दिल्ली हाईकोर्ट ने एक अविवाहित महिला की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा है कि वो पेट में पल रहे बच्चे की हत्या की अनुमति नहीं दे सकता है। जन्म के बाद महिला अपने बच्चे को गोद लेने के लिए दे सकती है।
दरअसल दिल्ली हाईकोर्ट में एक 25 वर्षीय अविवाहित महिला ने अपने लगभग 24 हफ्ते के गर्व को गर्भपात कराने की अनुमति मांगी थी। इसी याचिका की सुनवाई करते हुए उच्च न्यायलय ने गर्भपात की अनुमति देने से इनकार कर दिया। मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा की अगुवाई वाली पीठ ने महिला को सुझाव देते हुए कहा कि देश में गोद लेने वालों की एक लंबी लाइन है। डिलीवरी के बाद वो बच्चे को गोद के लिए दे दें।
न्यायधीश ने कहा- “वे महिला को बच्चे को पालने के लिए मजबूर नहीं कर रहे हैं। यह सुनिश्चित करेंगे कि वह प्रसव के लिए किसी अच्छे अस्पताल में जाए। उसका पता नहीं चलेगा। तुम जन्म दो और वापस आओ।”
उन्होंने कहा कि अगर सरकार बच्चे के जन्म के खर्च का भुगतान नहीं करती है, तो वो मदद करने के लिए तैयार हैं। कोर्ट ने कहा कि महिला 36 सप्ताह के गर्भावस्था के 24 सप्ताह पूरे कर चुकी है। ऐसे में गर्भपात की अनुमति देना, भ्रूण हत्या के समान होगा।
सुनवाई के दौरान महिला के वकील ने कहा कि महिला अविवाहित होने की वजह से काफी परेशान है। वकील ने महिला की मानसिक पीड़ा का हवाला देते हुए कहा कि वह 23 सप्ताह से अधिक समय से गर्भवती है। उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता बच्चे को पालने के लिए शारीरिक, मानसिक या आर्थिक रूप से फिट नहीं है। वकील ने कहा कि यह उसे मानसिक आघात और सामाजिक कलंक का कारण बनेगा।
बता दें कि देश के कानून के अनुसार डॉक्टर की सलाह के बाद कुछ हफ्तों का अनचाहा गर्भ गिराया जा सकता है। कुछ विशेष परिस्थितियों- बलात्कार जैसे मामलों में यह समय सीमा 24 सप्ताह तक है। हालांकि इसके लिए भी डॉक्टर की अनुमति जरूरी है।