Delhi News: दिल्ली हाईकोर्ट ने पिछले सप्ताह एक बुजर्ग दंपत्ति के हक में एक बड़ा फैसला सुनाया और उन्हें इजाजत दी है कि वे अपने मृत बेटे के स्पर्म को एक्सेस कर सकते हैं, जिससे उसका प्रजनन के लिए इस्तेमाल हो सके। इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक दंपत्ति के बेटे की कैंसर के चलते 2020 में मौत हो गई थी लेकिन उसके स्टोर करके रखे गए स्पर्म को इलाज के दौरान स्टोर करके रखा गया था और अस्पताल उसके इस्तेमाल की इजाजत नहीं दे रहा था।

जानकारी के मुताबिक, दंपत्ति ने प्रिजर्व किए गए स्पर्म के इस्तेमाल को लेकर हो रही दिक्कतों को लेकर हाई कोर्ट का रुख किया था। बता दें कि कैंसर के इलाज के दौरान कीमोथैरपी होती है और उसके रेडिएशन के चलते स्पर्म की क्वालिटी गिर जाती है।

इसके चलते उन्हें आम तौर पर पहले ही प्रिजर्व करके रखा जाता है लेकिन अस्पताल में बाद में उस प्रिजर्व स्पर्म को एक्सेस करने से इनकार कर दिया। अस्पताल का तर्क था कि मृतक का कोई लाइफ पार्टनर नहीं है, इसलिए स्पर्म का एक्सेस नहीं दिया जा सकता है।

कोर्ट में बुजुर्ग कपल ने क्या दिए तर्क

इसके चलते बुजुर्ग दंपत्ति ने बेटे की विरासत को आगे बढ़ाने के लिए और पोते-पोतियों की परवरिश करने की इच्छा के लिए अदालत का रुख किया उन्होंने अदालत को बताया कि वे अपनी बेटियों के साथ फ्रोजन सीमेन सैंपल का उपयोग करके सरोगेसी के माध्यम से पैदा होने वाले किसी भी बच्चे की पूरी जिम्मेदारी लेने के लिए तैयार हैं।

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इस मुद्दे पर क्या कहता है देश का कानून

सहायक प्रजनन तकनीक नियम, 2022 में “मरणोपरांत शुक्राणु की पुनर्प्राप्ति” की प्रक्रिया निर्धारित की गई है लेकिन इसमें केवल उन मामलों को शामिल किया गया है, जहां मृतक विवाहित है, और स्पर्म की डिमांड करने वाला लाइफ पार्टनर है। कोर्ट ने इस मामले में सरकार का रुख भी जाना है।

क्या था सरकार का रुख

इस पर स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय (MoHFW) द्वारा कोर्ट में एपिडेविट दिया कि यह कानून न्यायालय द्वारा “पोस्टमॉर्टम ग्रैंडपैरेंटहुड” के रूप में संदर्भित मामलों में लागू होने का इरादा नहीं रखता है। इसने कहा कि सरोगेसी विनियमन अधिनियम केवल इच्छुक जोड़ों या सरोगेसी के लिए चिकित्सा की जरूरत वाली महिलाओं पर लागू होता है, और दादा-दादी को इच्छुक दादा-दादी के तौर पर लागू ही नहीं होता है।

दंपत्ति ने दिया अंतरराष्ट्रीय कानून का तर्क

वहीं इस मामले में दंपत्ति ने भारतीय कानूनों की अपेक्षा कई अंतरराष्ट्रीय कानूनों का भी तर्क दिया। दुनिया भर के कई कानून मरने के बाद प्रजनन की अनुमति देते हैं, लेकिन स्पष्ट सहमति आवश्यक है। उरुग्वे में लिखित सहमति के साथ मरने के बााद प्रजनन की अनुमति है, जो एक वर्ष के लिए वैध है। बेल्जियम में मृत्यु के बाद छह महीने की प्रतीक्षा अवधि के बाद इसकी अनुमति है, लेकिन इसके लिए दो साल के अंदर आवेदन किया जाना चाहिए।

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कोर्ट ने अपने फैसले में क्या कहा

ध्यान देने वाली बात यह भी है कि अपने फैसले में दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले में विशेष रूप से इजराइल के एक मामले का उल्लेख किया गया, जहां युद्ध में मारे गए 19 वर्षीय सैनिक के माता-पिता ने अपने बेटे के स्पर्म उसके मरने के बाद भी हासिल किए और मृतक बेटे के स्पर्म से एक बेटी पैदा हुई।

कोर्ट ने दंपत्ति की याचिका पर सहमति जताई क्योंकि जिस वक्त उनके बेटे की मौत हुई उस वक्त देश में इसको लेकर कोई कानून ही नहीं था। इसका मतलब यह कि पत्नी या लाइफ पार्टनर के अलावा भी कोई सदस्य मृतक के स्पर्म का एक्सेस ले सकता था। कोर्ट ने यह भी स्वीकार किया कि स्पर्म को एक प्रॉपर्टी माना जा सकता है और यह व्यक्ति की जैविक सामग्री का हिस्सा है।

इसके अलावा यह भी सवाल उठा कि क्या मृतक के माता-पिता नमूने को प्राप्त करने के हकदार हैं, तो इसमें कोर्ट ने हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम का हवाला दिया, जिसमें पति या पत्नी या बच्चों की अनुपस्थिति में माता-पिता को मृतक का कानूनी उत्तराधिकारी माना जाता है।