दिल्ली में प्रदूषण का स्तर लगातार गंभीर श्रेणी में बना हुआ है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार, मंगलवार सुबह 9 बजे दिल्ली का AQI 488 दर्ज किया गया। राजधानी के 32 निगरानी केंद्रों में से 31 में एक्यूआई का स्तर 480 से अधिक दर्ज किया गया। इस सबके बीच दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने आर्टिफिशियल रेन के लिए केंद्र सरकार को चिट्ठी लिखी है।
गोपाल राय ने दिल्ली में कृत्रिम बारिश कराने के लिए केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव को चिट्ठी लिखी है। चिट्ठी में कहा गया है कि दिल्ली में प्रदूषण बेहद गंभीर श्रेणी में है और इससे निपटने के लिए कृत्रिम बारिश कराने की जरूरत है। गोपाल राय ने कहा कि उत्तर भारत इस समय स्मॉग की परतों में लिपटा हुआ है। आर्टिफिशियल रेन ही इसे हटाने का एकमात्र समाधान है।
इस सबके बीच आइये जानते हैं क्या होती है आर्टिफ़िशियल रेन और ये कैसे कराई जाती है?
कृत्रिम बारिश, जिसे क्लाउड सीडिंग के नाम से भी जाना जाता है नकली बारिश कराने के लिए हवा में पदार्थों को फैलाकर उपयोग की जाने वाली एक टेक्निक है। इस तकनीक में सिल्वर आयोडाइड, पोटेशियम आयोडाइड या ड्राई आइस जैसे मटेरियल के साथ क्लाउड सीडिंग करना शामिल है। इसमें हेलीकॉप्टर के माध्यम से वायुमंडल में सिल्वर आयोडाइड, पोटेशियम आयोडाइड और सूखी बर्फ जैसे रसायनों का छिड़काव किया जाता है।
ये कण जलवाष्प को आकर्षित करते हैं, जिससे बादल बनते हैं और बाद में बारिश होती है। हालांकि, इस तकनीक का प्रयोग दशकों से किया जा रहा है लेकिन इसकी प्रभावशीलता वायुमंडलीय स्थितियों और अन्य कारकों के आधार पर अलग हो सकती है। क्लाउड सीडिंग का उपयोग सूखे से जूझ रहे क्षेत्रों में बारिश कराने, ओलावृष्टि को दबाने और कोहरे को दूर करने के लिए किया जाता है।
Delhi Pollution: दिल्ली में कृत्रिम बारिश की तैयारी, गोपाल राय ने NoC के लिए केंद्र को लिखी चिट्ठी
एयर क्वालिटी में सुधार के लिए आर्टिफिशियल रेन कैसे काम करती है?
कृत्रिम बारिश हवा में मौजूद प्रदूषकों को धो देती है। यह पार्टिकुलेट मैटर (PM), नाइट्रोजन ऑक्साइड और सल्फर डाइऑक्साइड को धो सकती है। ये प्रदूषक श्वसन संक्रमण, हृदय रोग और कैंसर सहित विभिन्न प्रकार की स्वास्थ्य समस्याएं पैदा कर सकते हैं।
कृत्रिम बारिश से हवा में आर्द्रता बढ़ सकती है। हयूमीडिटी प्रदूषकों को फैलने से रोकने में मदद कर सकती है। इससे वायु प्रदूषण के स्तर में कमी आ सकती है। साथ ही कृत्रिम बारिश हवा में मौजूद धूल और अन्य कणों की मात्रा को कम करने में मदद कर सकती है। धूल और अन्य कण आंखों, नाक और गले में जलन पैदा करते हैं और अस्थमा और अन्य श्वसन स्थितियों को भी बढ़ा सकते हैं।
दुनिया भर के देश 1940 के दशक से ही क्लाउड सीडिंग पर काम कर रहे हैं। कई सालों से, चीन और मध्य पूर्व के देशों ने वायु प्रदूषण से निपटने के लिए कृत्रिम बारिश का उपयोग किया है।
COP29 बैठक में भी छाया दिल्ली के प्रदूषण का मुद्दा, कनाडा बोला- गरीब देशों की करनी होगी मदद
कृत्रिम बारिश अस्थायी राहत प्रदान करती है
कृत्रिम बारिश जहां अस्थायी राहत प्रदान करती है, यह दीर्घकालिक समाधान नहीं है। क्लाउड सीडिंग के लिए गृह मंत्रालय और विशेष सुरक्षा समूह सहित विभिन्न अधिकारियों से अनुमति की आवश्यकता होती है। इसमें पर्यावरणीय कमियां भी हैं, जैसे महासागरों का अम्लीकरण, ओजोन परत का क्षय और जहरीले सिल्वर आयोडाइड से संभावित नुकसान।
कितनी होती है आर्टिफिशियल रेन की लागत?
आईआईटी कानपुर दिल्ली में प्रदूषकों और धूल से निपटने के लिए एक अस्थायी समाधान के रूप में कृत्रिम बारिश कराने की पहल का नेतृत्व कर रहा है। टीम की योजना बादलों में फ्लेयर्स से नमक छोड़ने की है जिसके लिए छह सीटों वाले Cessna प्लेन का इस्तेमाल किया जाएगा। इस प्रक्रिया का उद्देश्य कंडेंसेशन प्रोसेस को तेज करना है, जिसके परिणामस्वरूप आखिरकार बारिश होती है। आईआईटी टीम ने दिल्ली सरकार को सूचित किया कि परियोजना की अनुमानित लागत लगभग 1 लाख रुपये प्रति वर्ग किलोमीटर है।
सूत्रों के मुताबिक, दिल्ली सरकार ने कृत्रिम बारिश की लागत वहन करने का फैसला किया है, जो 20 नवंबर तक कराई जा सकती है अगर केंद्र दिल्ली सरकार को अपना समर्थन देता है। कृत्रिम बारिश से दिल्ली-एनसीआर में लोगों को लगभग एक हफ्ते के लिए खराब एयर क्वालिटी से थोड़ी राहत मिल सकती है।