लोकसभा चुनाव बिल्कुल दहलीज पर खड़े हैं। रामलहर के बाद बीजेपी को उम्मीद थी कि वे आसानी से लोकसभा चुनाव में जीत हासिल करेगी। इसके लिए समाज के हर तबके को साधा जा रहा था। बिहार के पूर्व सीएम कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देकर मंडल को साधने के प्रयास हुए, तो लालकृष्ण आडवाणी के लिए वही ऐलान करके कमंडल का दांव चला गया। इसके अलावा किसानों के नेता चौधरी चरण सिंह और साइंटिंस्ट एम एस स्वामीनाथन को भारत रत्न देने का ऐलान करके मोदी सरकार ने किसानो को साधने का प्रयास किया, लेकिन कहीं यह दांव भी बेकार तो नहीं चला जाएगा?

दरअसल, पंजाब और हरियाणा के किसानों का गुस्सा एक बार फिर मोदी सरकार के खिलाफ फूटने लगा है। किसानों ने तय किया है कि वे अपने दिल्ली चलों अभियान के तहत 13 फरवरी को दिल्ली में घुसेंगे। 15- 20 हजार किसानों ने अलग-अलग तरीके से दिल्ली जाने की तैयारी कर ली है। इसके अलावा 2000 के करीब ट्रैक्टरों में भी किसानों का रेला निकल चुका है, जो कि दिल्ली पहुंचने वाला है। इसे मोदी सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती माना जा रहा है।

अब सवाल यह उठ रहा है कि आखिर एक बार फिर किसान क्यों राजधानी दिल्ली की ओर कूच करने लगे हैं? इसको लेकर बता दें कि किसानों ने अपनी मांगे साफ कर दी हैं। किसान एमएसपी के लिए कानूनी गारंटी के अलावा, स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करने की मांग कर रहे हैं। ये सभी किसान कृषि ऋण माफी और पुलिस मामलों को वापस लेने के अलावा, लखीमपुर खीरी हिंसा के पीड़ितों के लिए “न्याय” की भी मांग कर रहे हैं।

बातचीत में नहीं बन रही सहमति

किसानों की केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल सहित केंद्रीय मंत्रियों के साथ बातचीत के बाद हुई थी लेकिन कुछ बात नहीं बन सकी है। किसानों के प्रतिनिधियों ने गुरुवार को चंडीगढ़ में घोषणा की कि वे अपनी मांगों को लेकर 13 फरवरी को संसद तक मार्च करेंगे। पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान उनके बीच मध्यस्थता कर रहे थे। साथ ही, प्रतिनिधियों ने स्वीकार किया कि बैठक सौहार्द्रपूर्ण माहौल में बुलाई गई थी और उन्होंने फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की गारंटी के लिए एक कानून बनाने सहित मांगों के कार्यान्वयन में देरी पर अपनी चिंता जताई थी।

विपक्ष कर रहा किसानों का समर्थन

एक तरफ जहां दिल्ली की ओर किसान कूच कर रहे हैं, तो दूसरी तरफ आंदोलनकारी किसानों को विपक्षी दलों का समर्थन मिल रहा है। किसानों को रोकने के लिए लगाए गए बैरिकेड्स जैसे इंतजामों पर कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी वाड्रा ने आपत्ति जताई और मोदी सरकार से यह तक पूछ लिया कि आखिर किसान अपनी मांगों की बात उठाकर गलत क्या कर रहे है?

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने 13 फरवरी को दिल्ली कूच करने वाले किसानों के आंदोलन का समर्थन किया है। उन्होंने कहा है मैं पंजाब के किसानों को बधाई देता हूं वह फिर से अपने हक के लिए लड़ने के लिए फिर दिल्ली पहुंचे रहे हैं और वह आंदोलन कर रहे हैं। खड़गे ने कहा कि किसान आंदोलन से कांग्रेस पार्टी के लोग भी जुड़ेंगे।

किसानों का नहीं पसीजा दिल?

मोदी सरकार ने हाल में ही ऐलान किया था कि पूर्व पीएम चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न दिया जाएगा। चौधरी साहब किसानों के नेता माने जाते थे, जिन्होंने किसानों के हितों के लिए हर मंच से आवाज उठाई। चौधरी को इसके चलते ही किसानों द्वारा सम्मानित किया जाता है। इसी तरह एम एस स्वामीनाथन को भी भारत रत्न देने का ऐलान किया गया था, जो कि खेती को उन्नत बनाने से लेकर किसानों को तकनीक से जोड़ने में अहम भूमिका निभा चुके हैं। स्वामीनाथन की देश में हरित क्रांति को लेकर भी अहम भूमिका थी।

मोदी सरकार को लगा था कि किसानों के दो मसीहा चेहरों को देश का सर्वोच्च सम्मान देकर उनकी नाराजगी को कम किया जा सकता है जिससे उन्हें चुनाव में भी किसानों का समर्थन मिल जाएगा। इसके विपरीत किसानों का 13 फरवरी को दिल्ली कूच करना बता रहा है कि मोदी सरकार के इस कदम से भी किसानों ने उन्हें कुछ खास छूट नहीं दी है।

2021 में किसानों ने किया था उग्र प्रदर्शन

साल 2021 में किसान आंदोलन में किसानों ने दिल्ली के कई बॉर्डर्स को सील कर दिया था, जिसके चलते आम जनमानस को भी दिक्कतों का सामना करना पड़ा था। इसके अलावा उस दौरान लालकिले तक पर जाकर किसानों ने उग्र प्रदर्शन किया था। इसके चलते बाद में पुलिस ने भी आक्रामक कार्रवाई की थी। मोदी सरकार उस दौरान तीन कृषि कानून लाई थी, जिसे किसानों के प्रदर्शन के चलते दबाव में आकर सरकार को वापस लेना पड़ा था। उसके बाद ही किसानों ने अपना आंदोलन खत्म किया था।

उस आंदोलन के दौरान ग्रेटा थनबर्ग और पॉप सिंगर रेहाना जैसी इंटरनेशनल एक्टिविस्ट्स तक ने किसानों के हक में आवाज उठाई थी। इसको लेकर एक टूलकिट भी सामने आई थी, जिसमें दावा किया गया था कि कई अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठित लोगों से ट्वीट करवाए गए थे। वहीं यह भी आरोप लगे थे कि कुछ खालिस्तानी उग्रवादियों ने किसानों के आंदोलन को हाईजैक कर लिया था। इन सारे विवादों के तीन साल बाद अब एक बार फिर किसान दिल्ली कूच कर रहे है।

बनेगी बात या बढ़ेगी मुसीबत?

यह ऐसा समय है जब लोकसभा चुनाव सिर पर हैं। ऐसे में किसानों का प्रदर्शन पंजाब हरियाणा से लेकर देश के अलग-अलग इलाकों में चुनावी लिहाज से बीजेपी के लिए मुसीबत वाला हो सकता है। हालांकि किसानों और सरकार के बीच बातचीत का एक चैनल जारी है। देखना दिलचस्प होगा कि आखिर ये प्रदर्शन मोदी सरकार पर भारी पड़ता है, या एक बार फिर कोई बीच का रास्ता निकल आता है।