देश की राजधानी दिल्ली में प्रधानमंत्री के आधिकारिक आवास से कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर कुछ झुग्गियों के कैंप हैं। ऐसी 3 झुग्गियों को आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय के भूमि एवं विकास कार्यालय से बेदखली और पुनर्वास का नोटिस मिला है। बताया जाता है कि यह झुग्गियां अवैध है और सरकारी जमीन पर बनी है। ऐसे में यहां रह रहे परिवार चिंतित हैं। हालांकि जो पात्र परिवार हैं उन्हें पुनर्वास के लिए जगह दी गई है, लेकिन वह काफी दूरी पर है।

भविष्य को लेकर चिंतित है परिवार

यहीं पर रूपलाल अपने परिवार के साथ रहते हैं और वह आने वाले भविष्य को लेकर चिंतित हैं। एक डबल गद्दे पर लेटे, कंबल ओढ़े और कानों को ढकने वाली सर्दियों की टोपी पहने रूपलाल अपने परिवार के बारे में चिंतित हैं। पिछले आठ सालों से बिस्तर पर पड़े 65 वर्षीय रूपलाल कहते हैं, “सर्दियों में अपना घर छोड़ना कैसे संभव है? मैं बहुत छोटी उम्र में अपने पिता के साथ यहां आ गया था।” यह बुज़ुर्ग व्यक्ति लोक कल्याण मार्ग (जिसे पहले रेसकोर्स रोड कहा जाता था) पर डीआईडी कैंप में रहता है, जो प्रधानमंत्री के आधिकारिक आवास से कुछ ही किलोमीटर दूर है। इस कैंप में 90 घर हैं ।

रूपलाल के बगल में बैठी उनकी 60 वर्षीय पत्नी आशा कहती हैं, “हमने किराए के कमरे देखे हैं, लेकिन उनका किराया लगभग 10,000 से 15,000 रुपये है। हम इतना खर्च नहीं उठा सकते।” उनका बेटा जो एक निजी कंपनी में काम करता है, वहीं परिवार का एकमात्र कमाने वाला है। 29 अक्टूबर को जारी किए गए नोटिस में कहा गया है कि इन झुग्गियों के पुनर्वास के संबंध में जनवरी 2024 में भूमि एवं विकास विभाग और दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) द्वारा एक संयुक्त सर्वेक्षण किया गया था।

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बेदखली नोटिस में कहा गया है, “यह नोटिस आपको रेसकोर्स क्षेत्र में सरकारी भूमि पर स्थित अवैध झुग्गी-झोपड़ी (जेजे) क्लस्टर में रहने वाले एक अवैध निवासी के रूप में जारी किया जाता है। चूंकि परिसर पर आपका कब्ज़ा अवैध है और आप पुनर्वास योजना के तहत वैकल्पिक आवास के लिए पात्र नहीं हैं, इसलिए आपको इस नोटिस के जारी होने की तारीख से 15 दिनों के भीतर खाली करने का निर्देश दिया जाता है।”

साथ में चिपकाए गए एक ‘पुनर्वास नोटिस’ में कहा गया है, “हमें आपको यह सूचित करते हुए खुशी हो रही है कि उपयुक्त और स्वीकृत आवास डीयूएसआईबी कॉलोनी, सावदा घेवरा में चिन्हित किया गया है, जो लगभग 40 किलोमीटर दूर है। इसमें उन्हें खाली करने के लिए 15 दिन का समय दिया गया है।”

इसमें ‘पात्र’ या ‘अपात्र’ के रूप में चिह्नित नामों की सूची है. साथ ही प्रत्येक के लिए कारण भी दिए गए हैं। अपात्र निवासियों के आगे कुछ कारण बताए गए थे, जैसे, “कोई वैध अनिवार्य दस्तावेज प्रस्तुत नहीं किया गया, किसी का वर्ष 2012, 2013, 2014 और जनवरी 2015 तक किसी भी मतदाता सूची में नाम नहीं मिला या झुग्गी किसी अन्य व्यक्ति को बेच दी गई।

