दिल्ली-एनसीआर में किडनी रैकेट के मामले बढ़ते जा रहे हैं। इस बीच इंडियन एक्सप्रेस ने एक इन्वेस्टिगेशन किया है, जिसमें हैरान कर देने वाली जानकारी सामने आई है। पिछले कुछ महीनो में दिल्ली-एनसीआर के दो लोकप्रिय अस्पतालों के सिस्टम में खामियों का फायदा उठाया गया और किडनी प्रत्यारोपण के नाम पर ब्लैक मार्केटिंग की गई। पुलिस ने 10 आरोपियों के सिंडिकेट और एक सर्जन को गिरफ्तार किया था। 50 वर्षीय सर्जन डॉ विजया राजकुमारी ने पिछले तीन सालों में नोएडा के अपोलो और यथार्थ हॉस्पिटल में 20 से 25 बांग्लादेशी रोगियों के किडनी प्रत्यारोपण किए थे।

सर्जन ने आरोपों से किया इनकार

पुलिस ने 1 जुलाई को सर्जन को गिरफ्तार किया था। हालांकि अब वह जमानत पर बाहर हैं। उन्होंने कोर्ट में सभी आरोपों से इनकार भी कर दिया है। इस बीच पुलिस ने 2018 से 2024 तक नोएडा के अपोलो और यथार्थ अस्पताल में बांग्लादेशी रोगियों पर किए गए 125 से 130 किडनी प्रत्यारोपण का विवरण मांगा है।

गिरफ्तार किए गए लोगों में दो बांग्लादेशी नागरिक भी शामिल हैं और भारत के मेडिकल टूरिज्म में काम करने वाला एक ट्रांसलेटर भी शामिल है। दिल्ली पुलिस ने रैकेट का भंडाफोड़ किया है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने अप्रैल में ही विदेशियों के लिए किए गए अंग प्रत्यारोपण से संबंधित एक चेतावनी जारी की थी। इसके बाद दिल्ली पुलिस एक्टिव हुई और मामले की जांच शुरू हुई।

Baba Siddique Murder: बाबा सिद्दीकी ही नहीं पहले भी इन नेताओं की हत्या से दहल चुकी है मुंबई

दो अस्पतालों से जुड़े हैं तैयार

17 जून को इस मामले को लेकर शिकायत दर्ज हुई थी। उसके बाद दिल्ली पुलिस ने चार्जशीट तैयार की। दिल्ली हाईकोर्ट ने 23 अगस्त को डॉक्टर राजकुमारी को जमानत दी। दिल्ली पुलिस के अनुसार डॉक्टर राजकुमारी मुख्य रूप से इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल से जुड़ी हुई थीं। नोएडा में अपोलो अस्पताल और दिल्ली में इंद्रप्रस्थ अपोलो हैदराबाद स्थित अपोलो ग्रुप का हॉस्पिटल्स का हिस्सा है। इस मामले में अन्य आरोपी भी जमानत पर बाहर हैं। 12 सितंबर को दिल्ली की अदालत ने धोखाधड़ी और अपराधिक साजिश सहित कई धाराओं में और मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम, 1994 के तहत चार्जशीट का संज्ञान लिया था।

करीबी ब्लड रिलेशन वाले लोगों को ही अंगदान करने की अनुमति

भारत में अंग प्रत्यारोपण को काफी सख्ती से विनियमित किया जाता है और केवल करीबी ब्लड रिलेशन वाले लोगों को ही अंगदान करने की अनुमति होती है। इनमें माता-पिता, भाई बहन, बच्चे, दादी-दादा, पोते पोतिया और पति पत्नी ही शामिल हैं। इसके अलावा अन्य रिश्तेदार विशेष परिस्थितियों में ही दान कर सकते हैं, जो सरकार द्वारा नियुक्त समिति के अनुमोदित करने के बाद ही संपन्न होता है। वहीं विदेशी नागरिकों को अंगदान कराने के लिए फॉर्म 21 जमा करना होता है। यह एक तरीके से संबंधित व्यक्ति के दूतावास से अनापत्ति प्रमाण पत्र (NOC) होता है। इसमें व्यक्ति यह साबित करता है कि अंगदान प्यार से प्रेरित है, ना कि पैसे और जबरदस्ती से।

