Rani Lakshmibai statue: दिल्ली हाई कोर्ट ने रानी लक्ष्मीबाई की प्रतिमा लगाए जाने का विरोध करने पर एक मुस्लिम संगठन को कड़ी फटकार लगाई है। हाई कोर्ट ने उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें दिल्ली के सदर बाजार में स्थित शाही ईदगाह पार्क में झांसी की रानी यानी रानी लक्ष्मीबाई की प्रतिमा लगाने का विरोध किया गया था।
अदालत ने कहा कि इतिहास को सांप्रदायिक आधार पर विभाजित नहीं किया जाना चाहिए। अदालत ने मामले की सुनवाई के दौरान टिप्पणी की कि रानी लक्ष्मीबाई एक राष्ट्रीय नायक हैं और वह सभी धार्मिक सीमाओं से ऊपर हैं।
अदालत ने बेहद सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि ईदगाह कमेटी की याचिका बंटवारा करने वाली है और सांप्रदायिक राजनीति करने के लिए अदालत का सहारा लिया जा रहा है।
क्या है पूरा मामला?
शाही ईदगाह (वक्फ) की प्रबंध कमेटी की ओर से अध्यक्ष हाजी शाकिर दोस्त मोहम्मद ने अदालत में याचिका दायर की थी। इसमें कहा गया था कि अदालत शाही ईदगाह की वक्फ संपत्ति पर अतिक्रमण न करने का निर्देश दे। याचिका में दावा किया गया था कि वक्फ की संपत्ति में ईदगाह के आसपास का पार्क भी शामिल है।
29 अगस्त को जब शाही ईदगाह से सटे एक पार्क में खुदाई के लिए जेसीबी लाई गई तो याचिकाकर्ताओं ने अदालत का दरवाजा खटखटाया था। याचिकाकर्ताओं का कहना था कि पार्क में खुदाई डीडीए और एमसीडी के कहने पर की जा रही थी और इनकी मंशा पार्क में रानी लक्ष्मीबाई की प्रतिमा लगाने की थी।
याचिका में कमेटी की ओर से डीडीए और अन्य प्राधिकरणों को निर्देश देने की मांग की गई थी कि वे दिल्ली के सदर बाजार क्षेत्र के मोतिया खान में स्थित शाही ईदगाह जिसके साथ ईदगाह पार्क भी शामिल है, इस पर अतिक्रमण न करें। कमेटी की दलील थी कि यह वक्फ की संपत्ति है।
…यह कानून के मुताबिक नहीं
शाही ईदगाह की कमेटी की ओर से दी गई तमाम दलीलों को सुनने के बाद अदालत ने कहा कि ईदगाह की सीमा के अंदर जो पार्क और जमीन हैं, वह डीडीए के अंतर्गत आती है और कमेटी का यह दावा करना कि ईदगाह की दीवारों के अंदर की पूरी संपत्ति शाही ईदगाह की है, यह कानून के मुताबिक नहीं है।
अदालत ने कहा कि इस तरह की आशंका जताई गई है कि यहां पर मूर्ति लगाने से कानून और व्यवस्था की स्थिति पैदा हो सकती है लेकिन चूंकि एमसीडी ने यह फैसला ले लिया है कि यहां पर मूर्ति लगाई जाएगी, ऐसे में अदालत एमसीडी के ऐसे किसी फैसले पर विचार नहीं कर सकती।
अदालत ने याचिका को खारिज करते हुए कहा कि ऐसा कहीं से भी नहीं लगता कि प्रतिमा लगाए जाने से धार्मिक अधिकारों को किसी तरह का खतरा है।