दिल्ली हाई कोर्ट ने एक बड़ा फैसला सुनाया है। दिल्ली हाईकोर्ट ने एक फैसले में साफ किया कि पेनिट्रेटिव यौन हमले में महिलाओं को भी आरोपी बनाया जा सकता है। दिल्ली हाई कोर्ट में पॉस्को एक्ट से जुड़े एक मामले को लेकर फैसला आया। दिल्ली हाई कोर्ट की जस्टिस अनूप जयराम भांभानी ने फैसला सुनाते हुए कहा कि पॉस्को एक्ट के तहत पेनिट्रेटिव यौन हमले और गंभीर पेनिट्रेटिव यौन हमले के मामले में पुरुष और महिला दोनों को आरोपी बनाया जा सकता है।

He का मतलब केवल पुरुष से नहीं- दिल्ली हाई कोर्ट

उन्होंने कहा कि पॉस्को एक्ट की धारा 3 में लिखे गए He का मतलब केवल पुरुष से नहीं है। उन्होंने कहा कि ऐसे मामलों में जेंडर के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता है। जस्टिस ने कहा कि पॉस्को एक्ट को इसलिए बनाया गया ताकि बच्चों को यौन अपराधों से बचाया जा सके। फिर चाहे वह अपराध महिला ने किया हो या फिर पुरुष ने।

महिला ने हाई कोर्ट में दलील दी थी कि पॉस्को एक्ट की धारा 3 और 5 के तहत केवल पुरुषों को ही अपराधी बनाया जा सकता है, क्योंकि इसमें He शब्द का इस्तेमाल किया गया है। इसके जवाब में जस्टिस ने कहा कि पॉस्को एक्ट की धारा 2(2) को देखते हुए HE की परिभाषा पर वापस लौटना चाहिए, जैसा कि आईपीसी की धारा 8 में है। इसमें He का इस्तेमाल पुरुष और महिला दोनों के लिए किया गया है।

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बता दें कि पॉस्को एक्ट के प्रावधान के मुताबिक बच्चों के प्राइवेट पार्ट में किसी भी चीज का प्रवेश यौन अपराध के अंतर्गत आता है। पॉस्को एक्ट की धारा 3 में पेनिट्रेटिव यौन हमला और धारा 5 में गंभीर पेनिट्रेटिव यौन हमले को परिभाषित किया गया है। कोई आरोपी किसी बच्चे के प्राइवेट पार्ट या मुंह में कोई वस्तु डालता है, तो उसे पेनिट्रेटिव यौन हमला माना जाएगा।

केस दर्ज कराने पहुंची महिला खुद फंसी

इससे पहले हरियाणा में अपने मकान मालिक के खिलाफ यौन उत्पीड़न का केस नहीं दर्ज होने पर शिकायत लेकर एक महिला हाईकोर्ट पहुंची थी। लेकिन वह खुद कटघरे में फंस गई। हाईकोर्ट को पता चला कि वह महिला इससे पहले भी कई बार ऐसे केस दर्ज कराए हैं। अकेले जींद में ही 19 बार यौन उत्पीड़न की शिकायतें दर्ज करा चुकी है।