दिल्ली-ढाका रैकेट में मामला जो सामने आया है, उसमें पुलिस के अनुसार हर एक प्रत्यारोपण के लिए फॉर्म 21 को सुरक्षित बनाया गया और सिंडिकेट ने कथित तौर पर नकली पारिवारिक पृष्ठभूमि और गलत दस्तावेजों का उपयोग किया। इसका इस्तेमाल करके किडनी डोनर और रिसीवर के बीच संबंध बनाए गए। फार्म 21 के इस तरह का दुरुपयोग भारत में पहली बार हुआ है।

डॉक्टर राजकुमारी पर है आरोप

इंडियन एक्सप्रेस ने पूरे मामले के रिकॉर्ड का विश्लेषण किया। इससे पता चलता है कि डॉक्टर राजकुमारी ने कथित तौर पर 1 जनवरी 2018 से 31 मार्च 2023 के बीच नोएडा के अपोलो अस्पताल में बांग्लादेशी रोगियों को मिलाकर कुल 66 किडनी प्रत्यारोपण की सर्जरी की। राजकुमारी ने कथित तौर पर 7 अगस्त 2022 से लेकर 13 मई 2024 के बीच नोएडा के यथार्थ हॉस्पिटल में विदेशियों पर 78 ऐसे ही ऑपरेशन किए और इनमें 61 बांग्लादेशी मरीज शामिल थे।

Baba Siddique Murder Case: बाबा सिद्दीकी हत्याकांड के बाद क्यों निशाने पर हैं देवेंद्र फडणवीस? NCP ने भी उठाए सवाल

अपोलो (नोएडा): इंडियन एक्सप्रेस ने 1 अप्रैल, 2019 और 31 मई, 2024 के बीच बांग्लादेशी मरीजों के लिए 90 फॉर्म 21 वेरिफिकेशन की समीक्षा की। केवल एक में करीबी रिश्तेदार पति या पत्नी शामिल थे। कथित तौर पर यह दावा करने के लिए कि दान प्यार से दिया गया था, पंद्रह अलग-अलग प्रकार के पारिवारिक वंशावली बनाई गई, जिनमें से ज्यादातर डोनर को दूर के रिश्तेदार के रूप में दर्शाया गया। 50% मामलों में डोनर, रिसीवर की बहन का बेटा, 12% मामले में पत्नी का भाई, 9% मामले में मां की बहन का बेटा, 6% मामले में पति की बहन का बेटा और 5% मामले में पिता की बहन का बेटा था।

यथार्थ (नोएडा): जांच के दायरे में आए 61 मामलों में से एक भी मामले में करीबी रिश्तेदार पति/पत्नी, भाई-बहन या बच्चा शामिल नहीं था। रिकॉर्ड में करीब 14 विभिन्न प्रकार की पारिवारिक वंशावली दिखाई गई। रिसीवर में 31% मामलों में बहन का बेटा, 18% मामले में पति की बहन का बेटा, 15% मामले में पत्नी की बहन का बेटा, 15% मामले में मां की बहन का बेटा और 5% मामले पत्नी का भाई बताया गया।

पुलिस के अनुसार इनमें से अधिकांश मामलों में रिसीवर के करीबी रिश्तेदारों को जाली दस्तावेजों का उपयोग करके गलत तरीके से अयोग्य समझा गया ताकि मनगढ़ंत पारिवारिक वंशावली के माध्यम से नकली डोनर्स का निर्माण किया जा सके। इसके अलावा व्यापक कार्यप्रणाली ऐसे अन्य रैकेटों से बहुत अलग नहीं थी। बांग्लादेश के गरीब व्यक्तियों को 4-5 लाख रुपये में किडनी दान करने के लिए लालच दिया जाता है और रिसीवर से लगभग 25 लाख रुपये वसूला जाता है। गिरफ्तार बांग्लादेशियों ने कथित तौर पर पुलिस को बताया कि प्रत्येक प्रत्यारोपण के लिए लगभग 8 लाख रुपये कमा रहे थे।

