दिल्ली उच्च न्यायालय ने ट्रिब्यूनल के आदेश को खारिज करते हुए एक बैंक कर्मचारी की बर्खास्तगी को जारी रखा और कहा कि भरोसा दरकने के बाद बैंक कर्मी को फिर से नौकरी पर रखना गलत है। साथ ही कोर्ट ने कहा कि बैंकिंग प्रणाली की अखंडता सुनिश्चित करने के साथ-साथ ग्राहकों का विश्वास बनाए रखना बैंककर्मी की बड़ी जिम्मेदारी है।
दिल्ली हाई कोर्ट की न्यायमूर्ति प्रतिभा एम सिंह की पीठ ने औद्योगिक न्यायाधिकरण के एक आदेश को दरकिनार कर दिया जिसमें अपने व्यक्तिगत खातों में पैसे ट्रांसफर करने वाले एक बैंक कर्मचारी की बर्खास्तगी को खारिज कर दिया गया था। कोर्ट ने कहा कि ग्राहक बैंक अधिकारियों के प्रति अपना विश्वास रखते और उनके प्रति भरोसेमंद होते हैं। इसलिए कदाचार का संदेह होना और उसका कोई भी सबूत मिलना उसकी बर्खास्तगी को बरकरार रखने के लिए पर्याप्त है।
दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि एक बार जब विश्वास टूटता है और वह भी एक बैंक द्वारा अपने एक अधिकारी के प्रति तो वह ठीक नहीं होता है। इसलिए ऐसी स्थिति में कदाचार का संदेह होना भी बर्खास्तगी के लिए काफी है। साथ ही कोर्ट ने कहा कि न्यायालय इस वास्तविकता को नहीं भूल सकता है कि जो भी ग्राहक बैंक जाते हैं, वे अधिकारियों के साथ अच्छा संबंध रखते हैं। इसलिए बैंक कर्मचारियों का अपने ग्राहक के हितों की रक्षा करना उनका कर्तव्य भी है और उनकी जिम्मेदारी भी है।
दरअसल साल 2010 में एसबीआई ने वरिष्ठ नागरिक बचत योजना को देखने वाले एक कर्मचारी को बर्खास्त कर दिया था। कर्मचारी पर आरोप था कि उन्होंने कथित तौर पर अपने व्यक्तिगत खातों में ग्राहकों में पैसे जमा किए थे। इस मामले को औद्योगिक न्यायाधिकरण में चुनौती दी गई थी। लेकिन न्यायाधिकरण ने इस आधार पर बर्खास्तगी को खारिज कर दिया कि बैंक इस मामले में उचित साक्ष्य करने में विफल रहा।
जिसके बाद इस मामले को उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई। कोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि यह मामला ऐसे समय का है जब बैंकों में कंप्यूटर का उपयोग और ऑनलाइन बैंकिंग की सुविधाएं शुरुआती चरण में थीं। तब पैसे निकालने और जमा करने के लिए ग्राहकों का प्रतिदिन बैंक आना सामान्य था। इस मामले में प्रतिवादी ने अपने निजी लाभ के लिए अपने पद का दुरूपयोग किया और अपने अकाउंट में करीब 5 लाख से अधिक रुपए जमा किए गए। हालांकि इसे बाद में इसे ब्याज सहित वापस कर दिया गया।
कोर्ट ने कहा कि इस बारे में कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया जा सकता है कि बैंक के ग्राहकों के इतने पैसे कैसे जमा किए जा सकते हैं और वह भी जबकि राशि उक्त ग्राहकों की पासबुक में दिखाई देती है। कोर्ट ने यह कहते हुए कि इससे ग्राहकों का बैंक के प्रति भरोसा टूट सकता है, कर्मचारी की बर्खास्तगी को जारी रखा। साथ ही कोर्ट ने बैंक को निर्देश दिया कि प्रतिवादी को बिना किसी किसी कटौती के सभी तरह के भविष्य निधि और ग्रेच्युटी जैसे फंड को जोड़कर 20 लाख रुपए दिए जाएं।