रूपलाल के परिवार को पुनर्वास के लिए पात्र पाया गया है, लेकिन आशा का कहना है कि वे वहां से जाने को तैयार नहीं हैं क्योंकि उनके पति का सफदरजंग अस्पताल में इलाज चल रहा है।आस-पास के दो अन्य झुग्गी समूहों (भाई राम कैंप और मस्जिद कैंप) को भी इसी तरह के नोटिस मिले हैं। कई निवासी रेसकोर्स और जयपुर पोलो ग्राउंड में घुड़सवारी प्रशिक्षक या मजदूर के रूप में काम करते हैं।

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डीआईडी कैंप के निवासी कृष्ण कुमार का दावा है कि तीनों झुग्गी समूहों के निवासियों ने दिल्ली के मंत्री प्रवेश साहिब सिंह (जो क्षेत्र के विधायक भी हैं) से मुलाकात की थी और नोटिस हटाने का अनुरोध किया था। उनका दावा है, “मंत्री ने कहा है कि उन्होंने अधिकारियों से बात की है और झुग्गियाँ नहीं तोड़ी जाएँगी। लेकिन देखते हैं क्या होता है।”

‘जहां झुग्गी वहां मकान, कहां है वो अब?’

पुनर्वास के पात्र कृष्ण कुमार ने बताया कि सर्वेक्षण के दौरान आधार, राशन और मतदाता पहचान पत्र जैसे दस्तावेज़ों की जांच की गई थी। एक महिला नाम न छापने की शर्त पर कहती है, “बच्चों का स्कूल यहीं पास में है, मेरे पति का काम भी पास में है। जब से ये सरकार आई है, जब से ये चल रहा है। बोले थे जहां झुग्गी वहां मकान, कहां है वो अब?”

भाई राम कैंप के प्रवेश द्वार पर भी पात्र और अपात्र लोगों की सूची लगी हुई है। निवासियों का दावा है कि यहां 70-80 घर हैं। इस कैंप में जन्मे 51 वर्षीय सैमुअल रायकल का दावा है कि सावदा घेवरा के फ्लैट रहने लायक नहीं हैं। उन्होंने कहा, “मैंने फ्लैटों का दौरा किया, उन्हें और काम की ज़रूरत है। वे अभी तैयार नहीं हैं।” उन्हें पुनर्वास की पेशकश की गई है।

क्लस्टर की प्रधान का कहना है कि उन्होंने 7 किलोमीटर के दायरे में लोगों को ट्रांसफर करने का अनुरोध किया था। वह आगे कहती हैं, “यह हमें जारी किया गया पहला नोटिस नहीं है, लेकिन पहली बार कोई समय सीमा दी गई है।” हरे-भरे जयपुर पोलो ग्राउंड के सामने मस्जिद कैंप है, जहां लगभग 50 परिवार रहते हैं। कई परिवार यहां किराए पर रहते हैं, जिनका किराया लगभग 6,000-7,000 रुपये है। एक महिला कहती है, “हम किराए पर रहते हैं, तो हमारा नाम सूची में कैसे आएगा? मेरे पति रेसकोर्स में बेलदार (मजदूर) का काम करते हैं।”

भूमि एवं विकास विभाग और डीडीए ने टिप्पणी के अनुरोधों का जवाब नहीं दिया। एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी कहते हैं, “दिल्ली में लगभग सभी झुग्गी बस्तियों का सर्वेक्षण किया जा रहा है क्योंकि वे सरकारी ज़मीन पर हैं, और कुछ वीवीआईपी इलाकों में भी हैं, जिसका मतलब है कि उन्हें अंततः बेदखल किया जाएगा। लेकिन सरकार एक ऐसी नीति लाने की योजना बना रही है जिसके तहत लोगों का 2-3 किलोमीटर के दायरे में पुनर्वास किया जाएगा।”