बांग्लादेश हाई कमीशन के एक अधिकारी पर भी आरोप

पुलिस ने जिस ट्रांसलेटर को गिरफ्तार किया है, उसकी पहचान रसेल के रूप में हुई है। वहीं उसके ही देश का एक और नागरिक गिरफ्तार हुआ था। उनके लैपटॉप पर एक टेंपलेट के माध्यम से दस्तावेजों में हेरफेर किया गया। उनके पास से एक प्लास्टिक बॉक्स, विभिन्न अधिकारियों की 20 मुहरें, डिजिटल हस्ताक्षर, बैंक खाते की जानकारी, पुलिस वेरीफिकेशन रिपोर्ट, राष्ट्रीय आईडी की प्रतियां, राजू डायग्नोस्टिक एंड लैबोरेट्री की मेडिकल रिपोर्ट, 991 वर्ड फाइलों वाली एक पेन ड्राइव जब्त की गई है। पुलिस के अनुसार इन सभी का इस्तेमाल नकली फैमिली वंशावली बनाने में तैयार किया गया था। रसेल ने पूछताछ के दौरान दावा किया कि बांग्लादेश हाई कमीशन के एक अधिकारी ने मरीजों की फाइलों को तेजी से निपटाने के लिए हर एक मामले के लिए 20,000 रुपये की रिश्वत ली थी।

अपनी जांच के दौरान पुलिस ने दिल्ली के जसोला में आरोपी के किराए के आवास से ढाका के एक 44 वर्षीय व्यक्ति के किडनी प्रत्यारोपण से संबंधित दस्तावेज बरामद किए, जो कथित तौर पर मरीज के 35 वर्षीय बहनोई के साथ यथार्थ में प्रत्यारोपण किया जाना था। इन दस्तावेज़ों में एक फॉर्म 21 शामिल था, जिस पर कथित तौर पर बांग्लादेश हाई कमीशन के प्रथम सचिव (कांसुलर) के हस्ताक्षर और मुहर के साथ-साथ डोनर और रिसीवर की तस्वीरों पर आधिकारिक मुहर लगी हुई थी। पुलिस के मुताबिक उच्चायोग से मिलती-जुलती दो नकली मुहरें भी मिलीं हैं।

रिकॉर्ड में इस फॉर्म 21 के साथ संलग्न दस्तावेजों के सात सेट हैं। एक वकील, पुलिस स्टेशन और प्रभारी अधिकारी की कथित मुहरों द्वारा प्रमाणित बांग्लादेश से एक पुलिस क्लीयरेंस प्रमाणपत्र, वरिष्ठ सहायक सचिव (कांसुलर), वरिष्ठ सहायक सचिव (कानून एवं न्याय प्रभाग), ढाका में विदेश मंत्रालय का कांसुलर और कल्याण विंग और दिल्ली में बांग्लादेश उच्चायोग की मुहरें भी थीं। पुलिस का आरोप है कि आरोपियों के पास से जब्त की गई नकली मुहरों का मिलान भी किया गया।

यथार्थ अस्पताल ने दिया जवाब

इस संबंध में इंडियन एक्सप्रेस के सवालों का जवाब देते हुए यथार्थ के एक प्रवक्ता ने कहा, “हालिया मामले के संबंध में, हम स्पष्ट करना चाहते हैं कि विजिटिंग सलाहकारों सहित सभी मामले हमारी कठोर मल्टी लेवल वेरिफिकेशन प्रक्रिया से गुजरते हैं। हमने अपनी प्रक्रियाओं को और मजबूत करने के लिए सक्रिय कदम उठाए हैं। इस बात पर जोर देना महत्वपूर्ण है कि यथार्थ अस्पताल ने हमेशा प्रत्यारोपण प्रक्रियाओं के लिए सभी कानूनी और नैतिक दिशानिर्देशों का पालन किया है। हमने अधिकारियों को उनकी जांच में पूरा सहयोग किया है। हम अपने समुदाय की ईमानदारी और करुणा के साथ सेवा करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। हम अपने मरीजों और उनके परिवारों द्वारा हम पर रखे गए भरोसे को कायम रखने का प्रयास कर रहे हैं।”