय परिवारों से आते हैं, जिनके पास विचार और ऊर्जा तो है, लेकिन कोई राजनीतिक गॉडफादर नहीं है।”
दीपक बंसल ने आगे कहा, “जब मैं 2011 में जीता था, तब हमने छात्र बस पास और ‘यू-स्पेशल’ बसों की तैनाती जैसे मुद्दे उठाए थे। लेकिन सालों बाद भी, ये माँगें अभी भी लंबित हैं। DUSU एक ऐसा राजनीतिक मंच बन गया है जहां दिखावे की तो ज़्यादा है, लेकिन काम करने की कम। यही वह चीज़ है जिसे ASAP बदलना चाहता है।”
ईश्वर चंद, जो कभी दिल्ली में ABVP के प्रदेश अध्यक्ष (2009-2015) रहे थे और फिर मयूर विहार में भाजपा के ज़िला महासचिव बने, वह पिछले साल आप में शामिल हुए थे। आज वह ASAP के DUSU में एंट्री की तैयारी की देखरेख कर रहे हैं। ईश्वर चंद ने कहा, “मैं पूर्वांचली हूं। लेकिन ABVP या NSUI में, आप मेरे जैसे लोगों को टिकट पाते नहीं देखेंगे। हमेशा जाट और गुर्जर ही टिकट पाते हैं, जिनके पास दौलत, कार और स्थानीय रसूख होता है। 52 कॉलेजों में डेढ़ लाख मतदाता हैं और फिर भी हर साल केंद्रीय पैनल में उन्हीं दो जाति समूहों के उम्मीदवार होते हैं जाट और गुर्जर।”
डीयू में कई लोग इसे क्षेत्रीय लाभ बताते हैं। 2023 में एबीवीपी ने अध्यक्ष पद के लिए गुर्जर तुषार डेढ़ा को मैदान में उतारा था, जबकि एनएसयूआई ने जाट हितेश गुलिया को उम्मीदवार बनाया था। पिछले वर्षों में भी यही पैटर्न रहा।
क्या है छात्रों की उम्मीद?
युवराज सिंह जो कभी भाजपा के युवा प्रवक्ता और लंबे समय तक एबीवीपी प्रचारक रहे हैं, वह भी अब ASAP में हैं। युवराज सिंह ने कहा, “मेरा परिवार आपातकाल के समय से ही भाजपा के साथ है। लेकिन अंदर से जो मैंने देखा, उसने मुझे तोड़ दिया। उम्मीदवारों को दरकिनार किया जा रहा था, नए उम्मीदवार लाए जा रहे थे, सिर्फ़ पैसा मायने रखता था। मैंने उम्मीद छोड़ दी थी। फिर मुझे एक स्वतंत्र दृष्टिकोण मिला और मैं मई में ASAP के लॉन्च में शामिल हुआ। ऐसा लगा जैसे कोई हमारी भाषा बोल रहा हो।” युवराज सिंह अब कॉलेज ऑफ वोकेशनल स्टडीज में द्वितीय वर्ष के छात्र हैं और एएसएपी के सबसे युवा प्रचारकों में से एक हैं।