विधानसभा सत्र के लिए सरकार की तैयारियां पूरी हो गई हैं। मुख्यमंत्री समेत मंत्रिमंडल के सदस्यों की शपथ के बाद विधायकों की शपथ की बारी है लेकिन विधानसभा में विपक्ष का नेता कौन होगा। इस पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का आखिरी फैसला सामने नहीं आया है और तो और अब तक भाजपा ने अपने विधानसभा की रणनीति के लिए जीते हुए विधायकों से भी कोई बैठक तक नहीं की है। प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी भी अपने तय कार्यक्रम के तहत दिल्ली से बाहर हैं।

इस बार विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने 70 सीटों में से 8 सीटें जीती है। पहले दिल्ली में केवल तीन ही विधायक थे। इन विधायकों की अगुआई नेता विपक्ष विजेंद्र गुप्ता कर रहे थे। हालांकि बाद में हुए उपचुनाव में एक और सीट विपक्ष के कोटे में आई थी। विजेंद्र गुप्ता ने कम विधायकों के बाद भी बतौर विपक्ष की भूमिका में पांच साल तक जमकर लड़ाई लड़ी है। वे दिल्ली में संकट के सबसे बड़े कार्यकाल में भाजपा का पक्ष रखने वाले जुझारू नेता बनकर उभरे। ऐसी स्थिति में इस सीट पर प्रबल दावेदारी विजेंद्र गुप्ता की ही बताई जा रही है। हालांकि इस बार अन्य वरिष्ठ विधायक भी सदन में लौटकर आएं हैं।

इस मामले में पार्टी के कई वरिष्ठ विधायकों से भी बात की गई है। उनका भी साफ कहना है कि पार्टी ने जीत के बाद उनके साथ किसी तरह की बैठक नहीं की है। इस वजह से अब तक विधानसभा में विपक्ष के नेता के चेहरे पर भी चर्चा नहीं हुई है। यह फैसला भी पार्टी आलाकमान को ही करना है।

इन भाजपा विधायकों में विश्वास नगर से ओम प्रकाश शर्मा, बदरपुर से रामवीर सिंह विधूड़ी, रोहताश नगर से जितेंद्र महाजन, गांधी नगर से अनिल वाजपेई, करावल नगर से मोहन सिंह बिष्ठ, घोंडा से अजय महावर और लक्ष्मी नगर से अभय वर्मा शामिल हैं। एक बार फिर से सीटों पर हुए बड़े नुकसान के बाद से ही भाजपा में हार के कारणों को पहचानने की कोशिश हो रही है। इसके लिए अब तक पार्टी के वरिष्ठ नेता हारे हुए प्रत्याशियों, संबंधित विधानसभा के प्रभारियों, निगम पार्षदों समेत अन्य नेताओं से मंत्रणा कर चुके हैं।