एक लाख करोड़ रुपये की लागत वाले दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेसवे का काम अटक गया है। इस महत्वाकांक्षी परियोजना का गुजरात स्थित करीब 87 किलोमीटर हिस्सा बनाना चुनौती साबित हो रहा है। इस काम के पूरा होने के लिए NHAI और सड़क बनाने के लिए जिम्मेदार ठेकेदार एक दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं। दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेसवे के गुजरात स्ट्रेच के तीन हिस्से बनाने की जिम्मेदारी जिस रोडवे सॉल्यूशंस इंडिया इंफ्रा लिमिटेड (RSIIL) कंपनी को दी गई थी, वो चार साल में करीब 20 फीसदी काम पूरा कर पाई है।
पहले कॉन्ट्रैक्ट दिया, फिर रद्द किया
जनसत्ता के सहयोगी इंडियन एक्सप्रेस ने अपनी पड़ताल में पाया है कि सबसे पहले 2021 में दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेसवे के तीन हिस्सों का काम इसी रोडवे सॉल्यूशंस इंडिया इंफ्रा लिमिटेड (RSIIL) को सौंपा गया था लेकिन मार्च 2023 आते-आते इन तीन में से दो कॉन्ट्रैक्ट को रद्द कर दिया गया, तब लगातार होती देरी को कारण बताया गया। इसके बाद नवंबर 2023 में फिर इन हिस्सों के लिए बोली लगाई गई और कॉन्ट्रैक्ट फिर इसी कंपनी को दे दिया गया। तर्क ये रहा कि सबसे कम बोली इसी कंपनी ने लगाई और नियमों के मुताबिक उन्हें प्रोजेक्ट देना मजबूरी बन गया।
चार साल, काम सिर्फ 20 फीसदी पूरा
अब चार साल बाद जब गुजरात के इन तीन हिस्सों के काम की समीक्षा करते हैं तो पता चलता है कि सिर्फ 20 फीसदी काम हो पाया है। मात्र 87 किलोमीटर की सड़क बनानी है, लेकिन वो काम भी नहीं हो पा रहा। इसी देरी की वजह से NHAI अब कंपनी को नोटिस जारी करने पर विचार कर रही है, कॉन्ट्रैक्ट रद्द करने की नौबत भी आ सकती है। इस बारे में जब RSIIL के डायरेक्टर नवजीत गधोके से बात की गई तो उन्होंने साफ कह दिया कि NHAI द्वारा तय समय पर जमीन उपलब्ध नहीं करवाई जा रही।
आरोप-प्रत्यारोप की लड़ाई शुरू
दूसरी तरफ NHAI के अधिकारी बता रहे हैं कि कंपनी के खराब प्रदर्शन, अनुबंध से जुड़े विवाद और मुकदमेबाजी के कारण काम की रफ्तार थम गई है। वैसे जिन तीन स्ट्रेच का काम RSIIL को सौंपा गया था, उसकी जानकारी भी सामने आई है। गुजरात में ही जुजुवा–गांदेवा स्ट्रेच, करवाड़–जुजुवा स्ट्रेच और तालसारी–करवाड़ स्ट्रेच इसी कंपनी को तैयार करना था। मार्च 2021 में ये टेंडर दिया गया, लेकिन अब काम ठप पड़ा है, जहां बाकी हिस्से बनकर तैयार खड़े हैं, इन तीन हिस्सों पर काम पूरा नहीं हो पा रहा है।
नीलामी के नियम क्या कहते हैं?
अब MoRTH के अधिकारी ही इस बात को स्वीकार कर रहे हैं कि सेम कंपनी दोबारा टेंडर देने का कोई मतलब नहीं था जब काम ही पूरा नहीं हो पा रहा। इस बारे में इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए NHAI के एक सीनियर अधिकारी ने कहा कि हम किसी भी कंपनी को नीलामी की प्रक्रिया में हिस्सा लेने से नहीं रोक सकते हैं। कंपनी ने क्योंकि सबसे कम बोली लगाई, ऐसे में उसे ही L1 घोषित किया गया। नियम कहता है कि जिस कंपनी को L1 कहा जाता है, उसे ही टेंडर भी मिलता है।
अभी के लिए NHAI अधिकारी अब ‘Cure Period’ नोटिस जारी करने पर भी विचार कर रहे हैं। इसका मतलब होता है कि कंपनी के कॉन्ट्रैक्ट को टर्मिनेट करने से पहले उसे अपनी गलती सुधारने की तय समय-सीमा दी जाए।
दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेसवे की जानकारी
समझने वाली बात यह है कि सभी सेक्शन पूरे होने के बाद दिल्ली–मुंबई एक्सप्रेसवे से दिल्ली से मुंबई के जवाहरलाल नेहरू पोर्ट तक की दूरी लगभग 180 किलोमीटर कम हो जाएगी। इस परियोजना की कुल लागत 1,03,636 करोड़ रुपये है, जिसमें से अब तक 71,718 करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं। दिल्ली–मुंबई एक्सप्रेसवे के कुछ हिस्से, जैसे दिल्ली–लालसोट और गुजरात और राजस्थान के कुछ सेक्शन फिलहाल चालू हो चुके हैं।
ये भी पढ़ें- साहूकारों के जाल में फंसा किसान
