Indian Army Captain Anamika Dutta: दिल्ली हाई कोर्ट ने आर्म्ड फोर्सज ट्रिब्यूनल (एएफटी) के फैसले के खिलाफ एक साल बाद अपील करने पर सरकार पर 15 हजार रुपये का जुर्माना ठोका है। जस्टिस नवीन चावला और जस्टिस शालिंदर कौर की बेंच ने सरकार की उस अपील को खारिज कर दिया, जिसमें एएफटी के आदेश को चुनौती दी गई थी। इस आदेश में महिला कैप्टन अनामिका दत्ता को विकलांगता पेंशन देने का फैसला किया गया था।
बेंच ने एएफटी के फैसले को बरकरार रखा, जिसने सर्विस के दौरान महिला अफसर के विकलांग होने की बात को माना था और सरकार के इस तर्क को खारिज कर दिया कि अफसर को यह बीमारी सेना में शामिल होने से पहले थी।
अदालत ने कहा कि एक साल से ज्यादा समय बीत जाने के बाद एएफटी के आदेश को चुनौती दी गई है, इससे महिला अफसर को और ज्यादा परेशानी हुई है। इसलिए, याचिकाकर्ता को महिला अफसर को 15,000 रुपये देने होंगे। इस मामले में कैप्टन अनामिका दत्ता को अपनी विकलांगता पेंशन के लिए काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा।
क्या है यह पूरा मामला?
कैप्टन अनामिका दत्ता 1996 में सेना में शॉर्ट सर्विस कमीशन ऑफिसर के रूप में शामिल हुई थीं। उन्हें लो मेडिकल कैटेगरी में रखा गया था। उनकी पीठ के निचले वाले हिस्से में दर्द की वजह से उन्हें 24 सितंबर, 2002 को समय से पहले ही नौकरी से रिलीव कर दिया गया था।
महिला अफसर ने एएफटी के सामने कहा था कि वह एक अच्छी शूटर थीं और इसलिए उसे सेना की निशानेबाजी वाली यूनिट में शामिल किया गया था। अप्रैल, 2001 से वह 3 इन्फैंट्री डिवीजन ऑर्डिनेंस (डीओयू) में लेह में पोस्टेड थीं और इसके बाद से वह पीठ दर्द से परेशान रहने लगीं। जहां वह पोस्टेड थीं, वह बहुत ऊंचाई वाला इलाका था। इस दौरान उन्हें लेह और चंडीगढ़ के मिलिट्री अस्पतालों में भी भर्ती कराया गया और इसके बाद नौकरी से रिलीव कर दिया गया।
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सरकार ने कोर्ट के सामने क्या कहा?
इस मामले में सरकार की ओर से हाई कोर्ट के सामने यह दलील रखी गई कि एएफटी ने महिला कैप्टन के मामले में गलत फैसला सुनाया था। सरकार ने अदालत में कहा कि रिलीज मेडिकल बोर्ड (आरएमबी) ने साफ-साफ लिखा है कि महिला अफसर सर्विस में आने से पहले पीठ के निचले हिस्से में दर्द से पीड़ित थीं। इसके जवाब में महिला अफसर के वकील ने कहा कि इस बात का किसी भी डॉक्यूमेंट द्वारा समर्थन नहीं किया गया।
महिला अफसर ने कहा कि वह 1996 में सेना में आई थीं और 2002 में उन्हें रिलीव कर दिया गया और मेडिकल बोर्ड की पिछली प्रोसिडिंग में उनकी ‘low backache’ और ‘fibro fasciitis’ यानी ‘पीठ के निचले हिस्से में दर्द’ और ‘फाइब्रो फेशिआइटिस’ से पीड़ित होने का कहीं कोई जिक्र नहीं था। हाई कोर्ट ने कहा कि जब कोई अधिकारी पूरी तरह से फिट होता है तभी उसे सर्विस में शामिल किया जाता है।
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अदालत ने अपने आदेश में कहा, ‘अब केवल एक ही सवाल बचता है कि क्या विकलांगता सेना की परिस्थितियों के कारण हुई या इस वजह से बढ़ गई है।’ अदालत ने कहा, ‘महिला अफसर के डाक्यूमेंट्स के विश्लेषण से पता चलता है कि वह एक एक्टिव शूटर थीं और अप्रैल 2001 से मई 2002 तक 3 डीओयू, लेह में तैनात थीं। 2002 में, उन्हें ‘लो बैक एक’ और ‘फाइब्रो फेशियाइटिस’ के कारण अस्पताल में भर्ती कराया गया और उसी साल उनकी सेवा समाप्त कर दी गई।’
अदालत ने आगे कहा, ‘महिला अफसर की विकलांगता का पता सर्विस में प्रवेश के समय नहीं चला था और इसकी शुरुआत लेह में हुई थी। आवेदक की विकलांगता सर्विस में रहने के कारण और बढ़ गई जिससे उन्हें विकलांगता पेंशन का हकदार माना जाएगा।’
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