70 विधानसभा क्षेत्रों में सुल्तानपुरी और मंगोलपुरी विधानसभा का परिणाम भी इस बार सबकी नजर पर रहेगा। बाहरी दिल्ली के उत्तर-पश्चिम लोकसभा क्षेत्र के इन दोनों सुरक्षित विधानसभा सीटों पर कांग्रेस के दो पूर्व विधायक, राष्ट्रीय सचिव और प्रभारी की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। इनके मुकाबले खडे़ आम आदमी पार्टी (आप) और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के उम्मीदवारों ने भी प्रचार की गति तेज कर दी है। 1975-76 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने झुग्गी झोपड़ियों को हटाकर पक्का मकान देने के फैसले में करोलबाग, प्रसादनगर, आरकेपुरम आदि इलाकों से झुग्गी हटाकर जो पुनर्वास कॉलोनियां बनार्इं उसमें मंगोलपुरी और सुल्तानपुरी में बसाई गई कालोनियां भी शामिल हैं।

कांग्रेस का गढ़ सुल्तानपुर माजरा
1993 में विधानसभा गठन के बाद से सुल्तानपुर माजरा विधानसभा क्षेत्र लगातार कांग्रेस का गढ़ मानी जाती रही। कांग्रेस के कद्दावर नेता पूर्व सांसद सज्जन कुमार के सानिध्य में रहकर राजनीति में आए और पहले चुनाव से लेकर लगातार चार बार खुद और एक बार पत्नी को चुनाव जिताने का तमगा जयकिशन के नाम यहां दर्ज है। करीब पौने दो लाख मतदाताओं वाली इस विधानसभा में पिछले चुनाव में संदीप कुमार ने ‘आप’ की हवा में जयकिशन को पराजित किया था। इस बार यहां से कांग्रेस ने फिर जयकिशन पर दांव लगाया है।

भाजपा के रामचंद्र चावड़िया और ‘आप’ के मुकेश कुमार अहलावत मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने की जुगत में हैं। 2015 में संदीप कुमार ‘आप’ से जीतने के बाद केजरीवाल सरकार में मंत्री भी बने लेकिन सोशल मीडिया पर आए एक वीडियो और राशन घोटाले में नाम आने के कारण उन्हें मंत्री पद से तो त्याग पत्र देना ही पड़ा, आप पार्टी से भी उन्हें बेदखल कर दिया गया। इस बार ‘आप’ ने मुकेश अहलावत को भले ही टिकट देकर मैदान में उतार दिया है लेकिन तपे तपाए और हर घर में किसी न किसी तरह 25 सालों से अपनी पैठ बना चुके जयकिशन के मुकाबले उनकी दावेदारी कम दिखती है।

स्थानीय लोगों का यह भी कहना है कि ‘आप’ ने जिसे इस बार मैदान में उतारा है वह पहले बसपा फिर भाजपा और इस समय ‘आप’ का दामन थामकर विधानसभा पहुंचने की जुगत में है। अहलावत यहां से कई किलोमीटर दूर बवाना में रहते हैं। हालांकि भाजपा के उम्मीदवार भी जनकपुरी के हैं। इन दोनों के मुकाबले जयकिशन यहां 40 साल से ज्यादा समय से रहते हैं और पुनर्वासित कालोनी में कालेज और दो हायर सेकेंडरी स्कूल खोलकर आर्थिक रूप से कमजोर और दलितों के बच्चों के लिए शिक्षा के क्षेत्र में लगातार काम करते रहे हैं।

बीते चुनाव में ‘आप’ से पराजित होने के बाद भी जयकिशन ने इलाके में अपनी सक्रियता नहीं छोड़ी और पिछले 25 साल से रहे विधायक की तरह लोगों से मिलते जुलते रहे। एक साल से तो उन्होंने घर-घर जाकर, गलियों और चौक चौराहे पर सभा कर लोगों से मांफी मांगकर यह कहते रहे कि इस इलाके में अगर कोई विकास का काम होगा तो उनके रहते ही होगा। ब्लॉकों में विभाजित, किशन विहार, जलेबी चौक और इंद्रा झील जैसे बस्ती से सजे दिल्ली के अन्य इलाके की तरह यहां भी समस्याएं उसी प्रकार की हैं।

मंगोलपुरी विधानसभा भी इस बार कांग्रेस के लिए प्रतिष्ठा की सीट है। प्रदेश के कार्यकारी अध्यक्षों में एक और इसी इलाके से लोकसभा चुनाव लड़े राजेश लिलोठिया को सुरक्षित सीट के नाते यहां से उम्मीदवार बनाया गया है। बिहार के प्रभारी सचिव लिलोठिया को यह सीट दिल्ली सरकार के पूर्व मंत्री राज कुमार चौहान का चुनाव नहीं लड़ने के कारण दी गई। करीब पौने दो लाख मतदाता के इस क्षेत्र से ‘आप’ की राखी बिडलान चुनाव मैदान में हैं।

राखी ‘आप’ की शुरुआती टीम की सदस्य, मंत्री और विधानसभा की मौजूदा उपाध्यक्ष हैं। जबकि भाजपा ने करमवीर सिंह करमा को मैदान में उतारा है। कांग्रेस के गढ़ इस सीट पर भी चौहान चार बार विधायक और शीला दीक्षित सरकार में मंत्री रहे। बीते लोकसभा चुनाव में जब कांग्रेस ने लिलोठिया को टिकट दिया तो विरोध कर चौहान कांग्रेस छोड़कर भाजपा में चले गए। लेकिन चुनाव से कुछ दिन पहले ही दोबारा वे कांग्रेस में आ गए और मंगोलपुरी से चुनाव नहीं लड़ने का ऐलान किया। लिलोठिया चौहान को अपने पाले में कितने कर पाते हैं इस पर चुनाव परिणाम निर्भर करता है। सुल्तानपुरी से सटे होने के कारण यहां भी समस्याएं उसी प्रकार की हैं जिसे पूरा करने का दावा करते हुए तीनों पार्टियां मैदान में जुटी हुई है।