दिल्ली हाई कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा है कि अगर भारतीय अर्थव्यवस्था पर किसी प्रकार का खतरा नहीं है तो सोने की तस्करी गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत टेरेरिस्ट एक्ट नहीं माना जाएगा। बता दें कि कोर्ट ने यह बात नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर तस्करी कर लाए गए 83.621 किलोग्राम वजन की 504 सोने की छड़ें बरामद करने के एक मामले में कही।

दरअसल इस मामले में आठ लोगों को असम से दिल्ली जाते एक ट्रेन में समय राजस्व खुफिया निदेशालय की दिल्ली जोनल यूनिट ने रोक लिया था। इन लोगों के खिलाफ राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने आर्थिक सुरक्षा को खतरे में डालने और भारतीय अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाने को लेकर एक आरसी दर्ज की गई थी।

बता दें कि इस मामले में दिल्ली हाई कोर्ट में जस्टिस मुक्ता गुप्ता और जस्टिस मिनी पुष्कर्ण की खंडपीठ ने आरोपियों को जमानत दे दी है। इन आरोपियों पर यूएपीए की धारा 16, 18, 20 और आईपीसी की धारा 120बी, 204, 409 और धारा 471 के तहत अपराधों से जुड़े मामले थे।

मामले में अदालत ने कहा कि कब्जा, उपयोग, उत्पादन, नकली मुद्रा या नकली सिक्के का हस्तांतरण अपने आप में अवैध है और यह अपराध की श्रेणी में आता है। हालांकि, ‘सोने’ का उत्पादन, कब्जा, उपयोग आदि स्वयं अवैध या अपराध नहीं है। कोर्ट ने कहा कि भारत की आर्थिक सुरक्षा या मौद्रिक स्थिरता को खतरे में डालने वाले किसी भी संबंध के बिना सोने की तस्करी आतंकवादी गतिविधि नहीं हो सकती।

अदालत ने पाया कि अभियोजन पक्ष के पास मुख्य सबूत के तौर पर बरामद हुई सोने की छड़ें तस्करी का सोना थीं, सीमा शुल्क के अधिकारियों द्वारा सीमा शुल्क अधिनियम की धारा 108 के तहत दर्ज अभियुक्तों के बयान थे।

वहीं अपीलकर्ताओं का दलील थी कि अभियोजन पक्ष के पास सीमा शुल्क अधिनियम की धारा 108 (108 of the Customs Act) के तहत सीमा शुल्क अधिकारी द्वारा दर्ज किए गए कथित बयानों के अलावा और कोई सबूत नहीं है।