दिल्ली में प्रदूषण की बिगड़ती स्थिति को देखते हुए आर्टिफिशियल रेन करवाने का फैसला लिया गया है। बताया जा रहा है कि 20 और 21 नवंबर को दिल्ली सरकार राजधानी में कत्रिम बारिश करवा सकती है। IIT कानपुर द्वारा जो सलह दी गई है, उस पर अमल करते हुए केजरीवाल सरकार इस फैसले को लेकर मन बना चुकी है। अब सुप्रीम कोर्ट को इस फैसले की जानकारी देनी और केंद्र से भी परमीशन लेनी होगी।

कितना खर्चा आएगा, क्या है प्लान?

बड़ी बात ये है कि आर्टिफिशियल रेन काफी महंगी प्रक्रिया है, इसमें करोड़ों रुपये खर्च हो जाते हैं। अब बताया ये जा रहा है कि दिल्ली सरकार ही इस पूरे खर्चे का वहन करने वाली है, यानी कि जितना भी पैसा लगेगा, वो राज्य सरकार अपनी तरफ से देगी। अभी के लिए पहले चरण में 300 वर्ग किलोमीटर का इलाका कवर करने की तैयारी है, इसमें भी 13 करोड़ के करीब रुपये लग सकते हैं। लेकिन आईआईटी-कानपुर टीम से मिली जानकारी के अनुसार, कृत्रिम बारिश कराने के लिए केंद्र सरकार के 10 मंत्रालयों और एजेंसियों के साथ-साथ उत्तर प्रदेश सरकार की अनुमति की आवश्यकता होगी।

20 नवंबर को ही क्यों करवाना है?

एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि दिल्ली सरकार ने कृत्रिम बारिश पर आने वाली लागत वहन करने का फैसला किया है। अगर केंद्र, दिल्ली सरकार को अपना समर्थन देता है, तो 20 नवंबर तक कृत्रिम बारिश कराई जा सकती है। अब यहां ये समझना जरूरी है कि आर्टिफिशियल रेन के लिए भी एक खास मौसम की जरूरत रहती है। अगर हवा की दिशा गलत रही तो ये महंगा प्रोजेक्ट भी धरा का धरा रह सकता है। बताया ये जा रहा है कि कत्रिम बारिश के लिए नमी वाले मौसम की सबसे ज्यादा जरूरत रहती है। मौसम विभाग के मुताबिक 20 और 21 नवंबर को वैसी स्थिति बन सकती है, इसी वजह से इतने दिनों बाद दिल्ली सरकार द्वारा आर्टिफिशियल रेन करवाने की बात हुई।

असल में कृत्रिम बारिश करवाने के लिए सबसे पहले क्लाउड सीडिंग करवाना पड़ता है। आसान शब्दों में इसका मतलब ये होता है कि एक नकली बादल तैयार करना होता है। वो नकली बादल भी तब बनता है जब सिल्वर आयोडाइड नाम के केमिकल को हल्के बादलों के बीच में स्प्रे किया जाता है। इस पूरी प्रक्रिया में एक प्लेन को भी अपना योगदान देना पड़ता है।

कैसे होती है कत्रिम बारिश?

यहां ये समझना जरूरी है कि जिस केमिकल का छिड़काव किया जाता है उससे नकली बूंदे बनती हैं और जब बादल उनका भार नहीं ले पाता वो नीचे बारिश के रूप में बरसने लगती हैं। अब इसे ही आर्टिफिशियल रेन कहा जाता है। अब ये तो पूरी प्रक्रिया पता चल गई है, लेकिन इसे अंजाम तक पहुंचाना भी इतना आसान नहीं रहता है। असल में एक प्लेन को आर्टिफिशियल रेन में सबसे बड़ी भूमिका निभानी पड़ती है। जिस केमिकल का छिड़काव किया जाता है, वो एक इंस्ट्रूमेंट के जरिए आसमान में छोड़ा जाता है। वो इंस्ट्रूमेंट भी प्लेन में ही फिट किया जाता है, ऐसे में एक विमान की अहम भूमिका रहती है।