एक पिता अपनी ही नाबालिग बेटी को दो साल तक हवस का शिकार बनाता रहा। पीड़िता ने इसकी जानकारी मां को दी तो उसके साथ भी मारपीट की गई। इस मामले में निचली अदालत ने आरोपा पिता को बरी कर दिया था। अब हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट से फैसले को पलट पिता को दोषी ठहराया है। हाईकोर्ट ने कहा कि इस नाबालिग के साथ गलत काम करने वाला कोई बाहरी नहीं था। पीड़िता ने सोचा होगा कि पिता उसे अपने गोद में एक ‘आसरा’ देंगे लेकिन उसे इस बात का जरा भी अहसास नहीं था कि वह ऐसा घिनोना काम करेंगे।

क्या है पूरा मामला?

पीड़िता ने 19 जनवरी 2013 को दिल्ली स्थित पटेल नगर थाने एफआईआर दर्ज कराई। इसमें उसने अपने पिता पर आरोप लगया कि एक दिन उसके पिता काम पर नहीं गए। उसका भाई स्कूल चला गया और मां काम करने बाहर चली गई। पीड़िता ने बताया कि उसके पिता उस दिन उसे स्कूल छोड़ने नहीं गए। उसी दिन दोपहर को जब वह घर में अकेली थी तो पिता उसके पास आकर लेट गए। इसके बाद पिता उसके प्राइवेट पार्ट को छूने लगे। जब उसने मना किया तो उसके साथ पिता ने बलात्कार किया। शाम को जब उसकी मां वापस लौटी तो पीड़िता न उन्हें पूरी बात बताई। मां ने इसका विरोध किया तो उसके साथ भी मारपीट की गई।

मामले के समय पीड़िता महज 10 साल की थी। उसके पिता एक सुरक्षा गार्ड के रूप में काम करते थे। पीड़िता ने आरोप लगाया कि उसके पिता लगातार 2 साल तक उसके साथ बलात्कार करते रहे। एफआईआर दर्ज कराने के बाद पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार कर लिया। हालांकि ट्रायल कोर्ट ने इस मामले में आरोपी पिता को जून 2019 में बरी कर दिया।

हाईकोर्ट ने ठहराया दोषी

ट्रायल कोर्ट से बरी होने के बाद मामला हाईकोर्ट पहुंचा। यहां जस्टिस सुरेश कैत और जस्टिस मनोज जैन की बेंच ने कहा कि यह कोई प्रेरित या मनगढ़ंत मामला नहीं है। डर के कारण पीड़िता एवं पीड़िता कि मां मामले को उजागर नहीं कर रही थी। अगर वे तुरंत पुलिस के पास पहुंचे होते, तो पीड़ित को हमेशा के लिए आघात से बचाया जा सकता था। कोर्ट ने कहा कि पीड़िता के साथ गलत काम करने वाला कोई बाहरी या अजनबी नहीं था।

बेंच ने कहा कि “पीड़िता की गवाही को किसी भी दृष्टिकोण से उकसाया हुआ या असत्य नहीं पाया जा सकता। हम इस तथ्य से अवगत हैं कि पीड़िता का पिता द्वारा पिछले दो वर्षों से यौन उत्पीड़न किया जा रहा था। मामले में देरी से रिपोर्ट करने के कारण ट्रायल कोर्ट प्रभावित हुआ और उसने विरोधाभासों को भी अनुचित महत्व दिया”। हम यह मानने के लिए तैयार नहीं हैं पति-पत्नी के बीच मामूली झगड़े के कारण फर्जी यौन उत्पीड़न का मामला दर्ज कराया गया था। बेंच ने आरोपी पिता को POCSO अधिनियम की धारा 6 और भारतीय दंड संहिता की धारा 506 और 323 के तहत किए गए अपराधों के लिए दोषी ठहराया।