दिल्ली हाई कोर्ट ने दो नागरिकों के खिलाफ पुलिस की बर्बरता के मामले में नए सिरे से जांच का आदेश दिया है और कहा है कि कानून लोगों को पुलिस हिरासत में या पूछताछ के दौरान पीटने की अनुमति नहीं देता है।

जस्टिस नजमी वजीरी ने अपने फैसले में कहा कि किसी हमले या अपराध के लिए दंड को कानून की अदालत द्वारा निर्धारित किया जाना है। पुलिस अपने आप न्यायाधीश नहीं हो सकती।

उन्होंने कहा कि लोगों को पुलिस हिरासत में या पूछताछ के दौरान पीटने की अनुमति कानून नहीं देता है। इसलिए पुलिस द्वारा याचिकाकर्ता और उसके सहयोगी पर हमला संदेहास्पद है।

उन्होंने ये भी कहा कि किसी को भी जॉर्ज पेरी फ़्लॉइड की तरह दुखद अंतिम शब्दों को ना दोहराने दें, जिसमें उन्होंने कहा था कि मैं सांस नहीं ले सकता।

याचिकाकर्ता ने यह दावा करते हुए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था कि 25 जनवरी, 2021 को दिल्ली पुलिस के जवानों ने उसे बेरहमी से पीटा और गंभीर रूप से घायल कर दिया। उन्होंने दावा किया कि पुलिस आयुक्त के समक्ष शिकायत दर्ज कराने के बाद भी कोई जांच नहीं हुई है।

उन्होंने अदालत का ध्यान एक सीसीटीवी कैमरे से खींची गई कुछ तस्वीरों की ओर दिलाया, जिसमें साफ तौर पर पुलिसकर्मियों द्वारा बार-बार हमला करते हुए दिखाया गया है।

याचिकाकर्ता ने कहा कि विजिलेंस इंस्पेक्टर द्वारा प्रारंभिक जांच किए जाने के बाद ये मामला इस तरह बंद कर दिया गया जैसे कि कुछ हुआ ही नहीं। इसके बाद याचिकाकर्ता ने मामले की जांच के लिए एक बड़े अधिकारी को निर्देश देने की प्रार्थना की।

एनसीटी दिल्ली राज्य की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ने इस बारे में कहा कि इस मामले के सीसीटीवी में कैद होने से पहले, पुलिस स्टेशन के ठीक बाहर निजी पक्षों के बीच झगड़ा हुआ था और पुलिस ने हाथापाई को रोकने के लिए हस्तक्षेप किया था। वहीं इस मामले में कोर्ट ने पुलिस उपायुक्त (सतर्कता) द्वारा मामले की नए सिरे से जांच करने का आदेश दिया है।