विधानसभा चुनाव के बुधवार को आए आंकड़े बताते हैं कि दिल्ली चुनाव में ध्रुवीकरण की जो कोशिश की गई थी वह फिलहाल नहीं चली। आम आदमी पार्टी (आप) के पक्ष में मुसलिमों ने जमकर मतदान किया। मुसलिम बहुल इलाकों और सर्वाधिक हिंदू मतदाताओं वाले इलाकों पर नजर डालें तो कई मुसलिम बहुल क्षेत्रों में भी आप को हिंदू बहुल इलाकों से भी कम वोट पड़े। मसलन मुसलिम बहुल इलाकों सीलमपुर में 56 फीसद और मुस्तफाबाद में 53 फीसद वोट ही ‘आप’ को मिले, जबकि हिंदू बहुल क्षेत्र नई दिल्ली में 64 फीसद, बुराड़ी में 64 फीसद, करोल बाग में 65 फीसद, तिलक नगर 64 फीसद, राजेंद्र नगर में 57 फीसद वोट आप को मिले हैं। इन हिंदू बहुल सीटों पर भी भाजपा का हिंदू कार्ड फेल रहा। यहां ‘आप’ से बहुत कम वोट भाजपा को मिले।
दिल्ली चुनाव में ‘आप’ और भाजपा के वोट फीसद बढ़ोतरी का साथ नोटा ने भी अपने वोट फीसद में बढ़ोतरी दर्ज कराई है। डाले गए कुल वोटों में नोटा की हिस्सेदारी 0.5 फीसद दर्ज हुई जबकि 2015 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में नोटा को कुल वोटों के 0.4 फीसद वोट मिले थे। अल्पसंख्यक समुदाय की पहली पसंद अरविंद केजरीवाल नीत ‘आप’ ही रही।
मुसलिम तुष्टिकरण का आरोप झेलने वाली कांग्रेस को लोगों ने नकार दिया। कांग्रेस ने दिल्ली विधानसभा चुनाव में पांच मुसलिम चेहरों पर दांव लगाया था लेकिन सभी की जमानत जब्त हो गई। ‘आप’ ने मटियामहल, सीलमपुर, ओखला, बल्लीमारान और मुस्तफाबाद से मुसलिम समाज के उम्मीदवार पर भरोसा जताया। वहीं, कांग्रेस ने भी इन पांचों सीटों पर मुसलिम उम्मीदवार उतारे थे। ‘आप’ के सभी पांचों मुसलिम उम्मीदवार बड़े अंतर से जीते हैं, जबकि कांग्रेस के पांचों मुसलमान उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई है।
सीलमपुर से कांग्रेस के कद्दावर नेता चौधरी मतीन अहमद भी जमानत नहीं बचा पाए लेकिन उन्हें पार्टी के सभी मुसलिम प्रत्याशियों में सबसे ज्यादा वोट मिले हैं। उन्हें 15.61 फीसदी वोट मिले हैं। ओखला विधानसभा सीट पर भी मुसलिम समाज ने कांग्रेस का साथ नहीं दिया। इस सीट से कांग्रेस के उम्मीदवार 1993 से 2008 तक कांग्रेस के परवेज हाशमी विधायक थे।
बल्लीमारान से 1993 से 2015 तक कांग्रेस के विधायक रहे और शीला दीक्षित सरकार में मंत्री रहे हारुन यूसुफ ने 2013 में 36.18 फीसदी वोटों की तुलना में इस बार युसूफ को 4.73 फीसदी वोट मिले हैं। मटिया महल सीट पर 1993 से कभी भी कांग्रेस नहीं जीती है। यहां से अलग-अलग पार्टियों के टिकट पर 2015 तक शोएब इकबाल ही जीतते आए हैं। लेकिन कांग्रेस को इतने कम वोट कभी नहीं मिले जितने ही इस बार मिले हैं।
2013 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े मिर्जा जावेद को 27.68 फीसद वोट मिले थे। 2015 में कांग्रेस के टिकट पर मैदान में उतरे इकबाल को 26.75 फीसदी वोट मिले थे। लेकिन इस बार कांग्रेस के मिर्जा जावेद को 3.85 फीसद वोट मिले हैं। यही हाल चांदनी चौक और बाबरपुर विधानसभा क्षेत्रों का है, जहां अच्छी खासी संख्या में मुसलिम आबादी रहती है। चांदनी चौक से कांग्रेस की अलका लांबा को 5.03 फीसद वोट मिले हैं।
